Environmental Issues in Hindi – पर्यावरण के समक्ष चुनौतियाँ


पर्यावरण के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ – वैश्विक पर्यावरण के मुद्दे – environmental issues


Environmental Issues in Hindi -: हर दिन मानव अपनी गतिविधियों से पृथ्वी के पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा हैं. वर्तमान में पर्यावरण के समक्ष प्रमुख चुनौतियों का सामना किसी एक संघठन, एक समुदाय या एक देश से नहीं किया जा सकता हैं. क्योंकि पर्यावरण के समक्ष चुनौतियां पूरे विश्व में वितरित हैं. वनों की कटाई, वायु, जल, भूमि प्रदूषण, तेल की ड्रिलिंग जैसे मुद्दे पर्यावरण को खतरे में डाल रहे हैं, और जीवन को बनाये रखने के लिए आवश्यक संसाधनों को खतरे में डाल रहे हैं. यहाँ पर हम बात करने वाले हैं वर्तमान के पर्यावरण की स्थिति और पर्यावरण के समक्ष प्रमुख कौन कौन सी चुनौतियां हैं.[environmental issues in hindi]


द गार्जियन एंड यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन के अनुसार गहन कृषि, निरंतर मछली पालन, वन्यजीवों का शिकार, बढती आबादी के कारण वन विनाश, अम्ल वर्षा और जलवायु परिवर्तन सम्पूर्ण पृथ्वी के लिए खतरा बने हुए हैं.

यहाँ पर 17 विनाशकारी वर्तमान पर्यावरणीय मुद्दे की चर्चा करेंगे जो कि आपकी आँखे खोल देंगे. पर्यावरण को विभिन्न मुद्दो से बचाने का समय आ गया हैं. यदि आज इनकी उपेक्षा की गई तो निकट भविष्य में पृथ्वी पर मानव अस्तित्व पर अंकुश लगना निश्चित हैं.

हमारी पृथ्वी पर एक प्राकृतिक वातावरण हैं जिसको ‘पारिस्थितिकी तंत्र’ कहा जाता हैं, इस पारिस्थितिकी तंत्र के अन्दर सभी मनुष्य, पौधे, पहाड़, विशाल समुद्र, चट्टानें, ग्लेशियर शामिल हैं. इसी के अन्दर वे सभी संसाधन भी शामिल हैं जो कि मनुष्य की बुनियादी आश्यकताओं को पूरा करते हैं.

पर्यावरण की वर्तमान स्थिति

वर्तमान में इंजीनियरिंग के विकास के परिणामस्वरूप संसाधनों की कमी और पर्यावरण का विनाश हो रहा है. इंजीनियरिंग और विनिर्माण उद्योग में उपयोग की जाने वाली आधुनिक तकनीकों का पिछले कुछ वर्षों में हमारे जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है. वहीँ इंजीनियरिंग और विनिर्माण उद्योग में तेजी से बदलाव के कारण पर्यावरण में भी भारी बदलाव आया है.

फेक्टरियों(विनिर्माण उद्योग) ने धातु, प्लास्टिक, तेल और रबर जैसी सामग्रियों के उपयोग में वृद्धि की है, इनका प्रयोग कार उत्पादन, शिपिंग उद्योगों, कपास की मिलों, प्लास्टिक उद्योगों, कोयला खनन, भारी मशीने बनाने आदि में किया जाता हैं.

इन सभी का गहन अध्ययन यह बताता हैं कि ये सभी पर्यावरण के प्रतिकूल हैं.
यहाँ पर कुछ प्रमुख विनाशकारी वर्तमान पर्यावरण के मुद्दे जो मनुष्यों के जीवन को हानि पहुँचाने और यदि सही से इनका नियंत्रण नहीं किया तो विभिन्न प्रजातियों के लिए विलुप्त होने का कारण भी बन सकते है. पर्यावरण को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से है?

