हड़प्पा सभ्यता का इतिहास :- इस पोस्ट में प्राचीन इतिहास का महत्वपूर्ण टॉपिक ‘सिंधु घाटी सभ्यता’ या ‘हड़प्पा सभ्यता’ का विस्तार से अध्ययन करेंगे. इस पोस्ट में हम जानेंगे – हड़प्पा सभ्यता क्या है? इस का इतिहास क्या है?(harappan civilization in hindi) हड़प्पा सभ्यता की खोज कैसे हुई? कौन कौन से प्रमुख स्थल मिले. वहां की संस्कृति, लिपि, नगर नियोजन,सामाजिक जीवन का वर्णन करेंगे. इसके अलावा हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करेंगे. तो चलिए शुरू करते हैं – टफ समझे जाने वाले इस टॉपिक को आसान भाषा में समझने की कोशिश करेंगे.
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हड़प्पा सभ्यता का इतिहास
हड़प्पा सभ्यता को विश्व की रहस्यमई सभ्यताओं में से एक माना जाता है यह भारत की सबसे प्राचीन और सबसे बड़ी सभ्यता है न बल्कि भारत की यह विश्व की 4 सबसे बड़ी सभ्यताओं में भी सबसे प्राचीन और सबसे विस्तृत मानी जाती है.
विश्व की चार प्रमुख एवं प्राचीन सभ्यताएं हैं जिनमें नील नदी या मिस्र की सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता चीन की सभ्यता और सिंधु घाटी या हड़प्पा सभ्यता है. पुरातत्व के अनुसार भारतीय धर्म और संस्कृति का विकसित रूप सर्वप्रथम सिन्धु घाटी सभ्यता में मिलता है.
वस्तुत: भारतवर्ष का इतिहास तो मानव सभ्यता के प्राचीन पाषाण युग के साथ ही प्रारम्भ हो जाता है परन्तु, देश की सुविकसित सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास सिन्धु घाटी की सभ्यता से ही प्रारम्भ होता है. यह वैदिक सभ्यता से भी प्राचीन है.
चूँकि इस सभ्यता के अधिकांश भग्नावशेष सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियों में उपलब्ध हुए हैं. इसलिए इसे ‘सिन्धु-घाटी की सभ्यता’ या ‘ सैन्धव सभ्यता’ के नाम से जाना जाता है.
सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है इसे ‘हडप्पा संस्कृति’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि हड़प्पा नगर वर्तमान पाकिस्तान और उसके आस-पास का क्षेत्र इस सभ्यता का केन्द्र-स्थान रहा था.
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कैसे हुई?
सन 1920 से पहले पूरा विश्व इस माहन सभ्यता से अनजान था. हमें मालूम ही नहीं था कि, विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता भारत में पनपी थी. क्योंकि इसका उत्खनन कार्य ब्रिटिश काल यानी स्वतंत्रता से पहले शुरु हो चुका था.
उस समय भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अध्यक्ष सर जॉन मार्शल थे. लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात इसका उत्खनन कार्य व्यापक स्तर पर किया गया. और यह सिंधु घाटी सभ्यता के रूप में उबर के आई और विश्व पटल पर छा गई.
इस प्राचीन सभ्यता का सबसे पहले पता कैसे चला? सन 1856 में पाकिस्तान के कराची से लाहौर के बीच रेलवे लाईन बिछाने का काम चल रहा था. दो ब्रिटिश इंजीनियर बर्टन बंधु जो दोनों भाई थे. एक का नाम जेम्स बर्टन और दूसरा विलियम बर्टन था जो, यह कार्य संभाल रहे थे. इसके दौरान ही उन्हें कई ईट प्राप्त हुई. लेकिन उन्होंने इनपर इतना ध्यान नहीं दिया. ना ही यह अनुमान लगाया कि, यह किसी प्राचीन सभ्यता के अवशेष है.
