अर्जुन की प्रेम कथा – महाभारत में कैसे हुआ अर्जुन का वध

Published by Dinesh Choudhary on

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अर्जुन का वध – महाभारत की कथा

महाभारत के सबसे बड़े योद्धा और भगवान कृष्ण के सच्चे भक्त अर्जुन, जो मानसिक बल के साथ साथ शारीरिक बल से भी परिपूर्ण थे. महाभारत कथा की इस श्रंखला में अर्जुन की तीन ऐसी कथाओं के बारे में जानेंगे जो शायद आपको मालूम भी नहीं होगी. अर्जुन महाराजा पांडू और कुंती रानी के पुत्र थे. अर्जुन इतने सरल सवभाव के थे की एक बार द्रौपती को कुंती से मिलाने के लिए में गए थे. माता कुंती ने बिना देखे ही बोल दिया की तुम पांचो भाई बराबर भागो में बाँट लो, अर्जुन ने ऐसा ही किया. इस कथा श्रेणी में पांच कथाओ के बारे जानेंगे, जो की अब तक आपसे अज्ञात थी.

1 अर्जुन की प्रेम कहानी (अर्जुन की कितनी पत्नियां थी?)

सम्पूर्ण महाभारत में अर्जुन की चार प्रेम कथाओं का वर्णन मिलता हैं. अर्जुन की चार पत्नियां थी – द्रौपदी, उलुपी, चित्रागंदा और सुभद्रा. अर्जुन का जीवन द्रौपथी और सुभद्रा के साथ बिता. लेकिन इनके अलावा अर्जुन को दो – नागाराजपुत्री उलुपी, और मणिपुर की योद्धा कन्या चित्रागंदा. सुभद्रा – सुभद्रा अर्जुन का प्रथम प्रेम था. जब अर्जुन आश्रम में द्रौणाचार्य से दीक्षा ले रहे थे, तब उनका एक मित्र जिसका नाम गदा था, अक्सर अपनी चचेरी बहन सुभद्रा की सुन्दरता का जिक्र किया करता था. तभी से अर्जुन सुभद्रा से प्रेम करने लगे और आगे चलकर उनसे सादी भी की. लेकिन इसके पहले द्रौपती के साथ स्वयंवर हो चूका था. अर्जुन ने सुभद्रा से विवाह भागकर किया था, इसमें भगवान कृष्ण ने उनका भागने में साथ दिया था.

द्रौपती – कौरव द्वारा लाक्षागृह में आग लगाये जाने पर किसी तरह पांडव वहां से भाग निकले थे और पांचाल देश की तरफ चल दिए, उस वक्त सभी पांडव ब्राह्मण के वेश में रह रहे थे.कुछ समय बाद पंचाल नरेश द्रुपद की पुत्री द्रौपती का स्वयंवर होने जा रहा था. महर्षि वेदव्यास के कहने पर पांडव वहां चले गये, और वहां से स्वयंवर में मछली की आँख में तीर लगाकर द्रौपती को लेकर आ गए. अर्जुन और युधिष्ठिर के मतभेद के कारण अर्जुन को 12 वर्ष की लम्बी यात्रा पर जाना पड़ा. इसके दौरान अर्जुन को दो बार प्रेम हुआ.

नागा राजकुमारी उलुपी – इंद्रप्रस्थ की स्थापना के बाद अर्जुन बारह वर्ष की लम्बी यात्रा पर निकल गए. इस अभियान में अर्जुन की मुलाकात ऐरावत वंश की राजकुमारी उलुपी से हुई. उलुपी अर्जुन को देखते ही विमुग्द हो गयी, और उसको पाताललोक चलने का अनुरोध किया. पाताललोक में उलुपी ने अर्जुन के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा. दोनों का विवाह हुआ. विष्णु पुराण में वर्णित हैं कि अर्जुन और उलुपी के संयोग से इरावान नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था.

