शबर जाति के भील की कन्या जिसको शबरी भी कहा जाता हैं, इस कथा में हम आपको शबरी की कथा बताएँगे. किस प्रकार शबरी एक भील घराने से भाग निकली और ऋषियों की सेवा करते हुए भगवान् श्री राम का इंतजार करती रही, किस प्रकार भगवान् श्री राम शबरी की कुटिया पर आये. इसके साथ शबरी की पूर्व जन्म की कथा भी बताएँगे. शबरी का विषय इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि शबरी इतनी सरल थी की उसने अपने पिता रूपी गुरु के एक वचन पर पूरा अपना जीवन समर्पित कर दिया. इस कथा का सन्देश भी आपके साथ शेयर करूँगा. तो बने रहिये शबरी की कथा के साथ.
शबरी की कथा(शबरी कौन हैं)
बात उस वक्त की हैं जब भगवान् श्री राम का जन्म भी नहीं हुआ था. भील जाति के एक कबीले जिसके राजा(मुखिया) अज थे. अज के घर में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम श्रमणा था. श्रमणा, शबरी का ही दूसरा नाम हैं. शबरी की माता का नाम – इन्दुमति था. शबरी की जाति – शबर थी, जो कि भील से सम्बंधित थी. शबरी बचपन में पक्षियों से अलौकिक बातें किया करती थी, जो सभी के लिए आश्चर्य का विषय था. धीरे शबरी बड़ी हुई, लेकिन उसकी कुछ हरकते अज और इंदुमति की समझ से परे थे.
समय रहते शबरी के बारे में उसके माता पिता ने किसी ब्राह्मण से पुछा की वह वैराग्य की बातें करती हैं. ब्राह्मण ने सलाह दी की इसका विवाह करवा दो. राजा अज और भीलरानी इन्दुमति ने शबरी के विवाह के लिए एक बाड़े में पशु पक्षियों को जमा कर दिए. फिर जब इन्दुमति शबरी के बाल बना रही थी तो शबरी ने पुछा कि – माँ हमारे बाड़े में इतने पशु पक्षी क्यों हैं? तब इंदुमती बताती हैं, ये तुम्हारे विवाह की दावत के लिए हैं, तुम्हारे विवाह के दिन इन पशु पक्षियों का विशाल भोज तैयार किया जायेगा.
शबरी (श्रमणा) को यह बात कुछ ठीक नहीं लगी, मेरे विवाह के लिए इतने जीवो का बलिदान नहीं देने दूंगी. अगर विवाह के लिए इतने जीवों की बलि दी जाएगी तो मैं विवाह ही नहीं करुँगी. श्रमणा ने रात्रि में सभी पशु पक्षियों को आज़ाद कर दिया, जब श्रमणा(शबरी) बाड़े के किवाड़ को खोल रही थी तो, उसको किसी ने देख लिया. इस बात से शबरी डर गयी. शबरी वहां से भाग निकली. शबरी भागते भागते ऋषिमुख पर्वत पर पहुँच गयी, जहाँ पर 10,000 ऋषि रहते थे. शबरी को इस बात का अनुमान नहीं था, कि वह निचली जाति की हैं, और ऋषि उनको अपने आश्रम में स्थान नहीं देंगे.
इसके बावजूद शबरी छुपते हुए कुछ दिनों तक, जब तक वह पकड़ी नहीं गयी, रोज सवेरे ऋषियों के आश्रम में आने वाले पत्तों को साफ कर देती थी, और हवन के लिए सुखी लकड़ियों का बंदोबस्त भी कर देती, बड़े ही भाव से शबरी सविंधाओ से लकड़ियों को ऋषियों के हवन कुण्ड के पास रख देती थी. कुछ दिनों तक ऋषि समझ नही पाए, कि कौन हैं जो, उनके सारे नित्य के काम निपटा रहे हैं? कही कोई माया तो नहीं हैं. फिर जब ऋषियों ने अगले दिन सवेरे जल्दी शबरी को देखा तो उन्होंने शबरी को पकड लिया.