  1. वायु, जल और भूमि प्रदूषण

सभी लोग इस वाक्य से भली भांति परिचित है कि – प्रदूषण क्या है? इसके हानिकारक प्रभाव क्या हैं, इनको भी अच्छी तरह से जानते हैं. लेकिन इनका सामना करने के लिए कोई तैयार नहीं हैं. पर्यावरण के विभिन्न प्रदूषण अब मिटटी, जल या वायु तक नहीं रहे, बल्कि प्रदूषण बहुत सूक्ष्म हो चूका हैं, कण कण में प्रदूषण व्याप्त हैं. और इनके लिए केवल और केवल मनुष्य ही जिम्मेदार हैं.

जल प्रदूषण मुख्य रूप से तेल रिसाव, शहरों का गन्दा नाला, और समुद्र में होने वाले कचरे के डंपिंग के कारण होता है. वायु प्रदूषण जीवाश्म ईंधन के जलने, हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग और वाहनों द्वारा उत्सर्जित गैसों से उत्पन्न होता है. जल और मृदा प्रदूषण प्रमुख रूप से औद्योगिक कचरे के कारण होता है.

  1. जलवायु परिवर्तन – पर्यावरण संबंधी मुद्दे(environmental issues)

आज वर्तमान में “पर्यावरण संतुलन” की सबसे भयावह चुनौती जलवायु परिवर्तन हैं. केवल एक डीग्री तापमान का अंतर किसी प्रजाति को पूर्णतया नष्ट कर सकता हैं. पिछले कुछ दशको से तापमान में लगातार वृद्धि हो रही हैं.
आज जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीनहाउस प्रभाव, मरुस्थलीकरण जैसी मुसीबतों को पैदा कर रहा हैं. इसके अलावा शहरी वातावरण का निरंतर गर्म रहना आदि समस्यांए उत्पन्न होना मानवीय क्रिया कलापों का परिणाम हैं.

जलवायु परिवर्तन से न केवल मौसम की स्थिति बदलती हैं बल्कि इसके बड़े और हानिकारक प्रभाव भी हैं. इनमें से ध्रुवीय क्षेत्रों और ग्लेशियर का पिघलना, नई बीमारियों का पैदा होना, पादप जगत और वन्य जीवों को प्रजातियों का अस्तित्व मिट जाना इस प्रकार की समस्याएँ शामिल हैं.

  1. ग्लोबल वार्मिंग

पृथ्वी के तापमान में निरंतर वर्द्धि हो रही हैं – पर्यावरण में हो रही इस घटना को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता हैं. ग्लोबल वार्मिंग एक वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दा है जो कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, जल वाष्प और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव के कारण होता हैं.
ग्रीन हाउस गैसे सूर्य से आने वाली किरणों को वापस वायुमंडल से बाहर नहीं जाने देती हैं. जिस कारण से वह गर्मी सदैव के लिए पृथ्वी पर ही रह जाती हैं. जब कोइ क्षेत्र ज्यादा गर्म रहता हैं तो वहा पर वायुदाब बढ़ जाता हैं और वहां पर तूफान की संभावना बढ़ जाती है और, बिना मौसम के वर्षा होने की सम्भावना भी बन जाती हैं.

NOAA के अनुसार, पिछली सदी में पृथ्वी के औसत तापमान में 1.4 डिग्री फ़ारेनहाइट (0.8 डिग्री सेल्सियस) की वृद्धि हुई है. ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय चिंता(environmental issues) है.

  1. वनों की कटाई और लॉगिंग

तेजी से बढ़ रही आबादी के कारण और बढती शहरीकरण से शहरों में आवास स्थान की किल्लत हो रही हैं. आवास स्थान की पूर्ति करने की लिए निरंतर वनों को काटकर शहरों में बदला जा रहा हैं.