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इस घटना के बाद एक ब्रिटिश अधिकारी अलेक्जेंडर कनिंघम जिन्होंने, इस जगह पर सर्वप्रथम शोध करने का प्रयास किया. सन 1853 से 1856 तक इन्होंने इस क्षेत्र के कई दौरे किए और जानकारी जुटाने की करी. लेकिन उन्हें कुछ खास सफलता नहीं मिली.
अंत में सन 1921 में सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में इस क्षेत्र में उत्कृष्ट का कार्य प्रारंभ हुआ. यह कार्य भारतीय अधिकारी डॉ दयाराम साहनी और डॉ राखल दास बनर्जी को सौंपा गया. परिणाम स्वरूप दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा नगर की खोज हुई तथा राखल दास बनर्जी द्वारा मोहनजोदड़ो नगर की खोज हुई. इस तरह इन्हें भी प्रारंभ खोजकर्ता का श्रेय दिया जाता है. इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता का इतिहास सर्वप्रथम उजागर हुआ.
स्वतंत्रता के पश्चात खुदाई का कार्य व्यापक स्तर पर हुआ. और एक के बाद एक इस सभ्यता के अवशेष मिलने लगे और अब तक इस सभ्यता के करीब 1500 प्राचीन अवशेष खोजे जा चुके हैं. वर्तमान में भी कुछ स्थानों पर उत्खनन एवं खोज कार्य चल रहा है, जिससे आगे चलकर नये तथ्यों का पता लग सकेगा.
हड़प्पा सभ्यता का विनाश / पत्तन कैसे हुआ?
इतनी विस्तृत सभ्यता का विनाश कैसे हुआ. इस संबंध में कई विद्वानों में भारी मतभेद दिखाई देता है. इसके संबंध में जो सबसे ज्यादा प्रचलित मत है. वह अर्नेस्ट मेंके और जॉन मार्शल द्वारा दिया गया. इन्होंने हड़प्पा सभ्यता के विनाश का कारण बाढ़ को माना. इसी के संबंध में कई विद्वानों ने इस मत का समर्थन किया.
जबकि प्रोफ़ेसर चाइल्ड और व्हीलर ने इस सभ्यता के पत्तन का कारण विदेशी आक्रमणों को बताया. इसके अलावा प्रोफेसर फेयर सर्विस ने पारिस्थितिकी असंतुलन को इसके विनाश का कारण बताया. इसके अलावा और भी कई मत बताए गए हैं लेकिन, सर्वाधिक समर्थन बाढ़ के कारण को ही माना गया है.
सिंधु घाटी संस्कृति की व्यापकता/फैलाव
पुरातात्विक खोजों से यह पाया गया कि, इस सभ्यता का फैलाव अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सिंध पंजाब, गुजरात, पश्चिमी राजस्थान, उत्तरी भारत में गंगा घाटी तक था मोहनजोदड़ो और हड़प्पा इस संस्कृति के दो प्रमुख स्थल रहे होंगे. उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर यह भारत के उत्तर पश्चिम में स्थित थी. अब तक इस सभ्यता के लगभग 1500 स्थल खोजे जा चुके हैं. जिसमें मुख्य रूप से 3 देशों में मिले हैं.
भारत में सबसे ज्यादा 900 से अधिक स्थल प्राप्त हुए हैं. पाकिस्तान में करीब 500 स्थल जबकि अफगानिस्तान में दो स्थल प्राप्त हुए हैं. अफगानिस्तान में कीली, क्वेटा, गुल मोहम्मद निम्न नदियों के किनारे सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल मिले हैं. इसी प्रकार राजस्थान के हनुमानगढ़ क्षेत्र में कालीबंगा नामक क्षेत्र में जहां सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल मिले हैं.
पंजाब में रोपड़, गुजरात में लोथल, रंगपुर नामक क्षेत्रों से प्राप्त अवशेषों को भी सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित माना गया है. उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि, अखंडित भारत में यह सभ्यता पश्चिम में अरब सागर के तट के समीप सुत्कगेण्डोर (पाकिस्तान) लेकर पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ जिला-UP) एवं विलुप्त सरस्वती नदी के किनारे.
