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पृथ्वीराज चौहान का इतिहास – कहानी – प्रेम कथा
Intro – पृथ्वीराज चौहान prithviraj chauhan (जन्म 1166 – मृत्यु 1197)
राय पिथौरा नाम से प्रसिद्ध पृथ्वीराज चौहान तृतीय को भारत का अंतिम हिंदू सम्राट कहा जाता है. पृथ्वीराज चौहान तृतीय कुशल सेनानायक और पराक्रमी योद्धा थे. उन्हें दल पुंगल की उपाधि (विश्व विजेता) प्राप्त थी. prithviraj chauhan history in hindi पृथ्वीराज चौहान ने अपने जीवन काल में दो महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी थी. तराइन का प्रथम युद्ध एवं तराइन का द्तीविय युद्ध जो कि, इतिहास के चर्चित युद्ध में से एक हैं. हालांकि तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान (prithviraj chauhan) की जीत हुई थी.
लेकिन तराइन के द्वितीय युद्ध में छल कपट के कारण पृथ्वीराज को हार का सामना करना पड़ा था. इसी युद्ध के बाद भारत पर मुस्लिम सत्ता की नींव पड़ी थी. इसके बाद करीब 300 वर्षों तक ऐसा कोई प्रतापी शासक नहीं हुआ. जिसमें मुस्लिम आक्रमणकारियों को देश से खदेड़ने में अपनी भुजाओं के बल का प्रयोग किया हो. चलिए पृथ्वीराज चौहान (prithviraj chauhan in hindi) का इतिहास और प्रमुख घटनाओं को विस्तृत से जानते है.
राजवंश | क्षत्रिय राजपूत चौहान |
वास्तविक नाम (surename) | पृथ्वीराज चौहान तृतीय |
उपनाम (title) | राय पिथौरा, दल पूंगल, अंतिम हिन्दू सम्राट |
जन्म (birth) | 1166 ई. |
जन्म स्थान (birth place) | अन्हीलपाटन, गुजरात |
परिवार (family) | पिता- सोमेश्वर माता- कर्पूरी देवी भ्राता- हरिराज चौहान बहिन- पृथा |
राज्यभिषेक | 1178 ई. में (उम्र-11 वर्ष) |
जीवनसंगिनी | संयोगिता (जयचंद की पुत्री) |
निधन (death) | 1197 ई. में (उम्र 28) |
महत्वपूर्ण युद्ध | 1191, तराइन का प्रथम युद्ध 1192, तराइन का द्वितीय युद्ध |
मध्यकालीन राजस्थान में सर्वाधिक शक्तिशाली राजवंश अजमेर का चौहान वंश था. जिसमें अरनोराज, विग्रहराज चतुर्थ एवं पृथ्वीराज चौहान तृतीय जैसे पराक्रमी एवं महान शासक हुए. जिन्होंने अपने राज्य का विस्तार दूर-दूर तक किया. पृथ्वीराज चौहान के समय तो सीमाएं ना केवल दिल्ली तक विस्तृत थी. बल्कि उत्तर पश्चिम में सीमाएं पंजाब तक जा लगी थी. परंतु 12 वीं सदी के अंत तक तुर्की आक्रमणकारियों ने इनके शासन का अंत कर देश में मुस्लिम शासन की स्थापना की.
Prithviraj chauhan early life in hindi
धरती का वीर योद्धा, चौहान राजवंश के अंतिम प्रतापी शासक सम्राट पृथ्वीराज चौहान (prithviraj chauhan) का जन्म सन 1166 ईस्वी (जेष्ठ विक्रम संवंत 1223) में अन्हीलपाटन, गुजरात में रानी कर्पुरी देवी की कोख से हुआ था. इनके पिता जी का नाम सोमेश्वर देव था. ऐसे किवंती है कि, 12 वर्षों तक सोमेश्वर और कपूरी देवी के संतान नहीं हुई. कई मन्नते करने के बाद इनके यहां पर पृथ्वीराज जैसा वीर पुत्र हुआ. हरिराज चौहान इनके छोटे पुत्र हुए थे. पृथ्वीराज के जन्म लेते ही उनको जान का खतरा था. कई राजाओं ने मारने के लिए षड्यंत्र कर रहे थे.