दूसरी समस्या यह हैं कि जब आबादी बढती हैं तो खाद्य सामग्री की मांग बढ़ जाती हैं. इसके लिए वनों को खेतों में बदला जा रहा हैं. पिछले कुछ दशकों में भोजन, आवास और कपड़े की मांग लगभग तीन गुना हो गई है. बढ़ती मांग को दूर करने के लिए, एक सीधी कार्रवाई होती है जिसे हम “वनों की कटाई” के रूप में जाना जाता हैं.

तीसरी समस्या यह हैं कि जब उद्योग को स्थापित करने की बात आती हैं तो उनको शहरी इलाके से दूर स्थापित किया जाता हैं. इसके लिए भी वन के बड़े भागो को साफ कर दिया जाता हैं.
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, अनुमानित 18 मिलियन एकड़ (7.3 मिलियन हेक्टेयर) जंगल हर साल नष्ट हो जाते हैं. वनों की कटाई के दीर्घकालिक प्रभाव गंभीर रूप से विनाशकारी और खतरनाक होगी क्योंकि वन विनाश से बाढ़, मिट्टी के कटाव, ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि, जलवायु असंतुलन, वन्यजीव की प्रजातियों का विलुप्त होने और अन्य गंभीर पर्यावरणीय मुद्दों(environmental issues) का कारण बन सकते हैं.

  1. अधिक जनसंख्या

बढती जनसँख्या कभी न ख़त्म होने वाली समस्या हैं. ‘बढती जनसँख्या’ सभी प्रकार के पर्यावरणीय मुद्दों के लिए जिम्मेदार है. जल प्रदूषण, बुनियादी संसाधन संकट, भूमि प्रदूषण, शहरी फैलाव, वनों की कटाई, अत्यधिक औधोगिक उत्पादन, अधिक जनसंख्या के कारण होने वाले खतरनाक प्रभावों के कुछ सामान्य उदाहरण हैं.

कई देशों में परिवार नियोजन के मामले में सरकार द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक जनसंख्या को नियंत्रित करना मुश्किल है. यह एक व्यक्ति परख चिंता की तरह हो गया है और अधिक जनसंख्या की समस्या को हल करने के लिए कोई भी तरीका 100% कुशल साबित नहीं हो रहा है.

  1. औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट


आजकल प्रत्येक घर में सैकड़ो किलो कचरा पैदा होता हैं, इसमें से कुछ कचरे को पुनचक्रित किया जा सकता हैं जबकि कुछ को पुनचक्रित नहीं किया जा सकता हैं. लेकिन इनमे से अधिक कचरा सडको और शहरों के बाहर ढेर के रूप मे मिलता हैं. घरो से निकलने वाले कचरे में इ-कचरा, प्लास्टिक, कार्बनिक कचरा शामिल हैं.
फेक्टरियों से निकलने वाला तेल या गन्दा पानी जिनको पानी के स्रोतों में छोड़ दिया जाता हैं. अक्सर जल स्रोतों में रहने वाले जीवो के लिए जहर हैं, जो धीरे धीरे उनका क्षरण करता हैं और डीएनए ढांचा को बिगाड़ देता हैं.

  1. अम्ल वर्षा

अम्लीय वर्षा का सीधा मतलब वायु प्रदूषण से है. एक क्षेत्र के अन्दर जहाँ की वायु पूर्ण रूप से प्रदूषित हो चुकी हैं. ऐसी वायु के अन्दर सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड और फेक्टरियों से निकलने वाली हानिकारक गैसे, कारों और वाहनों से निकलने वाली गैसे अम्लीय वर्षा के लिए जिम्मेदार होते हैं. इसके अलावा ज्वालामुखी फटना भी अम्लीय वर्षा का कारण हैं. अम्लीय वर्षा से न केवल भूमि प्रदूषित होती हैं बल्कि संस्कृतिक धरोहरों को भी कैंसर हो जाता हैं, जिसके फलस्वरूप दीवारों का रंग परिवर्तन हो जाता हैं.

