7 गौतम बुद्ध की कहानियाँ (Gautam Buddh Stories In Hindi) – प्रेरक, शिक्षाप्रद कहानियां

गौतम बुद्ध की कहानियां(buddh stories in hindi) की इस पोस्ट में महात्मा गौतम बुद्ध से सम्बन्धित 7 प्रेरक और शिक्षाप्रद कहानियां हैं, जिसका सार जिंदगी का बदल देने वाला हैं. आप इनगौतम बुद्ध की कहानियां को ध्यान से पढना और उनका सार ग्रहण करना. “महात्मा गौतम बुद्ध की जीवनी“(गौतम बुद्ध कथा) और महात्मा बुद्ध(बौद्ध धर्म) के उपदेश और शिक्षा पर पोस्ट्स लिखी हैं. आप इन पोस्ट्स को भी जरूर पढ़े. इन पोस्ट्स के लिंक नीचे दिए गए हैं.

गौतम बुद्ध की बचपन की कहानी- भगवान बुद्ध की जीवन कथा

राजकुमार सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) दयालु और प्रेमी थे (gautam buddh childhood stories) – सिद्धार्थ सभी के प्रति दयालु थे, चाहे वो उनका घोडा हो या कोई और प्राणी. चूँकि सिद्धार्थ को राजा शुद्धोधन ने एक आलिशान जिंदगी दी, फिर भी सिद्धार्थ सरलता से रहना पसंद करते थे. कभी भी दूसरों की समस्या को नज़रंदाज़ नहीं करते थे, और सभी के प्रति सहानुभूति रखते थे. छोटी उम्र में सिद्धार्थ इस बात को भली भांति जानते थे कि उनके आस पास जो भी लोग हैं, सभी खुश नहीं हैं, सभी को कुछ न कुछ दुःख दर्द हैं.

सिद्धार्थ ने एक सांप की रक्षा की

सिद्धार्थ सभी प्राणियों के प्रति दया की भावना रखते थे. एक बार सिद्धार्थ ने देखा कि एक गाँव का लड़का एक सांप को एक लकड़ी से मार रहा था. सिद्धार्थ ने तुरंत उस लड़के को रोका और बताया कि किसी प्राणी को कभी नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए. दया भाव के प्रति सिद्धार्थ का एक और किस्सा हैं – सिद्धार्थ का एक चचेरा भाई था, जिसका नाम था देवदत्त. एक दिन सिद्धार्थ अपने मित्रों के साथ बगीचे में खेल रहे थे.

मित्रों की टोली में राजकुमार देवदत्त भी शामिल थे. सिद्धार्थ का स्वभाव दया और प्रकृति प्रेमी थे. जबकि देवदत्त कपटी स्वभाव का था. एक हंस को आता देख देवदत्त ने अपना धनुष और तीर निकाला और हंस को मार दिया. हंस को बुरी तह से घायल देख सिद्धार्थ ने उसके ठीक होने तक उसकी देखभाल की, और जब हंस पूरी तह से ठीक हो गया तो उसको वापस आज़ाद कर दिया.

सिद्धार्थ का मार्मिक स्वभाव – महात्मा बुद्ध की कहानी

एक बार राजा शुद्धोधन सिद्धार्थ को लेकर वार्षिकी खेत जुताई के समारोह में लेकर गए थे. राजा शुद्धोधन को एक रीत को पूरा करना था, उस वक्त खेत का सबसे पहला हल राजा जोतते थे. इसलिए राजा के लिए बैलो की जोड़ी को सजा कर लाया गया था.

सिद्धार्थ को एक सेव के पेड़ के नीचे बैठा दिया. राजा शुद्धोधन ने बैलो को कमान देकर खेत को जोतना शुरू किया सभी लोग बहूत खुस हुए, लेकिन सिद्धार्थ की नज़र सिर्फ बैलों पर थी. सिद्धार्थ को बैलों का दुःख साफ़ नज़र आ रहा था.