लेकिन वे ऐसी करतूत करने में असफल रहे. जब पृथ्वीराज महज 11 वर्ष के थे. तब उनके पिता सोमेश्वर की मृत्यु हो गई. मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में पृथ्वीराज चौहान तृतीय अजमेर के शासक बने. उस समय उनकी माता कर्पूरी देवी और विश्वासपात्र प्रधानमंत्री कदंबदास ने कूटनीति और सकुशलता से शासन भार संभाला. परंतु बहुत कम समय में ही 1175 पृथ्वीराज चौहान ने अपनी योग्यता और वीरता से शासन प्रबंध अपने हाथों में ले लिया. उसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे अपने चारों ओर के शत्रुओं को एक-एक कर खत्म किया.
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दिल्ली के उत्तराधिकारी बने पृथ्वीराज
पृथ्वीराज चौहान अंतिम हिंदू सम्राट थे. जिन्होंने दिल्ली पर शासन किया. लेकिन पृथ्वीराज दिल्ली के शासक कैसे बने? पृथ्वीराज की माता रानी कर्पूरी देवी दिल्ली के शासक अनंगपाल की एकमात्र पुत्री थी. इस कारण अनंगपाल को डर था कि, मेरी मृत्यु के बाद दिल्ली की सत्ता कौन संभालेगा. तो उन्होंने इसके लिए अपने दौहित्र पृथ्वीराज तृतीय को सुयोग्य माना. और उसे ही दिल्ली का उत्तराधिकारी बनाने का निश्चय किया. इस तरह पृथ्वी राज चौहान के पास दिल्ली की सर्वोच्च सत्ता आई.
*पृथ्वीराज चौहान बेहद आकर्षक कद काठी के थे. कम उम्र में ही उन्होंने अस्त्र शस्त्र की विद्या प्राप्त कर ली थी. तीरंदाजी में तो कोई उनसे मुकाबला नही कर सकता. उन्हें शब्द भेदी बाण (केवल आवाज सुनकर सटीक निशाना लगाना) चलाने में महारथ हासिल थी. पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी को भी इसी शब्द भेदी धनुर्विद्या से मारा था.
पृथ्वीराज चौहान के विजयी अभियान (prithviraj chauhan history in hindi)
शासन का प्रबंध, पृथ्वीराज चौहान के हाथ में आते ही. सर्वप्रथम उन्होंने अपने चचेरे भाई नागार्जुन के विद्रोह को दबाया. क्योंकि वह अजमेर में शासन करने का प्रयास कर रहा था. इसके बाद 1182 में भरतपुर और अलवर के आसपास के क्षेत्रों में भंडानको के विद्रोह को खत्म किया. सनी 1182 में ही महोबा के चंदेल शासक परमाल को तुमुल युद्ध में हराया. सन 1184 में गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय को नागौर के युद्ध में हराया. पृथ्वीराज चौहान के पडोसी राज्य कन्नौज के शासक गढ़वाल जयचंद के साथ भी संबंध अच्छे नहीं थे.
पृथ्वीराज और संयोगिता की अमर प्रेम कहानी (prithviraj chauhan ki kahani)
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी (कथा) का वर्णन चंदबरदाई द्वारा रचित ग्रंथ ‘पृथ्वीराज रासो’ में मिलता है. पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कहानी आज भी प्रचलित है. संयोगिता कौन थी? संयोगिता कन्नौज के गढ़वाल शासक जयचंद की राजकुमारी थी. वह पृथ्वीराज के शौर्य और वीरता से आकर्षित थी. वह पृथ्वीराज से प्रेम करने लगी थी. लेकिन पृथ्वीराज और जयचंद दोनों ही एक दूसरे के दुश्मन थे. जयचंद को जब उनके प्रेम की बात पता चली तो उसने संयोगिता के विवाह के लिए स्वयंवर समारोह किया.
