अपनों से धोखा – लोहे को भी लोहा ही काटता हैं

अपनों से धोखा – आठ लघु कथाएं

अगर आपने भी अपनों से धोखा खाया हैं तो इन किस्सों को जरुर पढ़े
गैरों ने नहीं अपनों ने ही सताया हैं.
गैरों से मिले दुख की इतनी परवाह नहीं होती जितनी तब होती हैं जब कोई अपना ही हमको धोखा दे जाये. और हम को दर्द भी ज्यादा होता हैं. अपनों द्वारा सताए जाने पर, उनके दिए दुख दिए जाने पर वो सीधा हरदय पर प्रहार करते हैं.
यहाँ पर कुछ किस्से हैं – क्या होता हैं जब अपने ही हमको धोखा दे जाते हैं.

पहली लघु कथा – रावण और विभीषण

रावण और विभीषण सगे भाई थे. बस हुआ यह की, रावन ने विभीषण को घर से बाहर निकल दिया. रावन ने अपनों से दुश्मनी मोल ले ली. विभीषण को इसका बदला चुकाना था. इसलिए राम रावण युद्ध में विभीषण ने रावण का भेद खोल दिया. नतीजे में रावण युद्ध हार गया. साथ में अपनी जन भी गंवाई.

दूसरी लघु कथा – श्री राम का वनवास

राम को वनवास भेजने का कारण और कोई नहीं बल्कि उनकी माता कैकेयी थी. अगर रामजी वनवास नहीं जाते तो सीताजी का हरण नहीं होता. नहीं सीताजी को रामजी अलग होकर वन में रहना पड़ता.

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तीसरी लघु कथा – लोहा और सोना

एक सुनार की दुकान थी और लुहार की सोने ने लोहे से पुछा, कि जब मेरे ऊपर चोट पड़ती हैं तो मैं तो चु भी नहीं करता, और एक तुम हो की खट खट पूरा मौहल्ला हिला देते हो.
तब लोहा बोलता हैं, सोना तुम क्या जानो. तुम्हारे ऊपर जिसकी चोट पड़ती हैं वो लोहा हैं. और मेरे ऊपर जिसकी चोट पड़ती हैं वो भी लोहा. अपनों का दर्द क्या होता हैं ये मेरे से बेहतर और कोई नहीं जानता.

चौथी लघु कथा – द्रौपती का चीर हरण

द्रौपती का चीर हरण किसी और ने नहीं बल्कि उसी के देवर लोगो ने किया. दुर्योधन, दुर्शाशन दोनों और कोई नहीं पांडवो के भाई और द्रौपती के देवर ही थे.

पांचवी लघु कथा – कृष्णा और कंश

भगवान् श्री कृष्ण के सगे मामा कंश ने ही अपने भांजे को मारना चाहा. अपनी सगी बहन देवकी को जेल कोठरी में बंद कर दिया. अब भला किसी बहन के लिए इससे बड़ा दुःख और कौन-सा हो सकता हैं. ये दुनिया गैरों से नहीं बल्कि अपनों से ही परेशान हैं.

छठी लघु कथा – एक माँ की कहानी

आत्मदेवजी एक संत थे और उनकी पत्नी धुंधली माता थी. उनका एक बेटा था जिसका नाम था धुंधकारी. धुंधकारी इतना कपटी और दुष्ट था की, उसने लाठी से अपने पिता को पिटा. और माँ पर भी अत्याचार किया – जिसके नतीजे माँ धुंधली ने कुए में कूदकर अपनी जान दे दी.

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सातवी लघु कथा – जंगल और कुल्हाड़ी

कोई कुल्हाड़ी से जंगल में लकड़ी काट रहा था. लकड़ी ने कुल्हाड़ी से कहा की हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा की तुमे पूरे के पूरे जंगल को उजाड़ दिए. कुल्हाड़ी ने बड़े ही विनम्र से जवाब दिया, बिना मतलब के तो पंछी भी पर नहीं मारता. और मेरे पीछे तो तुम्हारे ही तो हाथ हैं. अगर ये डंडा नहीं होता तो मेरी क्या बला जो मैं तुम्हारा कुछ बिगाड़ पाऊ. मेरे साथ तुमसे दुश्मनी तो तुम्हारे भाई ने ही निभाई.

क्या अस्वथामा आज भी जिन्दा हैं


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