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intro – bhagat singh biography in hindi
shahid bhagat singh (born-1907-death-1931) बहादुरी और बलिदानी का दूसरा नाम भगत सिंह. भारत माता के वीर सपूत सरदार भगत सिंह (sardar bhagat singh) का जीवन परिचय (biography in hindi) प्रस्तुत करते हैं. about Bhagat singh in hindi. शहीद-ए-आजम भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी हुए थे. जिन्होंने वतन के रक्षार्थ अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपने प्राण हंसते-हंसते न्योछावर कर दिए. शहीद भगत सिंह (shahid bhagat singh) जैसे क्रांतिकारियों ने अपने बलिदान से ब्रिटिश शासन की जड़े हिला दी थी. इन क्रांतिकारियों ने न केवल अपनी कुर्बानी दी बल्कि एक ऐसी विचारधारा को आगे बढ़ाया. जो आज भी करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है. भगत सिंह का कहना था, “वे लोग मेरी हत्या कर सकते हैं लेकिन मेरे विचारों की नहीं.”
पूरा नाम (full name) – | सरदार भगत सिंह |
उपाधि (soubriquet) – | शहीद ए आज़म, शहीदों के शहजादे |
जन्म (birth) – | 28 सितंबर सन 1907 |
जन्म स्थान (birth place) – | बंगा गाँव, लायलपुर,पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान में) |
परिवार (family) – | पिता-सरदार किशन सिंह माता-विद्यावती कौर बहन-3 भाई-1 (करताल सिंह) |
संगठन (एसोसिएशन) – | नौजवान भारत सभा (1926), हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (1928) |
निधन (death) – | 23 मार्च 1931 (फांसी) (आयु-23) |
प्रारंभिक जीवन ( early life of sardar bhagat singh in hindi )
यह बात उस समय की है. जब भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का राज था. ना ही उस समय भारत का बंटवारा हुआ था. चारों तरफ अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति की आबोहवा थी. ऐसे में 28 सितंबर सन 1907 को बंगा गांव, जिला लायलपुर, पंजाब प्रांत (वर्तमान पाकिस्तान) में भगत सिंह (sardar bhagat singh) का जन्म हुआ. उनका जन्म एक क्रांतिकारी परिवार पिता सरदार किशन सिंह और माता विद्यावती कौर के यहाँ हुआ था. सरदार भगत सिंह का घर, घर नहीं बल्कि एक क्रांति की पाठशाला था. उनके घर में सभी बड़े-बुजुर्ग क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहते थे. जब भगत सिंह का जन्म हुआ था. उसी दिन उनके चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह जेल से रिहा हुए थे.
बचपन | sardar bhagat singh childhood in hindi
भगत सिंह को बचपन में ही ऐसा माहौल मिला कि, उनके दिल और दिमाग में देशभक्ति और क्रांति की ज्वाला भड़क उठी. उनके घर में दादा, पापा चाचा सभी क्रांतिकारी विचारधारा वाले थे. तो वह छोटा बच्चा (भगत सिंह) इससे कैसे वंचित रह जाता. उसका भी क्रांतिकारी बनना स्वाभाविक था. भगत सिंह की बचपन की घटना जो उनके देश भक्ति और अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश का परिचय देती है.
उस समय उनकी उम्र महज ढाई साल थी. वे अपने पापा के साथ खेत में गए. पापा को जमीन में बीज होते हुए देखा तो उसने पापा से पूछा कि, आप क्या कर रहे हो. पापा ने जवाब दिया हम जमीन में बीज बोल रहे हैं ताकि, फसल उगे और हमें अनाज मिल सके. तब उस बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा, फिर हम बंदूके क्यों नहीं बोते. इससे ढेर सारी बंदुके की मिलेगी और हम अंग्रेजों को मारकर यहां से भगा देंगे.
13 अप्रैल 1919 की घटना (sardar bhagat singh)
जब भारत में रौलट एक्ट लाया गया. इसके तहत बिना वकील, बिना अपील, बिना दलील के किसी भी भारतीय को गिरफ्तार किया जा सकता था. इसी कानून के विरोध में 13 अप्रैल 1919 में को जलियांवाला बाग में क्रांतिकारी शांतिपूर्ण विद्रोह प्रदर्शन कर रहे थे. तभी अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर ने भीड़ भरी सभा पर अंधाधुंध गोलियां मारने का आदेश दे दिया. और इस एतिहासिक नरसंहार में करीब एक हजार निर्दोष जन मारे गए थे.