तब सिद्धार्थ ने मान लिया की – किसी भी तरह से एक वक्त में सभी खुश नहीं हो सकते हैं. इस प्रकार सिद्धार्थ(महात्मा बुद्ध) अपने चारों और घटने वाली घटनाओं का सूक्ष्म स्तर पर अवलोकन करते थे.

राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ को न सोचने के लिए मजबूर किया(गौतम बुद्ध की कहानियाँ)

जब से राजा शुधोधन ने सिद्धार्थ को लेकर भविष्यवाणी सुनी, सिद्धार्थ को एसी जिंदगी दी जिसमे न तो वह ज्यादा सोच सकता था, ना ही अपने विचारों से भटक सकता था. यहाँ तक की सिद्धार्थ के आमने सामने सभी दास और नौकर भी हष्ट पुष्ट रहते थे.

सिद्धार्थ को तीस वर्ष की उम्र तक शुद्धोधन ने वह जिंदगी दी जिसमे उसको इस बात की भनक लगने नही दी की कभी मिटटी भी हवा के साथ उड़ सकती हैं. राजा शुद्धोधन ने सभी ऋतूओं के लिए अलग अलग महल बनवाये. ताकि सिद्धार्थ को कोई तकलीफ न हों. 16 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ का विवाह करवा दिया. इसके बाद सिद्धार्थ यशोधरा में खोये रहते थे. यह सब कुछ तीस वर्ष की उम्र तक चलता रहा, जब तक सिद्धार्थ ने उन चार घटनाओं को नहीं देखा.

गुस्से पर बुद्ध के विचार – गुस्से पर बुद्ध की कहानी

गुस्सा करने वाला व्यक्ति जहर तो खुद पिता हैं , लेकिन मरने की आशा किसी और से करता हैं. महात्मा बुद्ध की ये सभी बातें एक सनकी व्यक्ति सुन रहा था. उसको बुद्ध के विचार बिलकुल अच्छे नहीं लगे. बुद्ध क्रोध के विषय पर बोल रहे थे, लेकिन उनका चित बिलकुल शांत था, इस बात से उस सनकी को और गुस्सा आ गया.
सनकी आदमी उठा और उसने महात्मा बुद्ध के मुंह पर थूक दिया, और बुद्ध को अपमानित करते हुए भला बुरा कहने लगे.

उस आदमी के इस व्यवहार से सारी सभा भड़क उठी. बुद्ध ने सभी को शांत किया और उस व्यक्ति से कहा की तुमको इस विषय पर कुछ और कहना हैं, वह व्यक्ति वहां से चला गया. महात्मा बुद्ध ने सभी को समझाया. उस व्यक्ति को बहुत सारी परेशानियाँ हो सकती हैं, हो सकता हैं वह मेरी बातों को अनुसरण नहीं करना चाहता हैं. उस व्यक्ति को लेकर मैं गुस्सा क्यों करूँ?

अगली सुबह हुई. उस व्यक्ति का गुस्सा शांत हुआ. और वह ढूंढता हुआ महात्मा बुद्ध के पास पहुंचा. वह सनकी व्यक्ति बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा. और बोला महात्माजी मैं वही दुष्ट हूँ जिसने कल आप पर थूका, आप मुझे क्षमा कर दीजिये. बुद्ध ने उस व्यक्ति को खड़ा किया और बोले – मैं तुम्हारी बातों को कल ही भूल गया. मुझे तुम्हारी बातो से कोई संदेह नहीं हैं. मैं भला तुम्हारी बातों को मेरी जेहन में उतार कर खुद का नुकसान क्यों करूँ.

किसी बात को लेकर बैठने से हमारा जीवन और भविष्य दोनों की गति रुक जाती हैं. इसलिए इन व्यर्थ की बातों का मेरे यहाँ कोई स्थान नहीं हैं. इस प्रकार उस सनकी को महात्मा बुद्ध ने ज्ञान का पाठ पढाया.

