अश्वत्थामा का वध की सच्चाई – एक कथा

Published by Dinesh Choudhary on

bhagvaan shree krishna and arjuna sit on knee

अश्वत्थामा का वध सच्चाई


भागवत पुराण की कथा(अश्वत्थामा का वध) – महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ. कौरवो के 99 भाई मारे गए. दुर्योधन की जांगे टूटी हुई पड़ी हैं. दर्द से करह रहा था. गुरु द्रौणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा आये और पुछा मित्र! तुम्हारी कोई आखिरी इच्छा हैं क्या?
बस मैं अब मरना चाहता हूँ लेकिन मेरी आखिरी हैं मरने से पहले पांडवो का मरा मूंह देख लू तो…..
इतना सुनकर अश्वत्थामा ने दुर्योधन को धिलाषा दी. और पांडवो मरने के लिए चला गया. अब पांडवो के पांचो द्रौपती पुत्र सो रहे थे.तभी अश्वत्थामा वहां आया और उसने कुंती पुत्र पांडव समझ कर सभी को मार डाला. उसने पांचो भाईयो का सर उठाया और दुर्योधन के पास पहुंचा. दुर्योधन पहले तो बहुत खुश हुआ फिर, जब उसने देखा की ये तो द्रौपती पुत्र हैं तो फिर दुर्योधन दुखी हुआ और रोया… अरे अश्वत्थामा ये तुमने क्या किया? तुमने तो मेरा वंश ही ख़त्म कर दिया. इस दुःख से दुर्योधन ने वहीँ प्राण त्याग दिए.
द्रौपती ने देखा की उसके पांचो पुत्र मरे पड़े हैं तो उसके दुःख का ठिकाना नहीं रहा. कुंती पुत्रो ने भी मन में गुस्सा भर लिया जिसने भी मारा, उसको छोड़ेंगे नहीं. अर्जुन, भीम आदि भाइयो ने अश्वत्थामा को केश से पकड़ कर द्रौपती के सामने लाये और घुटने के बल बिठा दिया. द्रौपती अब तुम ही बताओ इसके साथ क्या करना चाहिए. तुम कहो तो इसको यहीं पर मार दे?
तब द्रौपती ने कहा अश्वत्थामा का वध मत करो. अब चाहे इसको मारो या जिन्दा छोड़ो, मेरे पुत्र तो लौट कर नहीं आयेंगे. अगर इसको मार दिया तो इसकी माँ भी मेरी तरह विलाप करेगी. इसको छोड़ दो.
भगवान श्री कृष्ण इस दृश्य को देख रहे थे. माँ द्रौपती की उदारता और दया की भावना को देखकर तुलसीदास जी ने एक बड़ा ही सुन्दर पद लिखा हैं –
दया धर्म का मूल हैं, पाप मूल अभिमान
तुलसी दया न छोड़िये, जब तक घट में प्राण ||
भीम ने भगवान श्री कृष्ण राय मांगी की इसके साथ क्या करना चाहिए. तब श्री कृष्ण कहते हैं – क्षत्रिय को ब्राह्मण, स्त्री आदि पर हाथ नही उठाना चाहिए, लेकिन जब ब्राह्मण भी पाप का भागीदार हो जाये तो उसके धर्म नष्ट हो जाता हैं. ऐसे ब्राह्मण को कभी छोड़ना नहीं चाहिए. अर्थात अश्वत्थामा का वध होना चाहिए.(अश्वत्थामा वध कैसे हुआ?)

अब अश्वथामा ने पांडवो को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया. अर्जुन ने कृष्ण भगवन से रे मांगी की अब क्या किया जाये? भगवान श्री कृष्ण ने भी अर्जुन को ब्रह्मास्त्र छोड़ने की अनुमति दी. अर्जुन ने भी ब्रह्नास्त्र छोड़ा. भगवान् ने दोनों ब्रह्मास्त्र को शांत किया. चूँकि अश्वथामा को मणि प्राप्त थी तो अर्जुन ने उस मणि को नक़ल कर अश्वथामा को इसे ही छोड़ दिया. उसके बाद अश्वथामा आज भी ऐसे ही कहीं जंगलो में घुम रहा हैं. और एसा कहा गया हैं की कल्प अनंत तक अश्वथामा का अस्तित्व रहेगा. अर्थात अंत समय में अश्वथामा मरा नहीं था.


अश्वत्थामा कौन था? अश्वथामा किसका पुत्र था?
अश्वत्थामा गुरु द्रौणाचार्य जी का पुत्र था.


भागवत पुराण की इस कहानी से क्या सीखा – 1. गुरु द्रौणाचार्य एक महान गुरु थे. लेकिन उनका पुत्र कपटी और धूर्त था. तो ये जरूरी नहीं हिं की महान लोगो की संतान भी महान हो. भगवान श्री कृष्ण के वंश ने भी मदिरा का सेवन किया, तो भगवान ने उको भी नहीं छोड़ा. अर्थात कपटी, दुराचारी न बने.

  1. द्रौपती से क्या सीख ले – दया हमारा मूल धर्म हैं. जान के बदले जान लेने से हमारा दुःख कम नहीं होगा. बल्कि हम खुद कीसी के दुःख का भागीदार बन जायेंगे.

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