  1. ओजोन परत का क्षरण

ओजोन परत गैस की एक परत है जो पृथ्वी की सतह से 20-30 किमी ऊपर रहती है. ओजोन में ऑक्सीजन के तीन परमाणु होते हैं. ओजोन परत समताप मंडल में पायी जाती हैं. ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक यूवी (पराबैंगनी) किरणों को रोकती हैं. ओजोन परत सूर्य द्वारा उत्सर्जित हानिकारक पराबैंगनी विकिरण के 95-99% को अवशोषित करने में सक्षम है.

हालांकि, पिछले कई दशकों के दौरान, मानव और औद्योगिक गतिविधियों के कारण ओजोन परत में काफी कमी आई है. ओजोन परत की कमी का मुख्य कारण मानव निर्मित यौगिकों जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) से क्लोरीन और ब्रोमीन की अत्यधिक उत्पादन करना हैं.

  1. जेनेटिक इंजीनियरिंग

आज इस पृथ्वी पर ऐसा कोई विषय नहीं हैं जिनके बारे में वैज्ञानिक को पता नहीं हैं. आज का विज्ञान इंसान का शरीर, पशु अंग, सभी प्लांट्स का आनुवंशिक संशोधन करने की क्षमता रखता हैं. जैव प्रौद्योगिकी एक प्रभावशाली तकनीक है लेकिन इनका उपयोग को बहुत सिमित करना चाहिए.

जेनेटिक इंजीनियरिंग एक विवादास्पद विषय है, क्योंकि इससे होने वाले फायदों की तुलना इसके नुकसान और दुष्प्रभाव कहीं गुना अधिक हैं. आनुवंशिक प्रदूषण और खाद्य उत्पादों में परिवर्तन न केवल मानव पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं बल्कि ‘आनुवंशिक संशोधन’ के रूप में सम्पूर्ण पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं.

  1. शहरीकरण

जिस तरह से आबादी बढ़ रही हैं, रहने के लिए नए नए आवास की जरुरत पड़ती हैं, भारत और चीन इसके अच्छे उदहारण हैं. प्रतिवर्ष सैकड़ो हेक्टेयर वन भूमि को काटकर लगातार आवास या औधोगिक क्षेत्रों में बदला जा रहा हैं. शहरीकरण से भूमि का निम्नीकरण हो रहा है. आज लगभग सभी देश अपनी अर्थव्यवस्था को बढाने के लिए निशुल्क मिलने वाले संसाधनों का निरंतर दोहन कर रहे हैं, वो भी बिल्कुल गैर-जिम्मेदाराना तरीके से.
औद्योगिक क्षेत्रों के विस्तार से मृदा प्रदूषण और निवास स्थान के लिए वनों का भयानक नुकसान हुआ हैं.
जब कभी वनस्पतियों और जीवों से मिलकर बना एक प्राकृतिक वातावरण, प्रतिस्थापित होने के बजाय, अंधाधुंध तरीके से नष्ट हो जाता है, तो यह पर्यावरण के लिए बेहद भयानक संकेत हैं. लंबे समय में, यह मानव के अस्तित्व पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है और एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या का कारण बन सकता है.

  1. तेल रिसाव

तेल रिसाव एक पूर्णतया मानव निर्मित मुद्दा हैं जो की पर्यावरण के प्रतिकुल हैं. 2010 में मक्सिको(Mexico) में हुए BP तेल रिसाव का प्रभाव कई वर्षो तक देखने को मिला. तेल रिसाव प्रदूषण का एक अन्य रूप है जिसमें तरल पेट्रोलियम का रिसाव होता है जो विशेष रूप से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है. पिछले कुछ वर्षों में कई तेल रिसाव की घटनाएं हुई हैं और फिर भी इस समस्या के बारें में भविष्य को सुरक्षित करने के लिए कोई कदम नहीं उठा रहे हैं.
सडको पर चलने वाली सैकड़ो गाड़ियों से टप टप तेल टपकता रहता हैं. यही तेल वर्षा के पानी से धुलकर खेतों और अन्य जल स्रोतों में जाता हैं. जहाँ पर यह भूमि और जल प्रदूषण का कारण बनता हैं.