मन को वश में करने के लिए क्या करे – बुद्ध की कहानी

इस कहानी के पीछे को तर्क अगर आप समझ गए तो आपका मन काबू में हो सकता हैं. पहली बार जब इस कहानी को मैंने पढ़ा तो मुझे इसका तर्क समझ नहीं आया. लेकिन इसका भाव प्रेरणादायी हैं. एक बार महात्मा बुद्ध कीसी नगर से गुजर रहे थे. बुद्ध की नज़र एक कपडे के व्यापारी पर पड़ी, जो दुखी और हताश दिखाई दे रहा था. बुद्ध चलकर उनके पास गए और पुछा की हे भंते तुम इतने उदास क्यों हो?

अगर तुम मुझे अपनी चिंता का विषय बताओ तो मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूँ. कपडे के व्यापारी ने बुद्ध को प्रणाम किया और उनको अन्दर बुलाया. उस व्यापारी ने कहा की जबसे मेरी पत्नी की मृत्यु हुई हैं.

तब से मेरे घर पर मेरे छोटे बेटे की देख भाल वाला कोई नहीं हैं इसलिए मैं हमेशा इसको अपनी दुकान पर लेकर आ जाता हूँ. लेकिन मेरी दुकान पर आने वाले हर ग्राहक की पगड़ी को उछाल कर फेफ देता हैं, कभी कभी उनका झोला उठाकर बाहर फेंक देता हैं. मैंने इसको बहुत समझाया डाटा लेकिन यह नहीं समझा.

इसकी इस हरकतों की वजह से मेरे सारे ग्राहक खुद को अपमानित मानकर वापस चले जाते हैं. बुद्ध बोले मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ पर तुम मुखे वचन दो की मैं जो भी करूँगा तुम उसमे दखलंदाजी नहीं करोंगे, ना ही कोई प्रश्न करोंगे. व्यापारी बुद्ध को वचन दे देता हैं. अगले दिन बुद्ध एक पगड़ी पहन कर आये, और एक गाहक की भांति आकर बैठ गए. व्यापारी का बेटा आया और बुद्ध की पगड़ी को उछाल दिया.

महात्मा बुद्ध मुस्कराए और कहा बहुत अच्छा, जाओ उस पगड़ी को वापस लेकर आओ. वह बच्चा दौड़कर गया और पगड़ी लाकर बुद्ध को दे दी, अगले दिन बुद्ध एक कुल्हाड़ी और एक लकड़ी लेकर आये.

उस लड़के ने फिर से उस पगड़ी को उछाल दी, बुद्ध ने उस लड़के को कुल्हाड़ी और लकड़ी दे दी और कहा जाओ इस लकड़ी को काटो. व्यापारी को थोडा सा डर लग रहा था की कही उसके लड़के को चोट नहीं आ जाये. लेकिन उसको अपना वचन याद था. सात दिन तक महात्मा बुद्ध कोई न कोई नया काम लेकर आते और उस लड़के से करवाते, शीघ्र ही वह लड़का भूल गया की उसको किसी की पगड़ी उछालनी हैं.

व्यापारी बहुत खुस हुआ और बुद्ध को धन्यवाद दिया. मुझे पता हैं की इस कहानी का और मन के वश को कोई विशेष सम्बन्ध नहीं हैं, लेकिन पहले आप इस तर्क को समझ लीजिये. अगर हम अपने मन को अपने हिसाब से काम नहीं करवाएंगे, तो मन अपने हिसाब से काम करेगा.

मन वश में हो सकता हैं यदि मन को हम अपने अनुसार चलायें. मन दो तरीको से 1, मन अपने हिसाब से काम कर सकता हैं या 2, मन को हम अपने हिसाब से काम करवा सकते हैं. बुद्ध से मिलने से पहले उस लड़के का मन और दिमाग अपने हिसाब अनियंत्रित रूप से काम कर रहा था, लेकिन बुद्ध ने उस लड़के को अपने अनुसार काम करवाए जिससे उसकी आदत ही बदल गयी.

