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History of maharana pratap in hindi (महाराणा प्रताप का इतिहास)
इस आर्टिकल में हम आपको महाराणा प्रताप के इतिहास (maharana pratap ka itihas) बताने वाले है. इस आर्टिकल को हमने कहानी (maharana pratap story in hindi) की तरह लिखा है. यकीन मानिएं इसको पढ़ते समय आपको बिल्कुल भी बोरियत नही होगी. लिखने के लिए महाराणा प्रताप एक ऐसा विषय है. जिसके बारे में जीतना लिखे और जितना पढ़े उतना कम लगता है. चलिए पढ़ते है इतिहास के लिजेंड महाराणा प्रताप की हिस्ट्री इन हिंदी.
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया (maharana pratap singh sisodiya) (जन्म 1504 – मृत्यु 1597)
“जो दृढ राखे धर्म को, तीखी राखे करतार.”
महाराणा प्रताप सिंह
यह शोर्य भूमि मेवाड़ का ध्येय वाक्य है. जिस पर महाराणा प्रताप मरते दम तक अटूट रहे. और अपनी स्वाधीनता के लिए जीवन भर मुगलों से संघर्ष करते रहे. ऐसे स्वाधीनता प्रेमी, योद्धाओं के योद्धा, भारत का वीर पुत्र, मेवाड़ केसरी, हिंदुआ सूरज, चेतक की सवारी, हिन्दुपति वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जीवन परिचय प्रस्तुत करते है. Maharana pratap history in hindi (महाराणा प्रताप हिस्ट्री इन हिंदी).
उनके उपनामों (टाइटल) से ही महाराणा प्रताप की महानता का अंदाजा लगाया जा सकता है. मेवाड़ को इतिहास में शोर्य भूमि कहा जाता है. यह कई वीर योद्धाओं की जन्म एव कर्म भूमि रही है. सिसोदिया वंशज महाराणा प्रताप भी उनमे से एक थे. महाराणा प्रताप का इतिहास, मेवाड़ धरोहर की गौरव गाथा है. जिसे भारत के इतिहास में सुनहरे पन्नो से लिखा गया है.
- Maharana Pratap History In Hindi (महाराणा प्रताप का इतिहास)
- महाराणा प्रताप का जन्म एव बचपन
- Maharana pratap एक योद्धा के रूप में
- Maharana pratap vs akbar fight history in hindi
- महाराणा प्रताप का युद्ध (हल्दीघाटी का युद्ध)
- दिबेर का युद्ध
- महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई ?
- Maharana Pratap story in hindi
भारत का वीर पुत्र महाराणा प्रताप का प्रारम्भिक जीवन
यह बात उस समय की है जब पूरे भारत पर मुगलों का कब्जा था. उस समय दिल्ली का शासक बादशाहपुर था. सन 1567 में अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर आक्रमण कर उस पर कब्जा कर दिया था. वहां के शासक राणा उदय सिंह और अपने परिवार के साथ कुंभलगढ़ आ गए और कुंभलगढ़ को अपनी राजधानी बनाई. कुंभलगढ़ को मेवाड़ की संकल्प संकटकालीन राजधानी कहा जाता है.
राजसमन्द में स्थित कुंभलगढ़ दुर्ग में, 9 मई 1507 को माता जीवंता बाई की कोख से महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था. महाराणा प्रताप उदय सिंह के जेष्ठ पुत्र थे. इनका पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था. उन्हें बचपन में प्यार से किका नाम कहा जाता था. इनके जन्म को लेकर इतिहासकारों में यह भी धारणा है कि, राणा प्रताप का जन्म पाली में हुआ था. क्योंकि उनकी माता जीवंता बाई वाली के पाली के सोनगरा अखेराज की के राज की पुत्री थी. उदय सिंह ने कुंभलगढ़ को असुरक्षित मानकर जयवंता बाई को पाली भेज दिया था. जहां महाराणा प्रताप का जन्म हुआ. पाली के जुनी कचहरी में आज भी उनके बाले काल के अवशेष मौजूद है.
