भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को नारदजी ने सुनाई भागवत कथा
पुराण की कथा में आप पढने जा रहे हैं -भक्ति को सुनाया भागवत कथा
एक बार की बात हैं, भगवान नारदजी पृथ्वी पर आये. पृथ्वी लोक सर्वोतम समझकर यहाँ पर पुष्कर, काशी, गोदावरी, हरिद्वार, श्रीरंग सभी तीर्थों का दर्शन कर लिए, लेकिन उनको शांति का अनुभव कहीं नहीं हुआ. नारदजी ने देखा की सारी पृथ्वी कलियुग से प्रताड़ित हो रही हैं. अब यहाँ पर सत्य, ताप, दान, दया आदि कुछ भी नहीं हैं. सभी जीव अपने पापी पेट को पालने में लगे हुए हैं.
आलसी, झूठ बोलना, हिंसा, मंदबुद्धि, भाग्यहीन उपद्रवग्रस्त हो गए हैं. घरो में स्त्रियों का राज्य हैं, साले सलाहकार बने हुए हैं. लडकियों का तोल मोल हो रहा हैं. लोग बाजार में अन्न बेचते हैं. कुछ स्त्रियाँ वैश्या बन गयी है. ब्राहमण पैसे लेकर वेद पढ़ते हैं.
ये सब नारदजी से देखा नहीं गया और वे भगवान श्री कृष्णा के लीला स्थल यमुनाजी के तट पर पहुँच गए.
वहां पर नारदजी आश्चर्यचकित हो गए. उन्होंने देखा कि वहां एक जवान स्त्री बैठी हुई रो रही थी. उसके पास दो वृद्ध लेटे हुए थे. और पास में बहुत सारी सैकड़ो स्त्रियाँ पंखा चला रही थी. तरुणी स्त्री रो रही थी, कभी वो दोनों वृद्धों को उठाती, और उनकी सेवा करती.
दूर से भगवान नारद देखकर अचंभित हो गए. उस युवती ने भगवान नारदजी को देख लिया और खड़ी हो गयी. और बोली! महात्माजी आप तो सभी के दुःख नष्ट करते हो तो जरा मेरा दुःख भी नष्ट करते जाइये. इतना कहकर वह युवती नारद जी को प्रणाम करती हैं.
तब नारद जी उस स्त्री से पूछते हैं. तुम कौन हो देवी? और ये दोनों पुरुष तुम्हारे क्या लगते हैं? और ये सैकड़ो कमल नयनी कौन हैं?
मेरा नाम भक्ति हैं. और ये दोनों मेरे पुत्र एक ज्ञान और दूसरा वैराग्य हैं. और ये सभी गंगाजी आदि हैं. जो मेरी सेवा के लिए आई हैं. समय के झर्जर फेरे से में तो जवान हो गयी लेकिन मेरे दोनों बेटे बूढ़े हो गए?
भक्ति कहती हैं. मेरा जन्म दक्षिण में हुआ, कर्णाटक में बड़ी हुई. महाराष्ट्र में सम्मान मिला, और गुजरात में मैं बूढी हो गयी. वहां गोर कलियुग से मेरा अंग भंग हो गया. लेकिन जब से मैं वृदावन आई हूँ मैं वापस जवान हो गयी हूँ. किन्तु मेरे सामने मेरे दोनों पुत्र थके मंदे पड़े हैं. हम तीनो साथ रहने वाले हैं. फिर ये विपरीतता क्यों?
नारदजी ने ध्यान लगाया और कहा. देवी! सावधान होकर सुनो?
ये कलयुग हैं, सदाचार, योगमार्ग, ताप आदि सभी विलुप्त हो गए हैं. संसार में जहाँ देखो वहां दुष्ट लोग सुखी और सत्पुरुष दुःख से मलिन हैं.
