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महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय(gautam buddha ki jivni)
महात्मा बुद्ध के बचपन का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था. महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय हमको एक जीवंत दैवीय दर्शन कराता हैं. “महात्मा गौतम बुद्ध की जीवनी” इस जीवन को मोक्ष की तरफ अग्रसर कराती हैं. गौतम बुद्धा की इस जीवन यात्रा से आपको अधिक से अधिक लाभ हो. इसलिए आप महात्मा बुद्ध की इस जीवनी को बड़े ही ध्यान से पढ़े. इस आर्टिकल में हम आपको महात्मा बुद्ध का बचपन, उनके मोहमाया घर-बार छोड़ने के कारण इसके साथ साथ हम आपको उनके जीवन के मूल के दर्शन कराने का प्रयास करेंगे.
महात्मा बुद्धमहात्मा बुद्ध के बचपन का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था. महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय हमको एक जीवंत दैवीय दर्शन कराता हैं. “महात्मा बुद्ध की जीवनी” इस जीवन को मोक्ष की तरफ अग्रसर कराती हैं. गौतम बुद्धा की इस जीवन यात्रा से आपको अधिक से अधिक लाभ हो. इसलिए आप महात्मा बुद्ध की इस जीवनी को बड़े ही ध्यान से पढ़े. इस आर्टिकल में हम आपको महात्मा बुद्ध का बचपन, उनके मोहमाया घर-बार छोड़ने के कारण इसके साथ साथ हम आपको उनके जीवन के मूल के दर्शन कराने का प्रयास करेंगे.
महात्मा बुद्ध के वंश कुल का परिचय(gautam buddh ka janm kahan hua tha)
बात 2500 वर्ष पहले, उस वक्त की हैं, जब भारत सोलह महाजनपदो में विभाजित था. अब तक समाज चार वर्ण व्यवस्था में विभाजित हो चूका था. वैशाख पूर्णिमा के दिन शाक्य वंशीय क्षत्रिय राजा सुद्धोधन और माता मायादेवी के घर पर एक राजकुमार का जन्म हुआ. (गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई पू को लुम्बिनी में हुआ था). उस राजकुमार का नाम सिद्धार्थ रखा गया. सिद्धार्थ ही महात्मा बुद्ध हैं, लेकिन बुद्धा के जीवन के तीस साल राजसी शान शौकत में ही बीते.
बुद्धा के जन्म से पहले माता माया देवी को रात में एक सपना आया. सपने में माता माया देवी को एक सफ़ेद हाथी दिखाई दिया जो की भगवान् की शरण में कमल को अर्पित कर रहा था. जब माता मायादेवी को इस सपने का कोई अर्थ समझ नहीं आया तो, मायादेवी किसी ब्राहमण के पास गयी तब ब्राहमण ने माया देवी के गर्भ में पल रहे बच्चे को लेकर एक भविष्यवाणी की, ब्राह्मण ने बताया कि, तुम्हारे गर्भ में पल रहे बच्चे को यदि ज्ञान से वंचित रखा गया तो यह संत(घर बार छोड़ देगा) बन जायेगा, और यदि ज्ञान को ज्ञान की भांति दिया जायेगा तो यह इस विश्व को विजय कर लेगा.
महात्मा गौतम बुद्ध(सिद्धार्थ) का बचपन
राजा शुद्धोधन किसी भी तरह सिद्धार्थ को संत बनाना नहीं चाहते. इसके लिए राजकुमार सिद्धार्थ को एक आलिशान जिंदगी दी. राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ को इतनी राजसी जिंदगी दी की राजकुमार सिद्धार्थ अपनी तीस वर्ष इस बात से भी वंचित रहे की कभी धुल भी हवा में उड़ती हैं. सिद्धार्थ इतने मार्मिक थे की एक बार उन्होंने चीटी के अन्डो को देखकर कहा की ये इतने छोटे अंडे जब हम इन पर पैर रखते होंगे तो इनको तो अपनी जान का खतरा होता होंगा.
राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए तीन महल बनवाये. इन तीनो महलो को इस प्रकार तैयार किया गया कि राकुमार सिद्धार्थ क्रमश: ग्रीष्म, वर्षा और शीत ऋतु में बिना कोई तकलीफ रह सके. ऐसा कहा गया हैं, सिद्धार्थ गणित में अत्यंत कुशल थे. कुछ जगहों पर कहा गया हैं कि सिद्धार्थ को 64 भाषाओँ का ज्ञान था. सिद्धार्थ के तीनो महलो में तीन तालाब थे, तीनो तालाबों में एक एक कमल थे, जिनके रंग सफ़ेद, नीले और लाल थे. इन कमलो का बुद्ध के जीवन में विशेष महत्व हैं. कमल को बुद्धा के जीवन का प्रतीक माना जाता हैं.