महाराणा प्रताप का बचपन (maharana pratap childhood)
राणा प्रताप बाल्यकाल से ही वीर और साहसी थे. बाल्यकाल में ही उनमें नेतृत्व करने की अद्भुत क्षमता आ गई थी. वह खेल खेल में अपने साथियों का नेतृत्व करने लग जाते थे. कम उम्र में ही उन्होंने तलवारबाजी, तीरंदाजी एवं घुड़सवारी जैसे रण कौशल सीख लिए थे. राणा प्रताप का बचपन कुम्भलगढ़ दुर्ग में और जंगलो में बिता था. उनकी माता जयवंता बाईजी उनकी पहली गुरु थी. जिन्होंने धर्म का पाठ पढ़ाया कि, धर्म की रक्षा के लिए यदि प्राण भी त्यागने पड़े तो कोई संकोच ना करें.
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक (story of maharana pratap in hindi)
Maharana pratap story in hindi – महाराणा उदयसिंह के कई पत्नियां और कई पुत्र थे. उनमें से महाराणा प्रताप सबसे बड़े पुत्र थे. रीति-रिवाजों के मुताबिक राजा के सबसे बड़े पुत्र को ही अधिकारी बनाया जाता. लेकिन महाराणा उदय सिंह की दूसरी पत्नी धीरबाई (रानी भटियानी के नाम से विख्यात) पर विशेष लगाव था. इस कारण उनके पुत्र जगमाल सिंह को मेवाड़ का उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया. जबकि महाराणा प्रताप सबसे बड़े एवं योग्य पुत्र थे. इस निर्णय से राजपूत सरदार काफी नाराज हुए. 28 फरवरी सन 1572 को राणा उदयसिंह की मृत्यु हो गई.
इसलिए उदयसिंह की मृत्यु होने के बाद मार्च 1572 को गोगुंदा में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कर दिया गया. लेकी अब जगमाल सिंह इससे रुष्ट हो गया. जगमाल सिंह अकबर की शरण में चला गया. उसके बाद महाराणा प्रताप का कुंभलगढ़ दुर्ग में विधिवत रूप से राज्यतिलक किया. उस समय उनकी आयु 30 वर्ष थी. मेवाड़ की गद्दी पर बैठते समय महाराणा प्रताप ने शपथ ली थी कि, जब तक वह चित्तौड़ को मुगलों से आजाद नहीं करा लेंगे ना थाली में रोटी खाएंगे नहीं बिस्तर पर सोएंगे.
महाराणा प्रताप एक योद्धा के रूप में (महाराणा प्रताप हिस्ट्री)
महाराणा प्रताप एक योद्धा के रूप में एक साथ ही शक्तिशाली राजपूत योद्धा थे. महाराणा प्रताप का कद ऊंचाई 7 पॉइंट 5 फीट का था. उनका शरीर एकदम हष्ट पुष्ट एवं लोहे के सामान मजबूत था. राणा प्रताप का भाला 80 किलो का था और उनकी तलवार 25 किलो की थी. उनका कवच 100 किलो का था. कुल मिलाकर 200 किलों से अधिक वजनी हथियार एक साथ लेकर चलते थे. महाराणा प्रताप से स्वयं अकबर भी उनके समक्ष युद्ध करने से कतराता था.
महाराणा प्रताप के पास एक बहुत बड़ी सेना नहीं थी. ना ही उनके पास ज्यादा हथियार, घोड़े एवं हाथी थे. लेकिन उनके हौसले बुलंद थे. उन्होंने भीलो (एक जाति) को इकट्ठा किया उन्हें रण कौशल सिखाएं. और एक स्थाई सेना बनाई. महाराणा प्रताप जितने शक्तिशाली एवं वीर थे. उतना ही उनका घोड़ा (शहीद चेतक) और हाथी (रामप्रसाद) था. जिनकी इतिहास में अलग ही गाथाएं है. स्वयं अकबर भी उनके समक्ष युद्ध करने से कतराता था.
इन सभी कारणों से राणा प्रताप अब बादशाह अकबर की आंख का कांटा बन गया था. अकबर ने चित्तौड़ को तो जीत लिया था. लेकिन अब वह महाराणा को अपने अधीन करना चाहता था. इसी प्रयास में अकबर ने महाराणा को एक बार नहीं, दो बार नहीं, 4 बार समझौते के लिए अपने अलग-अलग सेनापतियों को भेजा.