उत्तर में की मांडा (जम्मू-कश्मीर) की तलहटी से लेकर दक्षिण में नर्बदा और ताप्ती नदियों के मध्य स्थित दायमाबाद (महाराष्ट्र) तक के क्षेत्र में फैली हुई थी. इस सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम लगभग 1600 किलोमीटर और उत्तर से दक्षिण लगभग 1400 किलोमीटर नापा गया है. यह त्रिभुजाकार क्षेत्रफल में फैली हुई थी. इस विस्तृत भू-भाग में विशाल नगर कुछ कस्बे और कुछ ग्राम प्राप्त हुए थे.
सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास और काल-क्रम
सिंधु घाटी सभ्यता के काल-क्रम को लेकर इतिहासकारों में भारी विभिन्नता दिखाई देती है. सर जॉन मार्शल और डॉ राधाकुमुद मुखर्जी का मानना है कि, इस सभ्यता का प्रारंभ ईसा पूर्व से भी पहले हुआ था. जबकि प्रोफ़ेसर के एन शास्त्री डॉ राजबली पांडे का मत है कि, यह ईसा पूर्व 4000 वर्ष पुरानी है.
भारतीय विशेषज्ञ डॉ राधाकृष्णन का मानना है कि, यह सभ्यता 3500 वर्ष पूर्व से 2250 ईसा पूर्व के मध्य पनपी थी. परंतु सर मोर ने इसे 2500 वर्ष पूर्व से 1500 ईसा पूर्व के मध्य बताते हैं. डॉ फ्रैंकफर्ट ने इसको 2800 ईसा पूर्व मानते हैं तो डॉ फबरी इसको 2800-2500 से पूर्व मानते हैं.
इस तरह सिंधु घाटी सभ्यता के कालक्रम इतिहासकारों के मध्य काफी विवादाग्रस्त है. लेकिन वैज्ञानिक तकनीक कार्बन 14 डेटिंग के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का काल 2400 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व के मध्य ज्ञात हुआ है.
सभ्यता का उद्भव, सिंधु सभ्यता की निर्माता कौन थे?
सिंधु सभ्यता के विभिन्न क्षेत्रों की खुदाई के दौरान कई नर कंकाल मिले और उन कंकालों की शारीरिक बनावट के विश्लेषण के आधार पर इतिहासकारों ने सिंधु सभ्यता का उद्भव करने वाले लोगों को 4 नस्लों में बांटा. इसमें आदिमआग्नेय, मंगोलियन, भूमध्यसागरीय सागरीय तथा अल्फाइन से संबंधित बताया है. इसमें मंगोलियन तथा अल्पाइनस नस्लें के लोगों की केवल एक-एक खोपड़ी मिली है.
यह प्रश्न आज भी इतिहासकारों में विवादा ग्रस्त हैं. अलग-अलग इतिहासकार सभ्यता के विकास के बारे में अलग-अलग मान्यताएं बताते हैं. इससे संबंधित इतिहासकारों की तीन मान्यताएं प्रचलित है. एक मान्यता के अनुसार वे लोग मिश्रित जाति या नस्ल हुए होंगे. दूसरी मान्यता के अनुसार वे लोग द्रविड़ हुए होंगे और तीसरी मान्यता के अनुसार वे लोग आर्य हुए होंगे.
कर्नल स्युअल और डॉ. गुहवा प्रथम मान्यता का समर्थन करते हैं. उनका कहना है कि, वह सभ्यता किसी एक नस्ल या जाति के लोगों के द्वारा विकसित नहीं की गई. बल्कि यहां अनेक जातियों के लोग रहते थे. जो अपने व्यापार और आजीविका के लिए यहां आकर बस गए थे.
सर जॉन मार्शल दूसरी मान्यता का समर्थन करते हुए कहते हैं कि, खुदाई में प्राप्त नर कंकालो भूमध्यसागरीय नस्ल सबसे ज्यादा थी. अतः इस सभ्यता के उद्भव का श्रेय द्रविड़ को जाता है. क्योंकि द्रविड़ लोग भूमध्यसागरीय नस्ल की एक प्रमुख शाखा थी.