भगत सिंह जलियांवाला बाग हत्याकांड से सबसे ज्यादा दुखी और प्रभावित होते हैं. महज 12 साल की उम्र में, स्कूल की छुट्टी होने के बाद, 20 किलोमीटर पैदल चलकर, जलियांवाला बाग पहुंचते हैं. वहां खून से सनी हुई दीवारें और मिट्टी को देखकर, उनके अंदर क्रांति की ज्वाला भड़कने लगती है. वह उस रक्त से सनी हुई मिट्टी को एक बोतल में भर कर घर ले आते हैं. और उसे मंदिर में रखकर रोज उसकी पूजा करते हैं.
शिक्षा (education)
भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव में हुई. बाद में उन्होंने नेशनल स्कूल, लाहौर में एडमिशन लिया और कॉलेज की पढ़ाई करने लगे. कॉलेज के दौरान भगत सिंह नाटकों एवं ड्रामा कार्यक्रमों में भी भाग लेते थे. सरदार भगत सिंह को किताबें पढ़ना बहुत अच्छा लगता था. वे फ्रांसीसी क्रांतिकारी वेला और लेनिन जैसे क्रांतिकारियों से काफी प्रभावित थे. शुरुआत में भगत सिंह महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते थे. लेकिन,असहयोग आंदोलन रद्द करने के बाद उन दोनों में मतभेद दिखाई देने लगते है. बाद में भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़ दी और कानपूर चले गए. क्योंकि वे क्रांतिकारी गतिविधियों में अपनी भागीदारी देना चाहते थे.
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क्रांतिकारी संगठन और क्रांतिकारी गतिविधियां
उस समय कानपुर (उत्तरप्रदेश) क्रांतिकारियों का गढ़ था. वहां पर भगत सिंह की मुलाकात चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, गणेश शंकर विद्यार्थी जितेंद्रनाथ दास, बटुकेश्वर दत्त, राम प्रसाद बिस्मिल आदि क्रांतिकारियों से हुई. यह सभी उग्रवादी क्रांतिकारी थे. जो, मौत का बदला मौत से लेते थे. इनकी एक ही मांग थी- पूर्ण स्वराज. उनका कहना था कि, “बहरों (deaf britishes) को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत होती है.” भगत सिंह और उनके साथियों ने सन 1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी. जिसका बाद में हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के साथ विलय कर दिया गया था. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख नेता चंद्रशेखर आजाद थे. सन 1928 में नौजवान भारत सभा के विलय के बाद, इसका नाम बदलकर, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रखा गया था.
असहयोग आंदोलन
1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी ने अंग्रेजो के खिलाफ और असहयोग आंदोलन छेड़ दिया. इस आंदोलन में भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. लेकिन इसी दौरान 5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के चोरी-चोरा नामक स्थान पर, एक भीषण हिंसा हुई. इस हिंसा से गांधीजी स्तब्ध रह गए. और उन्होंने असहयोग आंदोलन रद्द कर दिया. गांधी जी के इस निर्णय से भगत सिंह बहुत नाराज हुए. उसके बाद गांधीजी और भगत सिंह के विचारों में मतभेद हो गया. गांधीजी अहिंसा के मार्ग पर चलते रहे और भगत सिंह ने हिंसा का मार्ग अपनाया.
काकोरी रेल कांड (kakori conspiracy)
9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल और हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के अन्य क्रांतिकारियों ने खजाने से भरी सरकारी ट्रेन लूट को अंजाम दिया. काकोरी रेल कांड को ऐतिहासिक रेल लूट कहा जाता है. क्रांतिकारीयों के पकडे जाने पर रामप्रसाद बिस्मिल एव उनके साथीयों को फांसी की सजा दी गई. इसके बाद नौजवान भारत सभा को हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन में मिलाया गया था.
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला
30 अक्टूबर 1928 को भारत में साइमन कमीशन लाया गया. इसी के विरोध में, एक रैली में सांडर्स की लाठियों के प्रहार से पंजाब-केसरी लाला लाजपत राय शहीद हो गए थे. लाला लाजपत राय की मृत्यु से सरदार भगत सिंह इतना गुस्से हुए कि, उन्होंने तुरंत मौत का बदला मौत से लेने की ठान ली. उन्होंने अंग्रेज सुप्रीडेंट ऑफ पुलिस जॉन स्कॉट को मारने की योजना बनाई. लेकिन 17 दिसंबर 1928 को, उन्होंने घटनास्थल पर जॉन स्कॉट की बजाए, असिस्टेंट सुप्रिडेंट ऑफ पुलिस जे.पी. सांडर्स को निशाना बनाया. और उसे मौत की नींद सुला दिया. इस घटना ने अंग्रेज अधिकारियों को पूरा हिला के रख दिया था. इस घटना के बाद भगत सिंह और उनके साथी मोस्ट वांटेड क्रिमिनल के लिस्ट में आ गए थे. अंग्रेज चाहते थे कि, कैसे ही कैसे भगत सिंह और उनके साथी को गिरफ्तार किया जाए. इसके बाद भगत सिंह, राजगुरु और भगवती भाभी सभी वेश बदलकर लाहौर से कोलकाता चले गए.