  1. हाइड्रोलिक फ्रैकिंग

हाइड्रोलिक फ्रैकिंग एक ऐसी प्रक्रिया हैं जिसमे चट्टानों के अन्दर एक छोटे से इंजेक्शन में बहुत सारा पानी, रसायन और गैसे भर दी जाती हैं. इस प्रक्रिया को तब प्रयोग में लाया जाता हैं जब किसी बड़ी चट्टान को तोड़ने या खदान को खोदने के लिए पर्याप्त दबाव के साथ छोड़ा जाता हैं. फिर एक बड़े विस्फोट के साथ इस क्रिया को अंजाम दिया जाता हैं. इस प्रकार हाइड्रोलिक फ्रैकिंग से बहुत सारे रसायन चारो और फ़ैल जाते हैं, जिससे भूमि और जल प्रदूषण होता हैं. गैसों के वातावरण में फैलने से वायु प्रदूषण होता हैं. ये अनावश्यक क्रियाएँ हैं, जो अक्सर लोग करते रहते हैं, भुगतना पूरी पृथ्वी को पड़ता हैं.

  1. प्राकृतिक संसाधनों में गिरावट

आज प्राकृतिक संसाधनों को लेकर स्थिति ऐसी हो गई हैं कि पेट्रोल और अन्य जीवाश्म इंधनों को प्राप्त करने के पृथ्वी की सबसे अन्दर की परत या पपड़ी में खुदाई की जा रही हैं. प्राकृतिक स्रोत अति सिमित हैं, लेकिन कुछ देश अपने लालच या अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए निरंतर पृथ्वी के गर्भ को खोदे जा रहे और इन जीवाश्म इंधनों का निर्यात कर रहे हैं. इस बात में कोई दोराय नहीं हैं की जीवाश्म या प्राकृतिक ईंधन पर्यावरण के लिए हितेषी हैं. इनके दोहन से ही वैश्विक तापमान में वृद्दि होती हैं.
कुछ स्रोतों से यह दावा किया गया हैं कि प्राकृतिक संसाधन या गैर-नवीकरणीय स्रोत शीघ्र ही हमेशा के लिए समाप्त हो जायेंगे. लेकिन फिर भी, तेल कंपनियां ऊर्जा के इन स्रोतों का निरंतर उपयोग कर रही हैं जैसे वे जीवन भर यहां रहने वाले हैं.

  1. मरुस्थलीकरण

आपको जानकर अति आश्चर्य होगा की कुछ वर्षों पहले सहारा मरुस्थल जो की अफ्रीका का सबसे बड़ा मरुस्थल हैं, वह एक हरा भरा घना जंगल था. लेकिन आज ऐसी स्थिति हैं की वहां कई किलोमीटर तक कोई जीव देखने को नहीं मिलता हैं. पृथ्वी के बड़े बड़े भागों का मरुस्थलीकरण, जलवायु परिवर्तन के कारण होता हैं. मानवीय गतिविधियाँ के कारण जैसे प्रदूषण से भूमि क्षरण, वन-विनाश के कारण पर्यावरण लगातार नाजुक होता जा रहा हैं और मरुस्थलीकरण जैसी समस्याएँ पैदा हो रही हैं.

कुछ वर्षो पहले झूम खेती बहुत प्रचलित थी, जिसेक चलते बड़े बड़े वनों के भागो को कुछ ही वर्षो मे बंजर कर दिया जाता था. इसी प्रकार अतिचारण, वनों की कटाई, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन कुछ ऐसे कारण हैं, जो मरुस्थलीकरण की ओर ले जाते हैं.