ऋषियों ने शबरी से उसका परिचय पुछा तो शबरी ने बताया की वह एक भीलनी हैं. ऋषियों ने भीलनी को नीच जाति का बताकर उसको ताड़ने लगे. तभी उसी समूह से एक ऋषि, ऋषि मतंग ने शबरी को उन ऋषियों से बचाया और उसको अपनी बेटी कहकर उसको एक कुटिया में शरण दी, और सेवा करने को कहा. समय बीतता गया, मतंग ऋषि बूढ़े हो गए. मतंग ऋषि ने घोषणा की – अब मैं अपनी देह छोड़ना चाह्ता हूँ. तब शबरी ने कहा कि एक पिता को मैं वहां पर छोड़कर आयी, और आज आप भी मुझे छोड़कर जा रहे हैं, अब मेरा कौन ख्याल रखेगा.
मतंग ऋषि ने कहा – बेटी तुम्हारा ख्याल अब राम रखेंगे. शबरी सरलता से कहती हैं – राम कौन हैं? और मैं उन्हें कहाँ ढूढून्गी. बेटी तुम्हे उनको खोजने की जरुरत नहीं हैं. वो स्वयं तुम्हारी कुटिया पर चलकर आयेंगे. शबरी ने मतंग ऋषि के इस वचन को पकड़ लिया कि राम आयेंगे. शबरी रोज भगवान् के लिए फुल बिछा कर रखती, उनके लिए फल तोड़कर लाती, और पूरे दिन भगवान् श्री राम का इंतजार करती. इंतजार करते करते शबरी बूढी हो गई, लेकिन अब तक राम नहीं आये. फिर एक दिन आ ही गया – जब शबरी के वर्षों का इंतज़ार खत्म होने वाला था. शबरी ने फुल बिछा कर रखे थे.
आते जाते लोगो को मना कर रही थी कि इस फुल पर भगवान चलेंगे. शबरी श्री राम के लिए बेर तोड़ कर लायी थी. यह निश्चित करने के लिए बेर मीठे हैं या खट्टे, शबरी ने बेर को चख चख कर उनको झूठे कर दिए. जब भगवान् श्री राम आये तो शबरी एक पत्थर के आसन के पास बैठी थी. शबरी ने पहली नजर में भगवान् को पहचान लिया. शबरी ने भगवान् का खूब आदर सत्कार किया, और उनको झूठे बेर खिलाये. इस प्रकार शबरी के वर्षो का इंतज़ार खत्म हुआ था, और उसको भगवान् श्री राम मिले थे. यह थी शबरी की कथा अगर आप शबरी के पूर्व जन्म की कथा को जानना चाहते हैं तो बने रहिये इस पोस्ट के साथ.
शबरी के पुर्व जन्म की कथा
शबरी अपने पुर्व जन्म में एक रानी थी, नाम परमहिसी रानी थी. एक बार कुम्भ के मेले में परमहिसी रानी और राजा दोने साथै में गए थे. राजा का वहां पर शिविर था. रानी को एक दिन अपने खिड़की से ऋषियों का समूह दिखा, जो की हवन कर रहे थे, और मन्त्रों का उच्चारण कर रहे थे. रानी परमहिसी का मन भी उन ऋषियों के बीच में बैठने का कर रहा था.
रानी ने राजा से आज्ञा मांगी. लेकिन राजा ने कहा की आप रानी हैं इस तरह आपको शोभा नहीं देता. आप उन ऋषियों के बीच में नहीं जा सकती हैं. परमहिसी रानी अपने कक्ष में जाकर रोने लगी. रात्रि को परमहिसी रानी अपने कक्ष से निकल कर त्रिवेणी तट पर गयी, वहां गंगा माँ से याचना करने लगी. हे माते, अगर मुझे दूसरा जन्म मिले तो, रूपवान और रानी मत बनाना. अब आपमें समाना चाहती हूँ. इतना कहकर परमहिसी रानी अपनी देह त्याग देती हैं, और जल समाधि ले लेती हैं. इसी कारण अगले जन्म में शबरी रूपवान नहीं थी, नहीं कोई राजघराने की.
शबरी के कथा से क्या संकेत मिलता हैं – शबरी ने अपने गुरु के केवल एक वचन “भगवान् श्री राम आयेंगे और इसके लिए तुम्हे कहीं जाने की जरुरत भी नहीं हैं, तुम उनका यहीं पर इंतज़ार करना” पर अपना पूरा जीवन लगा दिया. जबकि किसी एक विचार पर टिके रहना हर किसी के वश की बात नहीं होती हैं.
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बहुत ही सुन्दर ज्ञान वर्धक जानकारी प्रदान करने हेतु आभार। धन्यवाद शुभकामनाएं
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