महाराणा प्रताप का युद्ध (maharana pratap and akbar history in hindi)
महाराणा प्रताप और अकबर का युद्ध विश्व के सुप्रसिद्ध युद्ध में जाना जाता है. इस युद्ध की शुरुआत कुछ इस तरह हुई. संधि के सभी प्रस्ताव विफल हो जाने पर अंततः बादशाह अकबर ने युद्ध का ऐलान कर दिया. उसने जयपुर के महाराजा मानसिंह को शाही सेना का नेतृत्व करने भेजा. शाही सेना में उसके साथ ख्वाजा गयासुद्दीन, जगन्नाथ कछवाह, शेख मंसुद, काजिखान लूणकरण (बीकानेर) आदि थे. स्वयं अकबर इस युद्ध में नहीं था. मुग़ल की सेना में 80000 सैनिक थे. जबकि राणा प्रताप की सेना में केवल 20000 सैनिक ही थे. वही मेवाड़ की सेना का नेतृत्व का भार महाराणा प्रताप पर था.
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इस युद्ध में राणा के अन्य सेनापति भील सरदार पूंजा भील, झला बिदा एवं एकमात्र मुस्लिम (अफगानी) सेनापति हकीम का सूरी, भीमसिंह, कृष्णदास, रावत सांगा, रामदास साथ थे. अकबर की सेना, जिसका नेतृत्व राजा मानसिंह कर रहा था. और महाराणा प्रताप की सेना, दोनों हल्दीघाटी के मैदान में आर डटी. हल्दीघाटी राजसमंद जिले (राजस्थान) में नाथद्वारा से 11 किलोमीटर दूरी पर है. यहां पर मिट्टी हल्दी के समान पीली होने के कारण. इसे हल्दीघाटी कहा जाता है. इसे रक्त तलाई के नाम से भी जाना जाता है.
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21 जून 1576 को ऐतिहासिक हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा की सेना और अकबर की सेना के मध्य हुआ. महाराणा की सेना ने अपने पराक्रम का परिचय दिया. हल्दीघाटी का युद्ध एक अनिर्णायक युद्ध रहा. क्योंकि इसमें ना अकबर जीता और ना ही प्रताप हारा था. अकबर का उद्देश्य, राणा प्रताप को जिंदा या मुर्दा पकड़ना था. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका.
ये एक हैरान करने वाली बात है कि, जिस दिन यह युद्ध शुरू हुआ उसी दोपहर को समाप्त हो गया. लेकिन, इस युद्ध में दोनों सेनाओं के करीब 17000 सैनिक मारे गए. स्वयं महाराणा प्रताप इस युद्ध में घायल हो गए थे. तब महाराणा का घोड़ा चेतक उनके लिए मसीहा बनकर आया. चेतक ने घायल अवस्था में महाराणा को युद्ध भूमि से बचा कर सुरक्षित स्थान पहुंचाया.
जब वह उन्हें युद्ध से बचाकर दौड़ रहा था. तब उनके रास्ते में एक बहुत बड़ी खाई आ गई थी. वहा पर चेतक ने संभव छलांग लगाकर महाराणा को सुरक्षित जगह पहुँचाया. जहां चेतक ने अपनी अंतिम सांस ली और शहीद हो गया. उस समय महाराणा के आंसू निकल आए. इस युद्ध का आंखों देखा वर्णन अकबर के आश्रित इतिहासकार अलबदायूनी ने अपनी किताब “मुंतखाब उत तवारीख” में किया है. प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने हल्दीघाटी के युद्ध को “मेवाड़ की थर्मोपोली” कहा है.
इस युद्ध से महाराणा प्रताप को भारी जानमाल का नुकसान हुआ था. इसके बाद उन्होंने जंगलों में जीवन यापन किया. वे जमीन पर सोते और सुखी और घास की रोटिया उनका खाना होता. परन्तु उन्हें झुकना स्वीकार नही था. इसलिए वे कभी भी अकबर के सामने झुके नही. जंगलों में रहते हुए उन्होंने अपनी सेना को फिर से सुदृढ़ किया. उन्होंने छापामार पद्धति (गोरिल्ला वेलफेयर) से लड़ाई लड़ी. और मुगलों से धीरे-धीरे अपने क्षेत्रों को फिर से छीन लिया.