नेशनल असेंबली दिल्ली बम कांड, 8 अप्रैल 1929
ब्रिटिश सरकार को देश के आम आदमियों, मजदूरों और गरीबों की कोई परवाह नहीं थी. उनका उद्देश्य केवल और केवल भारतीयों का शोषण करना था. अपने इसी नापाक इरादे के साथ अंग्रेज मजदूर विरोधी बिल को पारित करवाना चाहते थे. लेकिन भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारियों को यह मंजूर नहीं था.
इस कारण बिल के विरोध में भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने नेशनल असेंबली, दिल्ली में, 8 अप्रैल 1929 को भरी सभा में बम फेंके. इसका उद्देश्य किसी को जान से मारना नहीं था. बल्कि उद्देश्य था कि, अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों को विश्व के सामने लाना. बम फेंकने के बाद उन्होंने “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे लगाए और लाल पर्चियां फेंकी. जिस पर लिखा था. “बहरों (deaf britishes) को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत होती है.” और इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए उन्होंने स्वयं अपनी गिरफ्तारी दी.
जेल में भूख हड़ताल, जून 1929
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार करने के बाद, जिस जेल में रखा था. उस जेल में भारतीय कैदियों और अंग्रेज कैदियों के साथ भेदभाव किया जाता था. भारतीय कैदियों को ना अच्छा खाना दिया जाता था और ना ही पढ़ने के लिए अखबार और किताबें दी जाती थी. जबकि उसी जेल में अंग्रेजी कैदियों को सारी सुविधाएं मिलती थी. भगत सिंह ने कहा कानून सबके लिए समान होता है. जब तक हमें भी अच्छा खाना, अच्छे कपड़े और पढ़ने के लिए अखबार-किताबें नहीं दी जाती. तब तक है वे भूख हड़ताल करेंगे.
जून 1929 भगत सिंह ने जेल में भूख हड़ताल शुरू कर दी. क्रूर अंग्रेज अधिकारियों ने भूख हड़ताल को रोकने के लिए, उन पर कई अमानवीय अत्याचार किए. उन्हें बर्फ की सिल्ली पर लिटाया जाता कोड़े मारे जाते. जबरदस्ती दूध पिलाया जाता. लेकिन न जाने में किस माटी के बने थे. वे अटूट रहे. 13 सितंबर 1929 को जेल में भूख हड़ताल के दौरान एक महान क्रांतिकारी जतिंद्र नाथ दास की मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु से पूरा भारत हिल गया. इसके बाद आखिरकार अंग्रेजों को झुकना पड़ता है और भगत सिंह की सारी मांगों को स्वीकार करना पड़ता है.
शहीदी दिवस | shahid bhagat singh death in hindi
26 अगस्त सन 1930 को कोर्ट ने कानूनी तौर पर भगत सिंह को अपराधी करार दिया. 7 अक्टूबर को कोर्ट द्वारा 68 पन्नो का निर्णय दिया गया. जिसमें भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी की सजा और अन्य क्रांतिकारियों को उम्र कैद की सजा दी जाने का प्रावधान था. कानूनों के मुताबिक 24 मार्च 1930 को सुबह फांसी का समय था. लेकिन अंग्रेज अधिकारियों को डर था कि, भारतीय जनता कहीं आंदोलन ना कर दे. इस कारण कानून को तोड़कर 23 मार्च की शाम को ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई. कहानी यहीं खत्म नहीं होती है.
फांसी के बाद अंग्रेजों को भारतीयों में हिंसा फैलने का डर था. इस कारण उन्होंने तीनों के पार्थिव शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर, जेल के पीछे की दीवार को तोड़कर, मिट्टी के तेल से जलाने लगे. जलती हुई आग को जब गांव वालों ने देखा तो, वे सब करीब आने लगे लगे. गांव वालों को करीब आता देख अंग्रेज अधिकारी तीनों के अधजले शरीर के टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंक कर भाग गए. उसके बाद गांव वालों ने उनके शरीर के टुकड़े जैसे-तैसे जोड़ कर, उनका विधिवत अंतिम संस्कार किया. इसके बाद भगत सिंह (shahid bhagat singh) और उनके साथी हमेशा के लिए अमर हो गए.
भगत सिंह ने शादी क्यों नहीं की?
घर वालों ने जब भगत सिंह को शादी करने के लिए कहा तो, उन्होंने ने शादी करने से इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा था कि,“यह हालात जो है इश्क करने के नहीं है. अब तो स्वतंत्रता ही मेरी दुल्हन बन कर आएगी.” यह कहकर भगत सिंह कानपुर चले गए.
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