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कुछ विशेषज्ञ का मानना है कि, बलूचिस्तान आदि के आसपास बोली जाने वाली ब्राहुई भाषा तथा द्रविड़ की भाषा में समानता हैं. इस कारण द्रविड़ जाति को इस सभ्यता का निर्माता मानते हैं.जबकि प्रोफेसर चाइल्ड का मानना है कि, इस सभ्यता का निर्माण सुमेरियन लोगों के द्वारा हुआ था. और इस मत का समर्थन डॉ हॉल ने भी किया.
पिगट महोदय के अनुसार इस सभ्यता के विकास में योगदान पूर्ण रूप से भारतीयों का ही था. और वे मानते हैं कि, यह सभ्यता सुमेरियन से प्रभावित थी. तीसरी मान्यता को मानने वाले विद्वानों में श्री लक्ष्मण स्वरूप, रामचंद्र, शंखरानन्द, दीक्षितार तथा पुसालकर थे. इनके अनुसार इस सभ्यता का उद्भव का श्रेय आर्य लोगों को दिया गया.
क्योंकि सिंधु घाटी सभ्यता में प्राप्त हुई लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है. इसलिए जब तक इस लिपि को पढ़ नहीं लिया जाता. तब तक यह बताना कठिन होगा कि, इस सभ्यता का विकास और उद्भव करने वाले लोग किस जाति या नस्ल के थे.
सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है?
सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है. क्योंकि खुदाई में सर्वप्रथम हड़प्पा शहर के अवशेष मिले थे. और उस समय यह प्रचलन में था कि, यदि किसी सभ्यता के नाम करण में मतभेद हो तो, उस सभ्यता का नाम उसके सर्वप्रथम खोजे गए स्थल (हड़प्पा) के नाम पर रख दिया जाता है.
हड़प्पा संस्कृति क्या है और इसका इतिहास क्या है? सिंधु घाटी संस्कृति ही हड़प्पा संस्कृति है. क्योंकि हड़प्पा शहर और उसके आसपास के क्षेत्र की सभ्यता के प्रमुख केंद्र थे. इस कारण इसे हड़प्पा संस्कृति के नाम से भी जाना जाने लगा. इसके अलावा इस सभ्यता के अधिकांश अवशेष सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के आसपास मिले. इस कारण इसे सिंधु घाटी सभ्यता या सैंधव सभ्यता कहां गया.
हड़प्पा सभ्यता की लिपि
*हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता के भग्नावशेषओ में कई मुद्राएं, ताम्रपत्र और मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं. जिन पर अनेक प्रकार के लेख चित्रों के रूप में मिले हैं. उन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है. कई विद्वानों का मानना है कि, यह चित्रात्मक लिपि है. तथा प्रत्येक चित्र किसी विशेष शब्द या वस्तु को प्रकाशित करता है.
harappan civilization का इतिहास संबंध में विद्वानों ने अब तक ऐसे 400 चिन्हों की सूची बनाई है. इस लिपि की एक खासियत है कि, यह लिपि पहली पंक्ति में दाहिनी ओर से शुरू होती है. और भाई और लिखी जाती है. और दूसरी पंक्ति बाई ओर से दाहिनी और लिखी जाती है. इस प्रकार की लिपि को इतिहासकारों ने ‘वस्त्रोंफेदन’ (Boustrophedon) नाम दिया है.
सिन्धुघाटी या हड़प्पा सभ्यता का इतिहास को लेकर इतिहासकारों का मानना है कि, यह लिपि सुमेरियन और मित्र की लिपियों की तुलना नहीं काफी विकसित और शुद्ध थी. हमारे लिए अफसोस की बात है कि, अभी तक कोई विद्वान इसे पढ़ पाने में सफल नहीं हो सका.
हड़प्पाकालीन सभ्यता की विशेषताएं और जानकारी