16 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नाम की कन्या से कर दिया गया था. अब तक सिद्धार्थ ने केवल देहिक प्रेम करना ही सीखा. सिद्धार्थ यशोधरा के प्रेम में इतने अंधे थे की एक बार सिद्धार्थ और यशोधरा छत पर एक दुसरे का हाथ पकड़ कर घूम रहे थे, तब अचानक दोनों ऊपर से गिर गए, हालाँकि सिद्धार्थ के चारो और मखमल और मुलायम गद्दे गलियारे से हर वक्त साथ रहते थे, इसलिए दोनों कोई भी तकलीफ नहीं हुई. दोनों के प्रेम से एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम राहुल रखा गया था. राहुल सिद्धार्थ की पहली संतान थी. आगे चलकर राहुल भी महात्मा बुद्ध का अनुयायी बन गया.
आप पढ़ रहे हैं महात्मा गौतम बुद्ध का जीवन परिचय
सिद्धार्थ और सारथी के प्रश्न
सिद्धार्थ ने अपनी तीस वर्ष की उम्र तक कोई दुःख, पीड़ा, व्यथा, असंतोष नहीं देखा था. लेकिन जो विधाता ने तय किया वह तो होना ही था. वह दिन आ ही गया जिस दिन सिद्धार्थ को महात्मा बुद्धा बनने के लिए एक कदम बढ़ाना था, वह दिन आ ही गया जब वर्षो पुरानी भविष्यवाणी सच होने वाली थी, वह दिन आ ही गया जब राजा शुद्धोधन की लाख कोशिशो के बावजूद भी यह प्रकृति भी राजकुमार सिद्धार्थ को बुद्धा बनाने के लिए उनका साथ दे रही थी. सिद्धार्थ को किसी यज्ञ में शामिल होने के लिए महल से बाहर जाना था. इसके लिए राजा शुद्धोधन ने एक निजी रास्ते का निर्माण करवाया, जो पूरी तरह से राजसी था. लेकिन जब शिद्धार्थ और उनका सारथी महल से बाहर निकले तो, प्रकृति(सृष्टि) का ऐसा फेरा हुआ कि सारथी और सिद्धार्थ उस रास्ते को छोड़कर किसी अन्य रास्ते की तरफ निकल पड़े.
इसी रास्ते ने सिद्धार्थ के सारे मोह बंध को तोड़ कर, उसको बुद्ध बनाया. सिद्धार्थ ने इस रास्ते में चार लोगो को देखा और अपने सारथी से चार प्रश्न किये, इस चारो प्रश्नों ने सिद्धार्थ को महात्मा बुद्ध बना दिया. सबसे पहले सिद्धार्थ ने एक सफ़ेद बाल वाले एक बूढ़े व्यक्ति को देखा, इस अजीब वेशभूषा और दुबले व्यक्ति को देख कर सिद्धार्थ ने सारथी से सवाल क्या, ये कौन हैं? सारथी ने जवाब दिया. राजकुमार ये कोई वृद्ध आदमी हैं, हर आदमी अपनी जवानी के पश्चात् इस अवस्था को प्राप्त होता हैं.
आगे सिद्धार्थ ने एक बीमार व्यक्ति को दुःख से तड़पते देखा, उस बीमार व्यक्ति की हालत को देखकर सिद्धार्थ ने सारथी से सवाल किया, ये आदमी ऐसा क्यों हैं? सारथी ने जवाब दिया – राजकुमार ये आदमी बीमार हैं, बीमार आदमी को शारीरिक दुख होता हैं. इस दुःख को सहन करना सबके वश की बात नहीं होती हैं. राजकुमार सिद्धार्थ ने आज वह देखा जो उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में नहीं देखा था, आगे सिद्धार्थ को एक लाश को देखा जिसको कुछ लोग लेकर जा रहे थे,
फिर से सिद्धार्थ ने सारथी से प्रश्न पुछा की ये लोग इस आदमी को इसे बांध कर कहाँ लेकर जा रहे है? और उसके पीछे सभी लोग चिल्ला क्यों रहे हैं? सारथी ने बताया की राजकुमार ये आदमी मर गया हैं, ये जीवन की सच्चाई हैं की जो व्यक्ति जन्म लेता हैं उसको मरना ही होता हैं. हम सभी नश्वर हैं. हम सभी का एक दिन जाना ही हैं. ये सब सुनकर सिद्धार्थ सोच में पड़ गये, सिद्धार्थ अब तक इन विषयों से वंचित थे. आगे सिद्धार्थ ने एक सन्यासी को देखा, जो कि मस्ती से झूम रहा था? उसकी ख़ुशी को देखकर सिद्धार्थ ने सारथी से पुछा की व्यक्ति इतना खुश क्यों हैं?