बुद्ध की जीवन बदल देने वाली कहानी – गौतम बुद्ध की प्रेरक कहानी

एक बार बुद्ध अपने भिक्षु के साथ भिक्षाटन के लिए किसी गाँव की तरफ जा रहे थे, तभी अचानक बुद्ध के पैरों में काटा लग गया. काटा इतना तीक्ष्ण था की चुभते ही रक्त की धार निकलने लगी. बुद्ध के भिक्षु ने रक्त को रोकने के लिए एक कपडा फाड़कर बुद्ध के पैर पर बांध दिया. इस घटना को कुछ लोग देख रहे थे, जो कि बुद्ध से इर्ष्या करते थे. उन्होंने बुद्ध से कहा कि – हमें तो तुम्हे परमज्ञानी समझते थे, लेकिन दर्द को तुम भी सहन नहीं कर सकते हो.

तुम पाखंडी हो, और ये हमने सिद्ध कर दिया हैं. ये कांटे हमने ही बिछाये हैं. इस गाँव में तुम्हारा स्वागत नहीं, तिरस्कार होगा. इस गाँव में तुमको कोई भिक्षा नहीं मिलेगी. बुद्ध ने उन लोगो से अनुरोध किया की कृपया करके मुझे इस गाँव से भिक्षा लेने दो. बुद्ध के इर्ष्यालुओं ने बुद्ध का उपहास बनाते हुए कहा कि अगर तुम्हे भिक्षाटन के लिए इस गाँव में आना हैं तो तुम्हे अपने रक्त की बलिदानी देनी होगी. तुमको इस काँटों के रास्ते से गुजरना होगा.

भगवान् बुद्ध ने उनकी चुनौती को स्वीकार कर लिया. और काँटों के रास्ते पर चलने के लिए अपने कदम बढ़ाने लगे. बुद्ध मुस्कराते हुए काँटों पर चलने लगे. बुद्ध के साहस को देख कर गाँव वाले चकित रह गए, कुछ लोगो की आँखे फटी की फटी रह गयी. गाँव वाले सोचने लगे की बुद्ध भिक्षा के लिए दुसरे गाँव भी जा सकते थे, तो फिर काँटों पर चल कर क्या साबित करना चाहते हैं.

गाँव वाले बुद्ध के सन्देश को इतनी जल्दी नहीं समझ पाए. यहाँ पर बात भिक्षा की नहीं बल्कि जीवन को बदलने की थी. गाँव वालो की भीड़ में एक सुमित नाम का युवक था जो बुद्ध पर हो रहे अत्याचार को देख कर द्रवित हो गया. सुमित दौड़कर गया और बुद्ध के पैरो के सामने से कांटे को हटाने लगा. बुद्ध के इर्ष्यालू सुमित को रोकने लगे और गाँव से दाना पानी न देनें की धमकी देने लगे.

सुमित ने किसी की न सुनी और काँटों को हटाते हुए बोला हे भगवन आप इन मुठी भर लोगो के अपने आपको कष्ट मत दीजिये. आप गाँव में प्रवेश कीजिये बहुत सारे लोग आपको भिक्षा देने के लिए आतुर हैं. बुद्ध ने सुमित को अपने आस बुलाया और आशीवार्द देने लगे, सुमित पीछे हट गया. हे भगवान् आप मुझे छु कर अपने आपको अपवित्र और दूषित न करे.

महात्मा बुद्ध ने कहा – तुम अपने आपको दूषित क्यों कहते हों? स्पर्श से कभी कोई भी दूषित नहीं होता हैं. मनुष्य तो लोभ, लालच, घृणा, इर्ष्या से दूषित होता हैं. तुम्हारे अन्दर तो प्रेम भरा हैं, तुम दुसरो का सुख चाहते हो. तुम तो पवित्र हो. बुद्ध के बोल सुनकर कुछ लोग बोले, तुम तो अपने आपको बड़े ज्ञानी कहते हो तुमको जाति का कोई ज्ञान ही नहीं हैं, तुम पाखंडी हो.

