भागवत की महिमा – पापी को भी पार लगाते हैं
भागवत की महिमा – पापियों को भी पार लगाते हैं -एक समय की बात हैं सनकादि भगवान, भगवान नारदजी को भागवत कथा सुना रहे थे. भगवान नारदजी ने सनकादि जी से प्रश्न किया कि भगवन “ये बात तो समझ आती हैं कि जो संत, महापुरुष अच्छे कर्म करते हैं उनको सद्गति प्राप्त होती हैं. लेकिन क्या ऐसा कोई हुआ जिसने घोर पाप, अत्याचार किया हो, और वो भी इस भवसागर से तर गया हो?
तो भगवान सनकादि नारदजी को एक कथा सुनाते हैं. वो कथा कुछ इस प्रकार हैं-
एक गाँव के बाहर एक पंडितजी रहते थे. पंडितजी का नाम था – आत्मदेवजी. आत्मदेवजी अपनी पत्नी धुंधली के साथ एक कुटिया में रहते थे. आत्मदेवजी और धुंधली की कोई संतान नहीं थी.
इसलिए से गाँव वाले लोग धुंधली और आत्मदेवजी को ताना मारते थे. रोज रोज असह्य ताना सुनकर आत्मदेवजी ने निश्चय किया की वो अब इस गाँव में नहीं रहेंगे और घर बार छोड़कर कहीं चले दूर जंगल में चले जायेंगे. जंगल में प्रस्थान करने से पहले आत्मदेवजी अपने गुरूजी से मिलने गए. गुरूजी, मेरी कोई संतान नहीं हैं, और मैं रोज ताने सुन सुन कर तंग आ गया हूँ. अब घर बार को छोड़कर संत बनकर भजन कीर्तन करूँगा.
गुरूजी ने पुछा तुम संतान के लिए इतना विलाप कर रहे हो. गुरूजी ने एक फल को मंत्र कर आत्मदेवजी को थमा दिया. जाओ! इस फल को अपनी पत्नी को खिलाओ. तुम्हारा कष्ट दूर होगा और तुम्हे संतान की प्राप्ति होगी.
आत्मदेवजी भागे भागे घर गए और धुंधली को वो फल थमा दिया.
धुंधली, आत्मदेवजी के विचारो से एकदम विपरीत थी. उसको तानो से कोई फर्क नहीं पड़ता और न ही उसने कभी संतान न होने का कभी अफ़सोस किया.
आत्मदेवजी ने कहा जल्दी फल खा लो. धुंधली सोच विचार में पड़ जाती हैं. अगर फल खा लिया तो गर्भवती हो जाउंगी. अगर गर्भवती हो गई तो मेरा पेट बड़ा हो जायेगा. नहीं नहीं!
धुंधली, आत्मदेवजी से कहती हैं अभी मैं कुछ काम को निपटा लेती हूँ फिर इस फल को खा लुंगी.
पड़ोस से कोई स्त्री आती हैं. धुंधली बताती हैं की ये फल खाने मैं गर्भवती हो जाउंगी. स्त्री ने कहाँ ये तो अच्छी बात हैं.
अरे नहीं अगर इस फल को खा लिया तो मेरा पेट बड़ा हो जायेगा, फिर मैं चलूंगी कैसे. अगर किसी दिन मेरे घर में आग लग गई तो मैं भागुंगी कैसे, और कभी चोर आ गया तो उसको कैसे पकडुगी. और मैंने तो सुना हैं कभी कभी गर्भ्वाती महिला बच्चे को जन्म देते हुए मर भी जाती हैं. इतने सारे कष्ट मैं नहीं झेल पाऊँगी. मैं नहीं खाउंगी ये फल.
आत्मदेवजी से छुपाकर धुंधली माता वो फल गाय को खिला देती हैं. अब गाय गर्भवती हो जाती हैं.
इस बात का यकीं दिलाने के लिए की धुंधली माता भी गर्भवती है, माताजी हमेशा कपडे को ठूस लेती थी. नौ महीने बाद धुंधली ने पैसे देकर अपनी बहन से बच्चा खरीद लिया.
अब बच्चे का नाम धुंधकारी रखा. और धुंधली माता ने जिस गाय को फल खिलाया, उसने भी एक बच्चे को जन्म दिया, बच्चे का नाम रखा गोकर्ण. गोकर्ण जी बहुत बड़े पंडित हुए. गोकर्णजी हमेशा भगवन का पाठ करते रहते थे.
धुंधकारी बड़ा हुआ. धुंधकारी बड़ा ही दुष्ट और कपटी किस्म का व्यक्ति बना. धुंधकारी हमेशा अपनी माँ से पैसे लेकर जुआ खेलता था, शराब पिता था, और वैश्यों को भोगता था. धुंधकारी में पंडित का एक भी गुण नहीं था. जब सरे पैसे उदा दिया और माँ ने भी मना कर दिया तो धुंधकारी अपने पिताजी आत्मदेवजी से पैसे मांगता हैं. पिता जी ने भी मना कार दिया सारे पैसे तो जुए में उडा दिए अब कुछ नहीं बचा. पिता के ऐसे बोल सुनकर धुंधकारी ने जमकर पिता की लाठियों से धुलाई की.
अपनी संतान का अत्याचार को देखकर आत्मदेवजी महाराज रो पड़े. तभी, गोकर्णजी महाराज पिताजी को ज्ञान देते हैं. गोकर्ण जी ने आत्मदेवजी को सम्पूर्ण भागवत का पथ कराया. गोकर्ण जी ने कहा कि आप किसे अपना बेटा कह रहे हो? आप मुझे एक ईएसआई वस्तु बता दीजिये जिसको आप अपना कह सकते हैं. आप अपने शरीर को भी अपना नहीं कह सकते. अगर शरीर अपना होता तो क्या बुढ़ापा में साथ छोड़ता.
गोकर्ण जी के वचन सुनकर आत्मदेवजी अति प्रसन्न हो गए और उनको मोक्ष की प्राप्ति हो गयी.
धुन्द्कारी ने अपनी माँ के साथ भी अत्याचार किये. माता धुंधली भी कुए में कूदकर अपनी जान दे देती हैं.
धुंधकारी पांच पांच वैश्याओ के साथ रमण करता था. अंत में उसे भी पांचो वैस्याओ ने धुंधकारी का गला घोटकर मार दिया.
घोर अत्याचारी और पापी को बांस की योनी प्राप्त हुई. तब गोकर्ण जी साथ दिन में उनको भी भागवत कथा सुनाई, और साथ दिनों में सथो गांठे खुल गयी. और धुंधकारी को सत्गति प्राप्त हो गयी.
कहने का मतलब हैं कि किसी ने अगर जीवन भर घोर पाप किये और उसने भी भगवन नाम की माला जप ली तो उसकी भी सत्गति हो जाती हैं.
अगर चींटी के कानो में भी अगर भागवत के बोल पड़ते हैं तो उसको भी चौराशी लाख योनियों से मुक्ति मिल जाती हैं. और भागवत का फल हर किसी को नहीं मिलता. भागवत का मिलना जन्म जन्म के पुण्यो का फल हैं.
इस पौराणिक कथा “भागवत की महिमा” से हमने क्या सीखा – अगर किसी के पास कोई चीज नहीं हैं, इसका मतलब की उसको उस चीज की कोई जरुरत नहीं हैं. और इसका निर्धारण भगवान् करते हैं. भगवान जो देते हैं उसी में संतुष्ट रहे.
किसी भी विषय को जबरदस्ती से न अपनाये, क्या पता वो धुंधकारी का दूसरा रूप हो.
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