बीरबल नौ-रत्न कैसे बना
‘अकबर बीरबल की हिंदी कहानियां‘ में आप पढ रहे हैं – बीरबल नौ-रत्न कैसे बना
एक बार मुग़ल बादशाह अकबर अपने मंत्रियो के साथ शिकार पर निकले थे. जंगल में काफी दिनों तक इधर उधर घुमने के बाद बादशाह अकबर ने कहा कि हमे अभी तक एक भी शिकार नहीं मिला. बादशाह ने शेर खान को फटकार लगाई कि तुमने तो कहा ये जंगल तो शिकार से भरा पड़ा हैं, लेकिन ऐसा लगता तो नहीं हैं. इस पर शेर खान ने कहा माफ़ी हुजुर, पर पिछली बार… इतना कहकर चुप हो गया. बादशाह अकबर ने कहा मैं इसी वक्त महल जाना चाहता हूँ. शेर खान तुमसे तो मैं आगरा बात करूँगा.
नाराज बादशाह आगरा लौटने के लिए निकल पड़े. पर जल्दी ही वो रास्ता भटक गए, और इधर उधर घुमने लगे. फिर अंत में उनको तीन रास्ते दिखाई दिए. बादशाह ने सभी से पुछा. कोई बोलता है पहला वाला. कोई बोलता हैं दूसरा वाला ज्यादा पहचाना लगता हैं. इसी दौरान वहां से कोई एक आदमी गुजर रहा था.
बादशाह ने उस आदमी को रोका और बोले, क्या तुम बता सकते हो इन तीनो रास्ते में से कोनसा रास्ता आगरा जायेगा. उस युवक ने कहा. बादशाह इन तीनो में से कोई भी रास्ता आगरा नही जाएगा. बादशाह ने कहा तुम कहना क्या चाहते हो? बादशाह…! रास्ता कभी नही जाता…लोग जाते है. इस बात पर सभी हंस पड़े.
बादशाह ने उस इन्सान से उसका नाम पुछा. उसने अपना नाम महेश दास बताया. फिर महेश दास ने पुछा. अब आप बताए कि आप कोन हैं? और आपका नाम क्या हैं? तुम पूरे हिन्दुस्थान के बादशाह, बादशाह अकबर से बात कर रहे हो. मुझे तुम पसंद आये. मेरे दरबार में तुम जैसे निडर और बुद्धिमान लोगो की जरुरत हैं. अगर तुम मेरे शाही दरबार मे शामिल होना चाहते हो तो इस अंगुटी को लो और जब कभी तुम्हारा मन करे तो मेरे पास आना. मैं तुरंत तुम्हें पहचान लूँगा.
खैर …अब हमें आगरा जाने का रास्ता बताओ. हम सभी बहुत थके हुए हैं. और सूरज छुपने से पहले हमे आगरा पहुचना हैं. इस बार महेश दास ने बिना किसी व्यंग्य से उनको सही रास्ता बता दिया. बादशाह और सभी मंत्री आगरा के लिए निकल पड़े. कुछ सालो बाद महेश दास उसी रास्ते से गुजर रहे थे तो उनको बादशाह अकबर की बातें याद आयी. महेस दास बादशाह अकबर के किले पर पहुंचे.
किले के द्वार पर आकर द्वारपाल से कहा, मैं बादशाह अकबर से मिलना चाहता हूँ. सिपाही अन्दर गया और सुचना देकर आया की महेश दास नाम को कोई सख्श बादशाह से मिलना चाहता हैं. उसको अनुमति मिल गयी. महेश दास पहली बार ,मुग़ल बादशाह अकबर के दरबार में आये थे. बादशाह ने उसके आते ही नाम पुछा, और कहा क्या हम एक दुसरे को जानते हैं.ऐसा कहने पर महेशदास ने वो अंगूठी दिखाई, जो उस वक्त बादशाह ने दी. बादशाह को सब कुछ याद आ गया लेकिन फिर भी बादशाह ने कहा मैं तुम्हारा इम्तिहान लेना चाहूँगा. क्या तुम सच में वो ही हो या कोई और? मेरे दरबार के पांच दरबारी एक एक करके तुमसे सवाल पूछेंगे. देखते हैं तुम उनको क्या जवाब देते हो? बादशाह के इस आदेश पर सभी मंत्री एक एक सवाल पूछने लगे.
पहला सवाल.- ऐसे दो पड़ोसियो के नाम बातों जो एक दुसरे को देख नही सकते?
महेश दास ने इसका उत्तर दिया – आँखे मेरे दोस्त आंखे.
दूसरा सवाल – एक एसे दुश्मन का नाम जिसे हराया नही जा सकता?
मौत… मृत्यु से कोई नही जित सकता.
तीसरा सवाल – ऐसा क्या है जो मौत के बाद भी जीवित रहता हैं?
गर्व, महिमा जो सदियों तक जिन्दा रहती हैं.
चौथा सवाल एक रेखा थी…जिसको बिना मिटाये छोटा करना था?
महेश दास ने इस रेखा के पास एक दूसरी रेखा खिंच दी. तो पहले वाली छोटी हो गयी.
कुछ ऐसा बताओ जिसको न तो सूरज देख सकता और न ही चाँद?
अंधकार, अंधकार को न तो सूरज न ही चाँद देख सकता.
अब बादशाह बोले अब मेरी बारी.
अच्छा ये बताओ आगरा की गलियों मे कितने मोड़ हैं?
केवल दो बादशाह पूरे आगरा में केवल दो मोड़ हैं. दाये और बाये.
आज से तुम मेरे नौ रत्नों में से एक तुम भी नवरत्न हो. और तुम्हें अब से बीरबल महाराज के नाम से जाना जाएगा.
फिर क्या था, पूरा दरबार अकबर और बीरबल की जय जय से गूंज उठा.
इस अकबर बीरबल के किस्से(akbar birbal kahaniya) से हमने क्या सिखा – केवल बुद्धि के बल पर पूरे विश्व को जीता जा सकता हैं.
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