बुद्ध बड़े ही शांत स्वभाव से कहते हैं – मानव से मानव की मानवता छिनना पाखंडी की निशानी हैं. मुझे पाखंडी बोलकर यदि आपको संतोष मिलता हैं, तो मेरे लिए दुःख का कोई विषय नहीं हैं. कुछ लोग बुद्ध पर बरस पड़े – परन्तु यह तो धर्म शास्त्र हैं, फिर यह पाखंड कैसे हुआ.

बुद्ध कहते हैं – हमरी उत्पति इस सृष्टी में हुई हैं, नदियों का पानी सभी की समान रूप से प्यास बुझाता हैं, खुले जंगलो की हवा भी भेदभाव नहीं करती हैं, खुला आसमान हमारे पिता के समान हमारी परवरिश करता हैं. सृष्टीकर्ता ने भी कोई भेदभाव नहीं किया हैं, फिर हम इंसान कौन होते हैं भेद भाव करने वाले.

मानव मानव में भेद करके अपने संबंधों को बिगाड़ता हैं. बुद्ध के वचन के बाद कुछ लोग कहते हैं अगर आप इतना ही कहते हैं तो सुमित को अपना भिक्षु क्यों नहीं बना लेते हैं. बुद्ध ने कहा की अच्छा सुझाव हैं. अगर सुमित तुम चाहते हो तो तुम मेरा भिक्षु बन सकते हो. बुद्ध के आमंत्रण पर सुमित पहला नीच जाति का बौद्ध भिक्षु बनता हैं. इस पूरे विवरण में केवल सुमित का जीवन बदला, शेष सभी लोगो का जीवन रूपांतरित हुआ.

अश्लील विचारों को कैसे रोके – गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी

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अगर ना चाहते हुए भी मन में अश्लील विचार आते हैं तो बुद्ध की यह कहानी आपके विचारों को बदल सकती हैं.एक बार चंद्रूवंशी राजकुमार भरत बुद्ध के सानिध्य भिक्षु के रूप में दीक्षित हुए. बुद्ध अपने भिक्षुओं को उपदेश देने के साथ साथ उनको भिक्षाटन के लिए भेजते थे, जहाँ से उनको भिक्षा मिलती. भरत को महात्मा बुद्ध ने भिक्षा लेने के लिए एक श्राविका के घर पर भेजा. भरत रास्ते में चलते हुए सोच रहे थे कि ना जाने आज खाने में क्या मिलेगा.

हमेशा महल में खाने के लिए अनगिनत स्वादिष्ट भोजन मिलते थे, लेकिन आज जो भी मिलेगा, उसी से काम चलाना पड़ेगा. भरत ने श्राविका के घर पर जाकर भिक्षा के लिए याचना की. श्राविका ने भरत को बैठने के लिए कहा. श्राविका जब अन्दर गयी थी तो, भरत पुन: अपने प्रिय भोजन के बारे में सोच रहे थे. जब श्राविका भोजन लेकर आई तो भरत अचम्भित रह गए, भरत अपने प्रिय भोजन को देखकर खुश हो गए. भरत भिक्षा ग्रहण करने लगे.

भिक्षा ग्रहण करते हुए भरत सोचने लगे की उनको हमेशा खाने खाने के बाद कुछ विश्राम करने की आदत हैं. लेकिन आज उन्हें यहाँ से खाना ग्रहण करने के बाद धुप से होकर वापस आश्रम पहुंचना हैं. भोजन हो जाने पर श्राविका ने भरत को कुछ समय विश्राम करने के लिए आग्रह किया. भरत पुन: खुश हो गए. सारी इच्छाओं की पूर्ति होते देख भरत इसको एक संयोंग मानकर कुछ देर के लिए लेट गए.