तुम जवान और तुम्हारे बेटे बूढ़े इसका कारण ये हे कि – लोग अभी भी भक्ति में लगे हुए हैं? अर्थात तुम्हारे ग्राहक आभी भी हैं. लेकिन तुम्हारे बेटों के कोई ग्राहक नहीं हैं. अर्थात कलयुग में कोई ज्ञानी और वैरागी होना नहीं चाहता.
भक्ति बोलती हैं? महाराजजी तो मेरा दुःख कैसे दूर होगा?
नारदजी – बाले ! यदि तुमने पुछा हैं तो मैं तुम्हे सब बताऊंगा. जिससे तुम्हारा सारा दुःख दूर हो जायेगा.
फिर भगवान नारदजी गीता, वेद, उपनिषद का पाठ करते हैं लेकिन ज्ञान और वैराग्य जागने का नाम ही नहीं ले रहे. तब नारद जी बड़े बड़े महात्माओ ऋषियों से पूछते हैं. गीता, वेद, शास्त्र से भक्ति तो जग गई लेकिन ज्ञान और वैराग्य नही जगे. फिर नारद जी तपस्या करते हैं. तब उनके सामने सनकादि मुनि आते हैं और तीनो को भगवत पूरान सुनाने को कहते हैं.
फिर नारद जी शुकदेवजी से भेट करते हैं. नारदजी शुकदेवजी से पूरी भागवत कथा का श्रवण करते हैं. और उनसे पूछते हैं, की ये कथा कितने दिनों में सुनानी चाहिए. तब शुकदेवजी कहते हैं नारदजी आप बड़े ही विवेकी हैं. भागवत कथा का श्रवण सात दिनों में होना चाहिए.
तब नारद जी भागवत कथा का श्रवण करना शुरू करते हैं…
भागवत कथा का सार – जिस दिन भगवन श्री कृष्ण इस भूलोक को छोड़कर गए, कलयुग का आरम्भ हो गया. यहाँ भला करने पर भी श्राप लग सकता हैं. कलियुग की दृष्टि ने राजा परीक्षित को भी श्रापित कर दिया.
सत-द्वापर युग में जो फल तपस्या, योग, समाधी से मिलता था, कलयुग में वो केवल हरिकीर्तन से मिल जाता हैं. इसलिए हरिकीर्तन करो. लोगो के कुकर्मो के कारन सभी वस्तुओं का सार निकल गया हैं. लोग पैसे के बदले कथा सुनाते हैं, इसलिए कथा का सारा सार मर गया. लोभ, पाखंड का आश्रय लेने के कारण ध्यानयोग का सार मर गया. स्त्रियों के साथ भैसों जैसे रमण किया जाया हैं. इसमें किसी का दोष नहीं हैं, ये तो इस युग का स्वाभाव हैं. तुम व्यर्थ ही चिंता कर रही हो. भगवन कृष्ण के कमल चरण का चिंतन करो. और तुम तो भक्ति हो, सदा उन्हें प्राणों से प्यारी हो.
इस प्रकार भक्ति को पूरी कथा सुनाई.यज्ञ संपन्न कराया. देवताओ ने पुष्पों की वर्षा की.
सुनकर भक्ति अति प्रसन्न हुई. भक्ति बोली महाराजजी अब मेरा सारा दुःख दूर हो गया. अब मैं कहाँ जाऊ.
नारदजी ने कहा. तुम भक्ति हो जाओ सही के ह्रदय में जाकर बैठ जाओ.
इस कथा में – भक्ति कौन हैं?, नारद जी की पृथ्वी यात्रा, भक्ति को कथा का श्रवण पान, भागवत कथा का सार विषयों को जाना.
इस भागवत पुराण की कथा से हमने क्या सिखा – जो फल यज्ञ, तपस्या, योग, समाधी से मिलता था, कलयुग में वो केवल हरिकीर्तन से मिल जाता हैं. इसलिए भगवान की भक्ति कीजिये. सत्कर्म कीजिये.
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