इस समय महाराणा को आर्थिक सहायता की जरूरत थी. रणकपुर नामक स्थान पर राणा प्रताप की भेंट भामाशाह नामक सेठ से हुई. सेठ भामाशाह ने अपना अथाह धन देकर राणा प्रताप की आर्थिक सहायता की थी. इस कारण भामाशाह को इतिहास में मेवाड़ का उद्धारक, दानवीर के रूप में जाना जाता है.
दिवेर का युद्ध (maharana pratap story in hindi)
हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर और महाराणा की टक्कर का अंत नहीं, शुरुआत हुई थी. इसके बाद अकबर ने अपने साम-दाम-दंड-भेद सभी का प्रयोग किया. अकबर, महाराणा को जिंदा या मुर्दा पकड़ना चाहता था. अक्टूबर सन 1582 में दिवेर (राजसमंद) का युद्ध हुआ. जिसमें महाराणा ने मुगलों की छावनियो पर आक्रमण किया. दिवेर नामक स्थान पर महाराणा ने मुगल सेना को परास्त कर दिया. राणा प्रताप की छवि एक पराक्रमी योद्धा के रूप में उभरी. दिवेर की जीत के बाद महाराणा प्रताप ने चावंड को अपनी नई राजधानी बनाई.
बादशाह अकबर अभी भी परेशान था. इस बार उसने, आमेर के राजा भारमल के छोटे पुत्र जगन्नाथ कछवाहा के नेतृत्व में. 5 दिसम्बर, 1584 को एक विशाल सेना मेवाड़ के विरुद्ध रवाना की. यह अकबर का राणा प्रताप के विरुद्ध अंतिम युद्ध (प्रयास) था. जो फिर विफल हुआ. जगन्नाथ भी राणा प्रताप को नही पकड़ पाया. वह प्रताप को पकड़ने में नाकामयाब रहा.
अब अकबर मेवाड़ के मामले में इतना निराश हो चुका था कि, छुटपुट कार्रवाई उसे निरर्थक लगी. उसके बाद राणा प्रताप ने एक-एक कर मुगलों से अपने अधिकांश क्षेत्र वापस छीन लिए. परन्तु वे केवल चित्तौड़गढ़ एवं मांडलगढ़ को मुगलों से नहीं छीन पाये. राणा प्रताप ने 1585 में अपने स्थायी जीवन का आरंभ चावंड (चामुण्डी नदी के किनारे) को मेवाड़ की नई राजधानी स्थापित करके किया. उन्होंने चावण्ड को ‘लूणा’ नामक बंजारे से विजित कर अपने अधीन किया था.
महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई? (Maharana pratap death story in hindi)
इतने महान और शक्तिशाली राजा जिनके सामने शत्रु भी कांपते थे. आखिर उनका अंत कैसे हुआ होगा. महाराणा प्रताप को किसने मारा होगा. महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई.
राणा प्रताप के आखिरी दिन. प्रताप के अंतिम बारह वर्ष और उनके उत्तराधिकारी राणा अमरसिंह (बड़ा पुत्र) के राजकाज के प्रारम्भिक 16 वर्ष (1613 तक) चावंड में बीते. चावंड 28 साल मेवाड़ की राजधानी रहा. चावंड गाँव से थोड़ी दूर राणा प्रताप ने अपने लिए महल बनवाए. उन्होंने चावण्ड के महल व घर वास्तुशास्त्र की ‘एकाशीतिपदवास्तु’ पद्धति (बस्ती के बीच में खुला चौक छोड़ना) पर बनाये गये थे.
19 जनवरी 1597 को धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते हुए राणा प्रताप घायल हो गए थे. इसी दौरान उनका निधन हो गया था. चावंड से थोड़ी दूर बांडोली नामक गाँव में राणा प्रताप का अंतिम संस्कार हुआ. जहाँ उनकी छतरी बनी हुई है. आज भी उन्हें वहा के स्थानीय समुदायों द्वारा पूजा जाता है.
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Maharana Pratap ने अपने अंतिम समय तक अकबर (मुग़ल) की अधीनता नही स्वीकारी. जिसका अफ़सोस अकबर को भी अंत तक रहा. जब बादशाह अकबर को राणा प्रताप की मृत्यु की सुचना मिली. तब अकबर की प्रतिक्रिया थी कि, वह दो मिनट तक मौन रहा. अकबर भी राणा प्रताप के गुणों और पराक्रम की इज्जत करता था. उसको हमेशा यह अफ़सोस रहा कि, वह राणा प्रताप को झुका नही सका.