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स्वयंवर समारोह में हिंदुस्तान के सभी राजाओं को न्योता दिया गया. केवल पृथ्वीराज चौहान को छोड़कर. यही नहीं पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करने के लिए की उनकी मूर्ति बनवाकर द्वारपाल के रूप में खड़ी करवा दी. जब स्वयंवर शुरू हुआ. तब संयोगिता ने वरमाला को पृथ्वीराज की मूर्ति को पहना दी. इसी दौरान पृथ्वीराज अपने सेना के साथ आए. और चलते समारोह में संयोगिता को उठाकर ले गए. जयचंद और अन्य राजाओं ने नहीं रोक पाए. जयचंद को यह अपमान सहन नहीं हुआ. बाद में यही कारण बना कि, जयचंद में तराइन के द्वितीय युद्ध में मोहम्मद गोरी की सहायता की.
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी की लड़ाई prithviraj chauhan history in hindi
पृथ्वीराज और गौरी की लड़ाई मूल्यों पर आधारित नही थी. मुहम्मद गौरी अपने राज्य विस्तार की आकांक्षा से लड़ाई करता तो पृथ्वीराज चौहान अपने देश की रक्षा, स्वाधीनता और धर्म के लिए लड़ता. मुहम्मद गौरी कौन था? मोहम्मद गोरी, पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में तुर्की का सुल्तान, गजनी का शासक था. मोहम्मद गोरी राज्य विस्तार और भारत को लूटने की महत्वाकांक्षा से भारत पर आक्रमण करता था. इतिहासकारों का मानना है कि, उसी दौरान गोरी और पृथ्वीराज के बीच कई छुटपुट लड़ाई हुई.
पृथ्वीराज के आश्रित कवि चंदबरदाई द्वारा रचित ग्रंथ में ऐसी 21 छुटपुट लड़ाई का उल्लेख है. जिसमें पृथ्वीराज चौहान 16 बार जीते और 16 बार मोहम्मद गौरी को माफ किया था. उसके बाद दोनों की पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच दो महत्वपूर्ण (लड़ाई) युद्ध हुए. जिन्हें इतिहास में तराइन के युद्ध के नाम से जाना जाता है. तराइन का प्रथम युद्ध (1191) और उसके अगले साल ही (1192) तराइन का द्वितीय युद्ध हुआ.
1191, तराइन का प्रथम युद्ध (prithviraj chauhan ki kahani)
तराइन का प्रथम युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य 1191 में लड़ा गया. वर्तमान में तराइन नामक स्थान हरियाणा में पड़ता है. इस युद्ध में पृथ्वीराज के पास तीन लाख सैनिकों की विशाल सेना थी. जबकि मोहम्मद गौरी के पास एक लाख के करीब सैनिक थे. जिसमें ज्यादातर अश्व सवार सैनिक थे. युद्ध के दौरान मोहम्मद गोरी घायल हो गया था. घायल अवस्था में गोरी रणभूमि छोड़कर गजनी भाग गया था. यह युद्ध निर्णायक रहा. इस लड़ाई (युद्ध) में पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई.
जीत के बाद पृथ्वीराज ने भागती हुई गौरी की सेना का पीछा ना करके गोरी और उसकी सेना को जाने दिया. यह पृथ्वीराज की सबसे बड़ी भूल थी. जिसका खामियाजा अगले ही साल तराइन के द्वितीय युद्ध में भुगतना पड़ा. कई इतिहासकारों का मानना है कि, यदि इस युद्ध में पृथ्वीराज गोरी को समूल नष्ट कर देता. तो भारत पर कभी विदेशी आक्रमणकारियो का राज नही होता.
1192, तराइन का द्वितीय युद्ध
प्रथम युद्ध की जीत के बाद पृथ्वीराज को लगा कि,अब मोहम्मद गोरी दुबारा हमला नहीं करेगा. इसलिए वे सभी जीत का जश्न मनाने लगे. और आमोद प्रमोद में व्यस्त रहे. जबकि दूसरी ओर मोहम्मद गोरी अपनी हार का बदला लेने की सोच रहा था. उसने 1 साल के समय में एक विशाल सेना पुनः एकत्रित की. ठीक एक साल में तराइन के मैदान में दोनों सेनाएं आ धमकी. इस युद्ध में गढ़वाल शासक जयचंद ने मोहम्मद गौरी की पूरी सहायता की थी.
