जीवन में दुख का कारण – एक प्रेरणात्मक विचार

Published by Dinesh Choudhary on

a back look of girl with gray hair

जीवन में दुख का कारण – सारे दुखों की जड़


जीवन में दुख का कारण– जब से इंसान की उत्पति हुई हैं. तब से लेकर आज तक ऐसा को नहीं हैं जो ये कह सकता हैं की वो पूरी तरह से संतोष और संतुष्ट हैं. सभी के पास को न को दुःख होता ही हैं. अच्छा ! जीवन में दुःख का क्या कारण क्या हो सकता हैं? दुःख के कारण अनेक हो सकते हैं. प्रत्येक सजीव को जीवन जीने के लिए लेवल तीन चीजों की जरुरत पड़ती हैं. ये तीनो चीज़े – रोटी, कपड़ा, मकान. और जानवर को तो कपडा और मकान की जरुरत भी नहीं पड़ती हैं. बस इन तीन चीजो के अलावा मनुष्य जो भी सोचता हैं वो सब उसकी इच्छाए हैं. और इच्छाएं पूरी नहीं होने पर अपना आतंरिक दुःख प्रकट करता हैं.
इच्छाएँ पूरी करों, अच्छा काम करो, खूब मेहनत करो, खूब पैसा कमाओ. लेकिन सोचो उतना ही जितना हासिल कर सको. दुःख आने का एक सबसे बड़ा कारण “हम जिंदगी से जितनी आशा करते हैं , करते उससे कम हैं.”
तीन दुःख – तन, मन, धन से आदमी दुखी हो सकता हैं. हो सकता हैं, किसी के पास धन की कमी हो, हो सकता हैं कोई किसी बीमारी से ग्रस्त हो, या ये भी हो सकता हैं को मरने से डरता हो.
अच्छा तो मैं आपको जीवन के कुछ सत्य बताता हूँ, जिनके ऊपर तो आँख बंद करके विस्वास कर लेना चाहिए.
मिट्टी का घड़ा और मिट्टी में सत्य कौन हैं?
बिलकुल! मिट्टी ही सत्य हैं. एक दिन आएगा जब मिट्टी के घड़े को टूटना हैं. और वापस मिट्टी में ही मिल जाना हैं.
ठीक उसी प्रकार, हमारा शरीर भी मिट्टी का खिलौना हैं. किसी दिन इसको भी मिट्टी में ही मिलना हैं. सत्य, तो केवल आत्मा है.
कुछ लघु कहानियां जो दुःख के कुछ विषयों से उभरने के रस्ते से अवगत करा सकती हैं.

पहली लघु कथा – जीवन में दुख का कारण

एक बार एक गाँव के सेठजी ने अपने घर पर विशाल जलपान का आयोजन किया था. तो सेठजी ने अपने गाँव के दो पंडितो को आमंत्रित किया.
अब इतने बड़े सेठ के घर से निमंत्रण आया हैं तो कुछ दक्षिणा तो मिलेगी ही. एक पंडित सोचता हैं कि हमको दक्षिणा में अगर 10 रूपये मिल जाये तो, तो हमारा काम हो जायेगा. दूसरा पंडित सोचता हैं अगर दक्षिणा में अगर 100 रुपये मिल जाये तो कम बन जायेगा. दोनों सेठजी के घर गए और दोनों की खूब अच्छी तरह से खातिरदारी हुई. सेठजी को धन्यवाद देकर जैसे ही प्रस्थान करने वाले थे, सेठजी ने दोनों 51 51 रुपये दिये.
अब पहला पंडित जिसने 10 रुपये की आस की उसको तो ज्यादा मिल गया.
दूसरा पंडित जिसने 100 की आश लगायी थी, उसको तो उसकी इच्छा से कम मिले.
यही तो कारण हैं जीवन में सबसे बड़े दुःख का, चलिए आपको एक और किस्सा बता हूँ.