महाराणा प्रताप के निधन के बाद, उनका ज्येष्ठ पुत्र राणा अमर सिंह उत्तराधिकारी हुआ. जिसके शासन में मुग़ल बादशाह जहाँगीर से मेवाड़ की संधि हुई. प्रताप के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र अमरसिंह मुगल-विरोध की परम्परा को अधिक समय तक नहीं अपना सका. सन 1615 ई. में बादशाह जहाँगीर के समय शहजादा खुर्रम के प्रयासों से मेवाड़-मुगल संधि हुई. किन्तु वह शांति व संधि को काल 1652 ई. तक रहा. पुनः मुगल प्रतिरोध महाराणा राजसिंह के समय में देखने को मिलता है.
पूरा नाम – | महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया |
राजवंश – | सिसोदिया राजवंश |
जन्म – | 9 मई 1540 (विक्रम संवत 1597, रविवार) |
जन्म स्थान – | कुम्भलगढ़ दुर्ग (वर्तमान-राजसमन्द) |
पिता का नाम – | राणा उदय सिंह (पूर्वाधिकारी) |
माता का नाम – | जयवंता बाई |
पत्नी – | पहली महारानी अजबदे (कूल 12 रानियाँ) |
ज्येष्ठ पुत्र – | अमरसिंह (कूल 17 संतान) |
धर्म – | सनातन धर्म |
राज्यभिषेक – | 1572, गोगुंदा में (32 उम्र) |
प्रमुख युद्ध – | 1576, हल्दीघाटी का युद्ध 1582, दिबेर का युद्ध |
ऊंचाई – | 7.5 फ़ीट |
निधन – | 19 जनवरी 1597 |
छतरी (समाधि) – | बांडोली, उदयपुर |
Unknown facts about maharana pratap in hindi
• Maharana pratap के घोड़े का नाम चेतक और हाथी का नाम रामप्रसाद था. इतिहास में यह एकमात्र उदाहरण है कि, किसी घोड़े को शहीद का दर्जा दिया गया.
• हल्दीघाटी के युद्ध में जब राणा प्रताप घायल अवस्था में थे. तब चेतक ने ही उन्हें रणभूमि से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था. जबकि चेतक खुद भी चोटिल था.•बलीचा नामक स्थान पर शहीद चेतक की छतरी समाधि बनी हुई है. जहां उसने अपने प्राण त्यागे थे.
• Maharana pratap ने अपने जीवन में दो महत्वपूर्ण युद्ध हल्दीघाटी का युद्ध (1576) और दिवेर का युद्ध (1582) लड़े थे. दोनों ही युद्ध लड़ाई मुगल बादशाह अकबर के विरुद्ध थे.
• हल्दीघाटी के युद्ध में कौन जीता? अकबर या राणा प्रताप. इस बात पर इतिहासकारों में मतभेद है. भारतीय मूल के इतिहासकार बताते हैं कि, इस युद्ध में राणा प्रताप की जीत हुई थी. क्योंकि अकबर उन्हें पकड़ने में असमर्थ रहा था. जबकि विदेशी इतिहासकार का मानना है कि, अकबर की जीत हुई थी. और राणा को वहां से भागना पड़ा था.
• राणा प्रताप मेवाड़ के अंतिम शासक थे. जिन्होंने मुगलों की ग़ुलामी नहीं स्वीकारी और अन्त तक संघर्ष करते रहे. राणा प्रताप के बाद उनके जेष्ठ पुत्र अमर सिंह ने मुगल बादशाह जहांगीर के साथ पहली मेवाड़ संधि की थी.
• मेवाड़ के तीन शासक उदय सिंह राणा प्रताप और अमर सिंह अकबर के समकालीन हुए थे.
•युद्ध के समय राणा प्रताप घोड़ों पर हाथी के मुख के समान मुकुट लगाते थे ताकि दुश्मन सेना के हाथी भ्रमित हो जाए कि, यह घोड़े है कि हाथी.
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दोस्तों इस आर्टिकल में जाना आपने महाराणा प्रताप का इतिहास (history of maharana pratap in hindi), maharana pratap story in hindi. आशा करते है यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा होगा. इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे.
Nice
NiceInformation Sir