राजकुमार ये सन्यासी हैं इनका जीवन सुख से भरपूर होता हैं, क्योंकि इनका कोई सगा सम्बन्धी नहीं होता, ना ही इनको कोई लालच और इच्छा होती हैं. जो मिलता हैं बस उसी में खुश रहते हैं. सिद्धार्थ ने सारथी से कहकर रथ को रोकाया और कहा की बस अब तुम रथ को वापस महल लेकर चलो, हम किसी भी यज्ञ में नहीं जायेंगे. इसके बाद सिद्धार्थ वापस महल लौट आए. और उन घटनाओ का स्मरण करने लगे. सिद्धार्थ को महल में कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. अब तक सिद्धार्थ केवल अपने पिता के आश्रय पर थे, आश्रय पर रहने वाला कभी खुद को जान नहीं पाते. आज जब सिद्धार्थ ने चार अवस्थाओं को देखा तो उसके मन में कुछ सवाल उठने लगे? जो आज से पहले कभी उनके मन में नहीं आये? सिद्धार्थ को उन सभी सवालों के जवाब खोजने हैं.
सिद्धार्थ के मन में कौनसे सवाल उठे थे?
इस दुनिया में लोग दुखी क्यों हैं? दुनिया के दुःख का कारण क्या हैं? मोक्ष की सच्चाई क्या हैं? इन सवालो का जवाब ढूंढने के लिए सिद्धार्थ को महल और मोह माया छोडनी पड़ेगी? इसलिए तीस वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ रात्रि को, सिद्धार्थ के रूप में अंतिम बार अपने पुत्र राहुल और यशोधरा को देखने के लिए जाने वाले ही थे कि उनके पैर रुक गए, सिद्धार्थ जानते थे की अगर वह परिवार के सदस्यों तक पहुँच गए तो फिर उनका मन बदल भी सकता हैं इसलिए सिद्धार्थ बिना किसी से मिले वहां से चल दिए. जैसे जैसे सिद्धार्थ अपने महल से कदम बाहर की तरफ बढ़ा रहे थे, इच्छाओं का बादल मारा, सिद्धार्थ के सर पर मंडरा रहा था, सभी सुख, महल, कोमल सय्या, स्वादिष्ट भोजन, तपस्या के लिए शरीर को तपाना होगा, ज्ञान की प्राप्ति के लिए बलिदान, भीख मांगना इत्यादि इच्छाएं-विइच्छाएं सिद्धार्थ को रोकने में असफल रही.
सिद्धार्थ द्वारा महल को छोड़ना
महल से बाहर निकलते ही सिद्धार्थ सबसे पहले अपने गुरु अलाराकरामा के पास गए, अलाराकरामा ने सिद्धार्थ को इच्छाओं को वश में करना सिखाया. इसके लिए अलाराकरामा ने सिद्धार्थ को योग और ध्यान विद्या सिखायी. लेकिन सिद्धार्थ को अपने प्रश्नों का जवाब नहीं मिला तो वह अपने दुसरे अदिकराजपुत्र गुरु के पास चले गए, लेकिन वहां पर भी सिद्धार्थ को कोई ज्ञान नहीं मिलता हैं. सिद्धार्थ समझ गए की ज्ञान की प्राप्ति के लिए तपस्या करनी होगी.
सिद्धार्थ महात्मा बुद्धा कैसे बने
इसके बाद सिद्धार्थ जंगल में चले गए और छ साल तक अपने शरीर को घोर कष्ट देते रहे और तपस्या करते रहे. बिना कपडे, कभी आग के पास बैठ कर, अपने शरीर को गरमाया, तपाया. वह दिन आ ही गया – सिद्धार्थ एक बोधि वृक्ष के नीचे बैठे थे. उस दिन सिद्धार्थ मरने की कगार पर थे, शरीर बिलकुल क्षीण हो चूका था, पूरे 49 दिनों से सिद्धार्थ योग की मुद्रा में बैठे हुए थे. सिद्धार्थ पूरी तरह से ध्यान मे विलिन हो चुके थे.
एक बार फिर इच्छाओं का मारा सिद्धार्थ के मन में छा गया था. सिद्धार्थ का पूरा जीवन एक क्षण में उनकी आँखों के सामने आ गया था. मारा ने अपनी तीन कन्याओं को सिद्धार्थ के मन में भेजा, लेकिन सिद्धार्थ बिना विचलित हुए उसी मुद्रा में बने रहे. अंत में मारा हार मान जाता हैं. सिद्धार्थ को एक दिव्य ज्ञान की अनुभूति हुई, जो आज से पहले कभी नहीं हुई. सिद्धार्थ के मन में जितने भी सवाल थे उन सभी उत्तर उनको मिल चुके थे.