क्योंकि वह भी पृथ्वीराज से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था. जयचंद सोच रहा था कि, पृथ्वीराज के हार जाने के बाद दिल्ली का शासक उसे बना दिया जाएगा. लेकिन जीत के बाद मोहम्मद गोरी ने जयचंद को गद्दार कहकर मौत के घाट उतार दिया था.
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मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज से संधि हेतु एक दूत भेजा और अपनी अधीनता स्वीकार ने हेतु कहा. प्रत्युत्तर में पृथ्वी राज ने मोहम्मद गोरी को कहा, चुपचाप यहां से चला जाने और नहीं तो रणभूमि में आने को कहा. मुहम्मद गोरी ने यहां चालाकी दिखाई. पृथ्वीराज को भ्रमित करने के लिए एक और दूत भेजा और कहा कि, संधि के लिए अनुमति हेतु अपना दूत अपने भाई को भेजा है. वहां से अनुमति मिलने पर वह चुपचाप गजनी लौट जाएगा.
पृथ्वीराज इस भ्रम में रहे और अपनी अधूररी सेना लेकर ही रणभूमि में आ गए. मुहम्मद गौरी की सेना ने सुबह होते ही आक्रमण कर दिया. जब पृथ्वीराज चौहान की सेना नित्य कर्म करने में व्यस्त थी. पृथ्वीराज की सेना में उथल पुथल मच गई. और पृथ्वीराज चौहान को पकड़ लिया गया. अंत में मुहम्मद गोरी की जीत हुई. उसने पृथ्वीराज को कैद कर दिया. अजमेर और दिल्ली पर अब तुर्को (मोहम्मद गोरी) का कब्जा हो गया. तराइन का दूसरा युद्ध भारत के इतिहास में एक निर्णायक और काल परिवर्तनकारी घटना साबित हुआ. इसके बाद भारत में स्थाई मुस्लिम सत्ता का आरंभ हुआ. इसलिए मोहम्मद गोरी को भारत में मुस्लिम शासन का संस्थापक माना जाता है.
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई ? मुहम्मद गौरी को कैसे मारा
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई? इस पर कई लेखकों और विद्वानों का मत अलग-अलग है. उनमें से प्रमुख बात यह है कि, तराइन की दूसरी लड़ाई में हार के बाद, मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज को कैद कर गजनी ले गया. वहा उसे प्रताड़ित किया गया. जलते हुए सरियों से उनकी आंखें फोड़ दी गई. पृथ्वीराज को बचाने के लिए चंद्रवरदाई गजनी आए. वहां एक तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन हुआ.
prithviraj chauhan poem in hindi चार बास चौबीस गज….
जहां चंद्रवरदाई के दोहे “char bas chobis gaj, angul asht praman, ta uper sultan hai mat chuke chauhan.” पर पृथ्वीराज ने शब्द भेदी बाण चलाकर मोहम्मद गौरी को निशाना बनाया और उसे ढेर कर दिया. इसके बाद चंद्रवरदाई और पृथ्वीराज ने एक दूसरे को मारकर खुदकुशी कर ली. क्योंकि वह मुस्लिमों के हाथों से नहीं मरना चाहते थे. दूसरा मत है कि, पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर अजमेर लाया गया. जहां उन्हें सुल्तान के विरुद्ध षड्यंत्र रचने के जुर्म में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज को मरवा दिया. पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र गोविंद राज को अजमेर का शासन बना दिया गया. इसके बाद मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक (गुलाम वंश के संस्थापक) ने अजमेर पर आक्रमण कर, उसे पुनः कब्जे में ले लिया.
पृथ्वीराज चौहान टी.वी. सीरियल (धरावाहिक) एव फिल्में
prithviraj chauhan t.v. सीरियल – पृथ्वीराज चौहान के जीवन की एतिहासिक घटनाओ पर आधारित कई टी.वी. सीरियल (धारावाहिक) बने है. t.v. सीरियल ‘धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान’ बहुत प्रचलित है. यही नही in घटनाओ के आधार पर कई फिल्मे भी बन चुकी है. हाल ही यस राज के निदेशक में ‘prithviraj chauhan’ नामक फिल्म बनाने जा रही है. जिसमे अक्षय कुमार, पृथ्वीराज का किरदार निभाएंगे.
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