jivan-me-dukh-ka-karan


दूसरी लघु कथा -जीवन में दुख का कारण

एक आदमी ने किसी तरह से पांच लाख रुपये जोड़-जोड़ कर इक्कठे किये. अब उसने इन पांच लाख से कोई बिज़नेस- धंधा शुरू किया. अभी काम शुरू किये हुए 1 महिना भी नहीं हुआ की उसने महीने का 1 लाख कमाने की आश लगा दी. अब आप ही बताइये की भला दिमाग की कोरी कल्पना अगर पूरी होने लग जाये तो फिर मेहनत का को नाम ही नहीं रहेगा. हां किसी भी धंधे को बहुत बड़ा किया जा सकता हैं, लेकिन उसके लिए समय और मेहनत लगती हैं.
मेहनत के बिना कभी भी कुछ पाने की आश मत करना. क्योंकि केवल सोचने से दिमाग में कुछ हारमोंस रीलीज होंगे, जो आपकी इच्छा के प्रति उतेजित तो करेगी, लेकिन अगर पूओरा नहीं कर प्पये तो एक बड़ा दुःख का कारन भी बनेगी.

तीसरी लघु कथा – पैसे कमाने का लालच

आज कल ये बहुत चल रहा हैं. हर कोई बिना मेहनत या कम मेहनत करके अल्प समय में धनवान बनना चाहता हैं. इसका एक बहुत अच्छा उदहारण हैं – शेयर मार्केट. एक व्यक्ति जो महीने का 15 हज़ार कमाता हैं. शेयर मार्किट से वही व्यक्ति एक दिन का 15 हज़ार कमाने की आश रखता हैं. ऐसे बहुत से लोग हैं, जो शिघ्र अमीर बनने के चक्कर में अपनी पूरी जीवन की पूँजी दाव पर लगा देते हैं. और फिर दुःख के सागर में डुबकी लगते हैं.
बिलकुल शेयर मार्किट से अमीर बना जा सकता हैं लेकिन फिर मेहनत, आपकी, सीख, कुशलता भी तो चाहिए.
जीवन का कोई भी दुःख हम खुद ही पैदा करते हैं और पछताते भी खुद ही. तो क्या होना चाहिए?
अपनी क्षमता के अनुसार सोचे, जो सोच लिया उसके लिए मेहनत करे, और फल की इच्छा कभी नहीं करे. जब मेहनत कर ही ली तो उसका फल तो मिलगा ही.
इच्छाओं के लिए नहीं जरूरतों के लिए सोचे. इच्छाए तो रावण की भी पूरी नहीं हुई. उसका तो महल भी सोंने का था. उस महा बुद्दिमान की इच्छाएं भी नहीं हो सकी तो हम तो बहुत सामान्य बुद्धि जीव हैं.
वैसे भी गीता और सर्वमान्य ग्रन्थ भी तो यहीं कहते हैं – कर्म करते रहो फल की इच्छा मत करो.


तो इस प्रेरणात्मक विचार “जीवन में दुख का कारण क्या हैं” से हमने क्या सीखा –
गौ-धन गज धन बाज धन और रतन धन खाय,
जब आवे संतोष धन, सब धन दूर हो जाय ||
मतलब संतोष ही सबसे बड़ा धन हैं.
हम अपने सामर्थ्य के अनुसार सोचेंगे, मेहनत क्षमता से अधिक करेंगे, और फल की इच्छा बिलकुल भी नहीं करेंगे. और जितना भी मिलगा उसमे संतोष कायम कर लेंगे.

हम प्रेरणात्मक कहानियों और विचारो के अलावा दुसरे विषयों पर भी हिंदी कहानियां लिखते हैं. हमारा कंटेंट ज्ञानोपयोगी हैं, आप उसको भी नीचे दी गयी लिंक से पढ़ सकते हैं.

क्लिक और हिंदी कहानियां पढ़े

क्या भगवान् पापियों का समर्थन करते हैं क्या


हमारे द्वारा लिखी गयी कहानियों को निशुल्क अपनी मेल में प्राप्त करने के लिए नीचे अपना विवरण भरे.

[email-subscribers-form id=”5″]


0 Comments

Leave a Reply

Avatar placeholder

Your email address will not be published. Required fields are marked *