सिद्धार्थ बोधि वृक्ष के नीचे से उठकर खड़े हुए, उठकर सबसे पहले सिद्धार्थ ने इस धरती को छुआ, जैसे ही सिद्धार्थ ने धरती को छुआ तो धरती पर भूकंप सा आ गया, जो सिद्धार्थ के बुद्ध होने का प्रतीक हैं. अब सिद्धार्थ महात्मा बुद्ध बन चुके थे. लम्बे समय के ध्यान के पश्चात् बुद्ध(bhagwan buddha) को बहुत भूख लगी थी, सुजाता नाम की औरत खीर बनाकर लायी थी, बुद्ध ने उस खीर को खायी और वापस बोधि वृक्ष के नीचे बैठ गए. गौतम बुद्धा बहुत खुश थे, शांति उनके रग रग में बस चुकी थी.
बुद्धा के सामने दो विकल्प थे, पहला की वह अपने ज्ञान को अपने तक ही सिमित रखे, दूसरा की वह इस ज्ञान को लोगो तक फैलाये. बुद्धा को ज्ञान को अपने तक सिमित रखने के पीछे एक तर्क था की – इस दुनिया को किसी विचार से अवगत कराना, अत्यंत टेढ़ी खीर हैं. चूँकि हमारे विचार ही हमारा धर्म हैं, बुद्ध के विचार(gautam buddha in hindi) भी आगे चलकर एक बुद्दिज्म विचारधारा जो की बौद्ध धर्म बना.
बुद्धा ने विचार किया की वह इस ज्ञान को फैलायेंगे, लोगो को मोक्ष का पथ बताएँगे, धर्म के चक्र को बताएँगे. बुद्धा पर कुछ समय से चार लोग निगरानी कर रहे थे. बुद्धा को जब ज्ञान की प्राप्ति हुई तो बुद्धा ने उन चार लोगो से जाकर कहा की उनको ज्ञान की प्राप्ति हो गई हैं. तो उन चारों मित्रो ने उनका उपहास बनाया. यहाँ पर एक किस्सा हैं – बुद्धा को अपशब्द कहे जाने लगे, उनको बहुत भला बुरा कहा जाने लगा,
जब सामने वाला शांत हुआ तो बुद्धा ने जवाब दिया कि मन लीजिये आपके पास दस बकरियां हैं, अप उन दस में से चार बकरिया मुझे देना चाहो, और मैं लेने से मना कर देता हूँ तो आपके पास कितने बकरिया बचेगी. सामने वाला जवाब देता हैं – सारी बकरिया मेरी ही रहेगी. बुद्धा कहते हैं मैं तुम्हारी गालियों को लेने से इनकार करता हूँ. बुद्धा के इस व्यवहार को देख कर वे सभी बुद्धा के सामने सरेंडर कर देते हैं और उनके अनुयायी बन जाते हैं. और यही से शुरूआत होती हैं – बौद्ध धर्म का जन्म. फिर महात्मा बुद्ध अपने ज्ञान को लोगो तक पहुंचाते गये, शीघ्र ही बड़े बड़े अशोक जैसे सम्राट भी बुद्ध से जुड़ते गए. बुद्ध ने अनेक संघ बनायें, बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् उनके अनुयायियों ने उनके संघ को जरी रखा.
महात्मा बुद्ध की मृत्यु कैसे हुई
बुद्धा की मृत्यु को “महापरिनिर्वाण” कहते हैं. महात्मा बुद्धा कभी किसी की दिल नहीं दुखाते थे. एक बार उनका एक नया दीक्षित शिष्य उनको खाने के लिए एक भोजन प्रस्तुत करता हैं. महात्मा बुद्ध सब कुछ जानते हुए भी उस भोजन को ग्रहण कर लेते हैं. इस भोजन को करने के पश्चात् महात्मा बुद्ध की तबियत ख़राब हो जाती हैं. फिर महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों को अंतिम शब्द कहकर अपना शरीर को छोड़ देते हैं. महात्मा बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष(483 ई. पू.) की आयु में कुशीनगर में हुई थी.
महात्मा बुद्ध लाइफ quotes – read here
महात्मा बुद्धा(buddha in hindi) को भगवान् विष्णु का दसवां अवतार माना जाता हैं. अब तक आपने इस पोस्ट में सिद्धार्थ यानि महात्मा बुद्धा के जीवन परिचय(about gautam buddha in hindi) के बारे में जाना. अगली पोस्ट में हम महात्मा बुद्धा के सिद्धांत(BUDDHA THEORIES), उनके उपदेश और उनके द्वारा बताया गया धर्म चक्र के बारे में जानेंगे. इस पोस्ट को पढने के लिए यहाँ पर क्लिक करें.
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बहुत ही अच्छी व्याख्या है और अच्छा मार्गदर्शन है
Namo buddhaye