सूरदास जी की कृष्ण भक्ति – भगवन को भी आना पड़ा दर्शन देने

सूरदास जी की कृष्ण भक्ति – भगवान खुद आये दर्शन देने

सूरदास जी की भक्ति – सूरदासजी भगवान कृष्ण के बड़े ही उच्च श्रेणी के भक्त थे. सूरदास जी जन्म से ही अंधे थे. सूरदासजी और कृष्ण के किस्से कई कथाओं में वर्णित हैं. सूरदास जी वृन्दावन में रहते थे और हरि कीर्तन करते थे. वर्तमान में श्री नाथजी, नाथद्वारा में जो मंदिर हैं, पहले वो मंदिर वृन्दावन में था. यह मंदिर गोवर्धन पर्वत पर स्थित था. लेकिन फिर विट्ठल महाराज उस मंदिर को नाथद्वारा लेकर आ गए.
विट्ठल जी भगवान् के पुजारी थे. और इनके पिता जी का नाम श्री वलभाचार्यजी था. विट्ठल जी भगवान की बहकती किया करते और बड़े ही प्रेमसे भगवान का श्रृंगार किया करते थे. विट्टल जी प्रेम से भगवान को काजल लगाते, उनको वस्त्र पहनाते, उनको नहलाते.

पहली लघु कथा – सूरदास जी की कृष्ण भक्ति


सूरदासजी महाराज हमेशा उस मंदिर पर जाया करते थे. सूरदासजी उस मंदिर पर जाकर हमेशा हरि कीर्तन करते और पद गाते. सूरदासजी ने सवा लाख पद गाने और रचने का संकल्प लिया था.
भक्त सूरदासजी अंधे होते हुए भी हमेशा हरी के श्रृंगार को अपने पद में वर्णन करते थे. आज भगवान ने पीले वस्त्र पहने हैं, आज भगवान ने कौनसी माला पहनी हैं, आज भगवान को कौनसा तिलक लगा हैं. इन सभी को सूरदासजी अपने पद में गाते थे.
सूरदासजी का हमेशा हमेशा आना और आकर हरी श्रृंगार का सटीक वर्णन को देखकर महाराज विट्ठल जी हैरान हुए. उनको ज्ञात था की सूरदासजी तो अंधे है. लेकिन इनको मालूम कैसे पड़ता हैं, इनको तो कोई बताता भी नहीं हैं. विट्ठल जी ने सूरदासजी की परीक्षा लेनी चाही.
अगले दिन विट्ठल जी ने भगवन के आगे पर्दा कर दिया, और सरे कपडे उतार दिए. अब विट्ठल जी ने पुछा आज हरी ने क्या पहना हैं.
तब सूरदास जी एक पद गाते हैं – आज दिखे हरी नंगम नंगा… आज दिखे हरी नंगम नंगा…
तब विट्ठल जी ने समझ लिया की ये बाबा कोई आम बाबा नहीं हैं.
सूरदास जी इस लघु पौराणिक कथा से क्या सीखा – भगवान को देखने के लिए भौतिक नेत्र ही काफी नहीं हैं. उनको देखने के लिए दिव्य नेत्र चाहिए.


दूसरी लघु कथा – सूरदासजी के पदों की चोरी

सूरदासजी ने सवा लाख पदों को लिखने का संकल्प ले रख था. एसा वर्णित हैं की सूरदास जी अपने इस संकल्प को पूरा नहीं कर पाए थे. तो, स्वयं भगवान ने शेष पदों की रचना की थी.
एक बार दिल्ली के महाराजा भगवान सूरदास जी के पदों से बड़े ही प्रभावित हुए. तो राजा ने घोषणा की कि – जो कोई भी नुझे सूरदास जी के पद लाकर देगा. उनको मैं स्वर्ण मुद्रा दूंगा. राजा की घोषणा के बाद बहुत से लोगो ने सूरदासजी के पदों को प्रतिलिपित करना शुरू कर दिया. सूरदासजी ने अभी केवल 75 हज़ार पद ही लिखे थे कि इधर इस घोषणा के बाद ढाई लाख पद लिखे गए.


अब राजाजी भ्रमित हो गए उनको मालूम नहीं पड़ रहा था, कि कोनसे असली हैं और कौनसे नकली.
फिर सारे भोजपत्र जिनके ऊपर पद लिखे गए थे, उनको यमुना जी में प्रवाहित करा दिया गया. अब जो भी नकली थे वे सारे के सारे यमुनाजी में डूब गए और जो पद स्वयं सूरदासजी ने लिखे थे, वो यमुना जी मैं तैर रहे थे. तो ये सच्चे भक्त पर भगवान को कृपा.