लेटते हुए भरत सोचने लगे, कि आज तो सोने को मिल गया, लेकिन मेरे सर पर हमेशा के लिए छत का साया तो मिट गया हैं. जब भरत सोकर पुन: उठे तो श्राविका ने कहा की आपको जब तक यहाँ पर रहना हैं आप यहाँ पर थर सकते हैं. अब भरत समझ गए की ये कोई संयोग नहीं हैं. श्राविका जरुर मेरा मन पढ़ रही हैं. भरत खड़े हुए.

भरत ने श्राविका से पुछा – मुझे क्षमा कीजिये पर क्या आप मेरा मन पढ़ सकती हैं? आप यह सब कैसे कर लेती हैं? श्राविका ने कहा – शुरू शुरू में मेरे लिए ये कठिन था. लेकिन मैंने खुद के विचारों को देखना शुरू किया, शुरू में मेरे विचारों की संख्या अनगिनत थी, पर मैंने अपना पूरा ध्यान उन विचारों पर केन्द्रित किया. मैंने बिना पक्ष विपक्ष के अपने विचारों को देखना जरी रखा.

धीरे धीरे मेरे विचारों की संख्या कम होती गयी. मेरे सारे व्यर्थ विचार दूर होते गए. तब से मैं दूसरों के विचार पढ़ लेती हूँ यह सब सुनकर भरत घबरा गए. भरत ने श्राविका से आज्ञा ली और, वहां से निकल पड़े. रास्ते में चलते हुए भरत अपने मन के विचारों का स्मरण करने लगे. भरत के मन में श्राविका के बारे में अश्लील विचार आयें, श्राविका ने भरत के बारे में क्या सोचा होगा.

भरत को खुद पर शर्म आ रही थी. भरत आश्रम पहुंचे, भरत ने बुद्ध से कहा की अब से वह कभी भिक्षाटन के लिए नहीं जायेंगे. बुद्ध ने भरत को नीचे बैठाया और कहा – क्या हुआ तुम मुझे अपनी व्यथा विस्तार से बताओ, भरत ने विस्तार से सारी बात बताई. भरत की बातों को सुनकर बुद्ध ने कहा कि आज से सात दिनों के लिए श्राविका के घर पर भिक्षा के लिए तुम ही जाओंगे. लेकिन तुमको कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा.

कल तुम जाते हुए अपने चित को पूरे होश में रखना, तुम्हारे अन्दर कौनसे विचार उठ रहे हैं, उन पर ध्यान केन्द्रित करना, होशपूर्ण और जाग्रता के साथ ध्यान करना की कौनसी वासना तुम्हारे भीतर उठ रही हैं, इन सभी का ध्यान करते हुए जाना और फिर मुझसे विचार विमर्श करना. अगले दिन भरत बुद्ध के बताये अनुसार – पूरे मार्ग में अपने होश को जाग्रत रखते हुए चल रहा था. भिक्षु आज पूरी तरह से जगा हुए था. जैसे जैसे श्राविका का घर नजदीक आ रहा था, भरत की घबराहट बढ़ रही थी.

भरत ने अपनी घबराहट को एक तरफ करते हुए बुद्ध के विचारों पर ध्यान केन्द्रित किया. जब भरत श्राविका के घर पर पहुंचा तो, उसके दिमाग में केवल एक सन्नाटा था, जिसके भीतर कोई वासना नहीं, कोई कामना नहीं, ना कुछ अच्छा पाने की इच्छा थी. भिक्षु भरत ने भिक्षा ली, ग्रहण की और वहां से वापस निकल गया. आज भरत रास्ते में नाचते हुए आया. आज उसको जिस आनंद की अनुभूति हुई, वह अद्भुत थी. आज से पहले इस आनंद को उसने कभी महसूस नहीं किया. भरत ने आश्रम जाकर बुद्ध को प्रणाम किया.

दुष्यंत और शकुंतला की कथा

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महात्मा बुद्ध और उनके उपदेश – बौद्ध धर्म ज्ञान

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