मरुस्थलीकरण से किसी विशेष क्षेत्र में भूखमरी, गरीबी, ख़राब पानी की गुणवत्ता या जल संसाधनों में कमी जैसी समस्याओं का सामना कर पड़ सकता हैं.
मरुस्थलीकरण को रोकने के कुछ तरीके जैसे स्थायी कृषि पद्धतियों के बारे में शिक्षित करना और इस पर्यावरणीय मुद्दे को और अधिक फैलने से रोकने के लिए लोगो को इसके बारें में बताना.

  1. वन्य जीवो को खतरा

जंगल में रहने वाले जीव(पर्यावास) या किसी विशेष क्षेत्र की प्रजाति के आवास स्थान नष्ट हो रहे हैं, इसका एक ही कारण हैं – प्रदूषण. क्योंकि प्रदूषण से आने वाले विषाक्त पर्दाथ उनके जीवन के लिए सरासर हानिकारक हैं. प्रदूषित हवा और पानी भूमि की गुणवत्ता को बदल देती हैं.
पर्यावास(जंगली जीवों) के विनाश से विभिन्न प्रजातियों का विलुप्त होना, वन्यजीवों का प्रवासी होना, समुद्री जीवो का स्थायी व्यवधान, अनुकूल वातावरण की संरचना में परिवर्तन और मिट्टी की गुणवत्ता में परिवर्तन हो सकता है.

  1. जैव विविधता को हानि

अब तक मानव इस युग का सबसे बड़ा राक्षस हैं. पृथ्वी की जैव विविधता गंभीर खतरे में है. वर्तमान युग में पृथ्वी की जैव विविधता के विनाश का सबसे खतरनाक कारण मानव है. वनों की कटाई, अत्यधिक बढ़ती जनसंख्या, प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले स्थायी आवास के नुकसान और विनाश हमारी जैव विविधता के नुकसान का एक प्रमुख कारण है.

  1. पेयजल जल संकट – पानी की कमी

आपको जानकर आश्चर्य होगा की सागर, ग्लेशियर, नदियाँ, झीले और आंतरिक जल के स्रोत या पूरी पृथ्वी पर व्याप्त जल में से केवल 2.5% ही मीठे पानी है. और इनमे से 1 प्रतिशत पानी गलेशियरों पर बर्फ के रूप में जमा हैं. पृथ्वी के सम्पूर्ण स्थलीय जीवों के लिए केवल मात्र .03 प्रतिशत पानी पीने के लिए योग्य हैं. who की रिपोर्ट के अनुसार तीन में से एक व्यक्ति के पास स्वच्छ और पीने योग्य पानी नहीं हैं. मतलब पिछले कुछ दशकों में जल संकट बढ़ा हैं. बढ़ता जल संकट का स्तर, पीने के पानी की कमी का तनाव एक विश्व संकट के रूप में देखा जा सकता हैं.

जल संकट के प्रमुख के कारण जल प्रदूषण, भूजल स्तर का नीचे जाना, जलवायु परिवर्तन हैं. जल प्रदूषण के कारण सैंकड़ो बीमारियाँ, पशुधन की अस्वस्थता, अकाल मौते, कुपोषण में वृद्दि हो रही हैं. जिसके प्रमाण आये दिन अख़बार और समाचारों की अंतिम पंक्ति में देखने को मिलती हैं.

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हमारा ब्लॉग “पर्यावरण ज्ञान” पर्यावरण से सम्बन्धित विषयों पर नए नए लेख लेकर आता हैं. अभी ऊपर आपने बहुत सारे लगभग 17 ऐसे विषय जाने जो पर्यावरण के प्रतिकूल हैं. हमने हर एक विषय पर विस्तार से पोस्ट लिखी हैं. कृपया आप उनको भी पढ़े और आगे शेयर करें. क्योंकि पर्यावरण की समस्याओं को जड़ से मिटाने के लिए हम सभी को मिलकर कदम उठाने होंगे और हाथ पकड़ कर आगे बढ़ना होगा, सोशल मीडिया तो बस एक माध्यम हैं.

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