तीसरी कघु कथा – सूरदासजी और भगवान का मिलन

क्या सूरदासजी को भगवान मिले थे? इसके ऊपर भी एक लघु कथा हैं.
एक बार सूरदासजी किसी भजन कीर्तन में जाने के लिए रास्ते से होकर जा रहे थे. सूरदासजी तो अंधे थे. लेकिन अंदाजा से अपनी लाठी से जा रहे थे. तभी अचानक हवा पलटी और सूरदासजी रास्ता भटक गए और एक कुए में गिर गए और लटक गए. अब सूरदासजी ने कुए में ही कीर्तन शुरू कर दिया. सूरदासजी की सरलता को देखकर भगवान एक बालक का रूप लेकर आये और सूरदासजी को कहा बाबा! आप मेरा हाथ पकड़ लो. सूरदासजी समझ गए, आ गए मेरे गिरधर गोपाल.
सूरदासजी कहते हैं मैं तो अँधा हूँ मुझे आपका हाथ कहाँ दिखेगा. लेकिन आपको तो मेरा हाथ पता हैं तो अआप ही मेरा हाथ पकड़ लीजिये. अब सूरदासजी का भगवान ने पकड़ लिया और सूरदास जी को बहार लेकर आ गए. अब सूरदासजी ने भगवान का हाथ पकड़ लिया. बालक ने कहा छोड़ो मुझे! छोड़ दो बाबा! सूरदासजी ने कहा भगवन बड़ी मुश्किल से तो आप मिले हैं. आपको कैसे छोड़ दू. अब मैं आपको नहीं छोडूंगा. भगवान जैसे ही हाथ छुड़ाकर जाने लगे तो राधा रानी वहां प्रकट हो गयी. सूरदासज इने माता को भी पहचान लिया. भगवान श्री कृष्ण राधा को रोकने लगे. मत जाओ! बाबा पकड़ लेगा, मत जाओ!
सूरदासजी ने राधा रानी के पैर पकड लिए और उनके हाथ में उनकी पायल आ गयी. तब राधा रानी सूरदासजी की भक्ति से प्रसन्न होकर उनको आंखे लौटा दी. सूरदासजी ने जी भर कर हरि और राधा रानी को देखा. सूरदास जी भगवन से कहा मुझे एक और वरदान दीजिए! आप मुझे वापस अंधा कर दीजिये.
अब मैंने आपको देख लिया. अब मुझे इस आँखों से और किसी को नहीं देखना हैं.

चौथी लघु कथा – सोने की गिलास

एक सूरदासजी खाना खा रहे थे. सूरदासजी का शिष्य खाना देकर कही बाहर चला गया. सूरदासजी ने कुछ कौर खाए तो उनके गले में अटक गया. अब सूरदासजी को पानी की जरुरत पद गई. पानी ला दो! पानी ला दो! अब पास में कोई हो तो लाये. अब मंदिर से भगवान सुयम सोने की गिलास लेकर आये और सूरदासजी को पानी पिलाया. इतने में उनका चेला आ गया, गुरूजी हम आपको पानी देना तो भूल ही गए.
सूरदासजी बोले हमको तो पानी पिला दिया. सवेरे विट्टल जी – अरे भगवान की गिलास चोरी हो गई, सोने की गिलास चोरी हो गई. सूरदासजी ने कहा पंडितजी लो ये लो सोने की गिलास. सूरदासजी ने भगवान से कहा अरे भगवान मैंने तो आपको पानी के लिए भी परेशान कर दिया.
पांचवी लघु कथा – सूरदास ज अंतिम समय


पांचवी लघु कथा – सूरदास जी का अंतिम समय

सूरदासजी अपने अंतिम समय में वृन्दावन में ही थे. अंत समय में सूरदासजी जमींन पर लेते हुए थे. सूरदासजी के शिष्य आये और बोले की बाबाजी आप जा रहे हैं. हाँ अब मेरा उद्देश्य पूरा हो गया. क्या आपकी कोई आखिरी इच्छा हैं? नुझे दुःख हो रहा हैं की उरिन्धावन को पीठ दिखा के जा रहा हूँ. मुझे उल्टा पेट के बल लेटा दो. शिष्यों ने सूरदासजी को पेट के बल लेटाया. तब सूरदासजी के मुंह में वृन्दावन की मिट्टी गयी और सूरदासजी को सत्गति प्राप्त हो गयी.तो ये थी सूरदास जी की भक्ति और उनके जीवन से जुडी कुछ कथाएं. अगर आपको अच्छी लगी तो दूसरी पौराणिक कथाएं भी पढ़ सकते हैं. हमारा कंटेंट ज्ञानोपयोगी हैं.

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