चित्रागंदा – बारह वर्षो के अभियान के दौरान अर्जुन को दूसरा प्रेम चित्रागंदा से हुआ. एक दिन अर्जुन किसी पेड़ की छाया में आराम कर रहे थे. तब चित्रागंदा किसी काम से वहां से गुजर रही रही. तब उसने अर्जुन की निद्रा में दखलंदाजी की, अर्जुन ने उसकी कुरूपता का हास्य बनाकर वहां से जाने को कहा. चित्रागंदा को यह बात अची नहीं लगी और कामदेव की तपस्या की, और एक सुन्दर स्त्री बन गई. फिर जब चित्रागंदा अर्जुन के सामने गई तो अर्जुन मोहित हो गया और दोनों ने विवाह कर लिया, दोनों से उत्पन्न हुई संतान का नाम – बब्रुवाहन था. अर्जुन और चित्रागंदा तीन साल तक साथ रहे.

2 अर्जुन का वध कैसे हुआ

पांडवो का वध कोई नहीं कर सकता था, सभी पांडव अजेय थे. पपांडवो को मारने के लिए समय समय पर कई योधाओं ने तपस्या की लेकिन, भगवान ने मारने का वरदान किसी को भी नहीं दिया. लेकिन फिर भी एक कथा वर्णित हैं जिसमे अर्जुन का पुत्र ही अर्जुन को मार देता हैं. एक बार वेदव्यास और श्री कृष्ण के कहने पर पांडव ने अश्वमेव यज्ञ करने का निश्चय किया. अर्जुन को घोड़े का रक्षक बना कर भेजा. घोड़ा घूमता घूमता मणिपुर पहुंचा, बब्रुवाहन को पता चला की उसके पिता आये हैं तो,

बब्रुवाहन स्वागत करने के लिए निकला लेकिन, अर्जुन ने उसको खरी खरी सुनाई, और युद्ध के लिए ललकारा. बब्रुवाहन की सौतेली माँ उलुपि ने युद्ध को धर्म बताया, और युद्ध करने को कहा. युद्ध में बब्रुवाहन मुर्छित और अर्जुन मारा गया. बब्रुवाहन भी आमरण अनशन के साथ वही प्राण त्यागने को कहा. उलुपि ने अपनी नागमणि के सहारे अर्जुन को वापस जीवित कर दिया था. इस प्रकार पांडव अंत समय तक मरे नहीं थे, बल्कि देव लोक सिधारे थे.

3 अर्जुन की शक्तियां

अर्जुन की शक्तियां को उसकी धनुर्विद्या महान बनाती हैं. महाभारत के युद्ध के ठीक पूर्व अर्जुन ने अपने भाइयों से युद्ध करने से इंकार कर दिया, अपनी हर भी स्वीकार कर ली. लेकिन अर्जुन में गीता का उपदेश सुनने के पश्चात पांच गुण(शक्तियां) आये थे. पहला बल -अर्जुन शारीरिक बलशाली तो पहले ही थे लेकिन गीता के उपदेश के बाद मानशिक रूप से भी बलवान हो गए थे. दूसरा तेज – अर्जुन का तेज इतना प्रभावशाली था की हर कोई उस पर मोहित हो जाता था. अर्जुन के सर पर तेज उसके व्यक्तित्व में था. तीसरा धैर्य – अर्जुन धैर्यवान होने के कारण, युद्ध में कुशल नीतियाँ बनाता था, और सदैव उनमे विजय प्राप्त करता. चौथा पुरुषार्थ – अर्जुन हर एक काम को करने की क्षमता रखता था.

अर्जुन के सामने कोई भी परेशानी आती तो उसका बड़े सटीकता से उसका सामना करता. पांचवा विषादहीनता – गीता सुनने के पश्चात अर्जुन में भावुकता का गुण नष्ट हो गया. इस प्रकार अर्जुन के पास सभी प्रकार की सक्तियाँ थी.

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