उपहार बंटवारा – बीरबल का मजेदार रोचक किस्सा

उपहार बंटवारा – अकबर बीरबल हिंदी कहानी

अकबर बीरबल की हिंदी कहानियां‘ में आप पढ रहे हैं – उपहार बंटवारा.

मुग़ल बादशाह अकबर प्रजा के प्रति उदारतावादी थे. इस कारण बादशाह अकबर अपने दरबार में समय समय पर प्रजा से मिलने के लिए प्रजा मिलन दरबार लगाया करते थे. दरबार में हाजिर होने वाले लोगो को बादशाह सुनते, उन पर अपना निर्णय देते और प्रसन्न होने पर उनको उपहार भी देते. एक बार इसी प्रकार का दरबार लगाया था. दूर दूर से सभी लोग बादशाह से मिलने आ रहे थे. एक दूर दुराज गाँव में कोई महेश दास नाम का व्यक्ति रहता था. महेशदास ने भी मन बनाया की ये बादशाह लोग किस प्रकार रहते हैं, उनकी जीवनशैली कैसी है. चलो, एक बार देखकर आते हैं. यह विचार बना कर महेशदास निकल पड़े. महेश दास जब महल के बाहर पहुंचे तो देखा कि बहुत सारे लोग बादशाह से मिलने के लिए पंक्ति बनाकर खड़े थे. पहरेदार एक एक करके सभी से एक एक स्वर्ण मुद्रा ले रहा था. लेकिन महेशदास तो खाली हाथ आये थे. फिर भी महेश दास पंक्ति में लगे रहे. जब महेश दास की बारी आयी और पहरेदार ने मुद्रा मांगी तो, भाई मेरे पास तो कुछ नहीं हैं, मैं तो बस एसे ही बादशाह से मिलने आया. पहरेदार ने मना कर दिया, एसे तो हम नही जाने देंगे. महेश दास के निवेदन के बाद, एक शर्त पर जाने की मंजूरी दी. महेश दास ने भी हा भर दी. और शर्त को पूरा करने का वादा किया और महल के द्वार में प्रवेश कर गया. महेश दास महल में प्रवेश करते ही पूरे महल को ध्यान से देखने लगा.


महल की नक्काशी और बारीक़ कारीगरी देखखर महेशदास चौंक गया. घूमते फिरते महेशदास वहां पहुँच गया. जहाँ बादशाह अकबर प्रजा से मिल रहे थे. एक एक करके सभी बादशाह के सामने अपनी हाजिरी दे रहे थे, अपनी समस्या, अपनी इच्छा बादशाह के सामने पेश करते और बादशाह उनको सुलझाने की कोशिश करते. महेशदास खड़े खड़े सोच रहे थे की मैंने तो सोचा ही नही कि मुझे क्या मांगना हैं. सोचते सोचते महेशदास की बारी आ गयी और महेशदास बादशाह के सामने पेश हुआ.
बोलो क्या नाम हैं तुम्हारा! और कहाँ से आये हो तुम …. जी! जहापनाह मेरा नाम महेशदास हैं और मैं आपके ही सल्तनत के दूर गाव का आम नागरिक हूँ
बोलो क्या फरिहाद लेकर आये हो?
जी जहापनाह मुझे कुछ नही चाहिए… मैं तो बस आपसे ही मिलने आया हूँ…


तुमने अपना नाम क्या बताया ? …. जी महेशदास
हाँ! महेशदास …. हम तुम्हारी उदारता से अति प्रसन्न हुए. तुम बादशाह अकबर के दरबार में खडे हो. हम तुमको एसे ही खाली नही जाने देंगे… और तुम यहाँ से खाली हाथ जाओ, हमारी शानो शौकत को शोभा नही देता. तुम कुछ भी मांगो…
बादशाह के इतने आग्रह पर महेशदास ने अपनी फरमाइश पेश की…
जहापनाह मुझे अपनी नंगी पीठ पर एक सौ कोड़े चाहिए…
बादशाह एसी फरमाइश सुनकर चोंक गये.
बादशाह ने कारण पुछा….
तो महेशदास ने कहा- बाहर जो आपका पहरेदार खड़ा हैं, उसके साथ हमरी एक शर्त लगी हैं की दरबार से हमको जो कुछ भी मिलेगा उसका आधा हिस्सा, उसको देना पड़ेगा.
बादशाह ये सुनकर थोड़े बौखला गए और और उन्होंने मुह बनाकर ….पहरेदार को बुलाने को भेजा.
पहरेदार ने बादशाह को झुककर सलाम किया. बादशाह ने व्यंग्य में उससे कहा हम तुम्हारी पहरेदारी से प्रसन्न हुए.हमनें निश्चय किया हैं महेश दास ने जो भी माँगा उसका सौ फीसदी तुमको देंगे. पहरेदार खुस हुआ. जी जहापनाह! जैसा आप उचित समझे.
क्या तुम सुनना नही चाहोंगे कि इसने फरियाद की. – बादशाह अकबर बोले.
जी जहापनाह जरूर- पहरेदार बोला.


इसने(महेशदास) सौ कौड़े मांगे, और हमने इसकी मंजूरी भी दे दी
बादशाह ने गुस्से में आकर सैनिको से कहा इसे गिरफ्तार कर लो और इसकी अच्छे से फरियाद पूरी करो.
हा तो महेशदास तुम हमको बेहद पसंद आये.
क्या तुम हमारी दरबारी में कोई काम करना चाहोंगे.
मुल्ला दो प्याजा बोले जहापनाह एसे कैसे किसी को भी आप दरबारी में रख सखते हैं… मेरा मतलब ना कोई जान पहचान न कोई..लेना देना. मुल्ला दो प्याजा अपनी जबान को सँभालते हुए बोले.
मुल्ला तुम भी ठीक ही कहते हो, अच्छा तुम ही बताओ की इसको कैसे परखा जाये. बादशाह बोले.
मुल्ला दो प्याजा सोचकर बोलते हैं – अगर ये यह बता दे की मेरे दिमाग मे क्या चल रहा हैं तो शायद बात बन जाये.
महेशदास क्या तुम इस प्रश्न का जवाब देना चाहोंगे. जी जहापनाह जरूर!
मुल्लाजी आपके दिमाग में अभी ये चल रहा हैं कि बादशाह अच्छे हैं, और वो हम सभी का कल्याण करते हैं. हमे बादशाह से कोई शिकायत नही हैं.
क्या मुल्लाजी हम सही कह रहे हैं न.
मुल्लाजी बनावटी मुस्कान के साथ जी जहापनाह ये बिलकुल ठीक कह रहा हैं.
क्या मुल्ला अभी तुम्हे कोई प्रश्न पूछना हैं क्या?
नही जहापनाह..
तो महेशदास हम तुम्हे अपनी दरबारी में काम करने को आमंत्रित करते हैं.
लेकिन हम तुमको एक नाम देना चाहेंगे…
जी जहापनाह आपका हुक्म सर आँखों पर.
हमारा दरबार और पूरी मुगलिया सल्तनत तुमको बीरबल के नाम से जानेंगी.
इस प्रकार बीरबल को मुग़ल सल्तनत में पदवी मिली.

कौनसा सबसे बड़ा हथियार है – कहानी

इस अकबर बीरबल के किस्से(akbar birbal kahaniya)- उपहार का बंटवारा, से हमने क्या सिखा – हमारी बुद्धि और ईमानदारी हमको कभी जीवन में हरा नहीं सकती.

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