एक बूँद इत्र की – अकबर बीरबल हिंदी किस्से

अकबर बीरबल की हिंदी कहानियां’ में आप पढने जा रहे हैं – इत्र की एक बूँद

बादशाह अकबर मुग़ल काल के जाने माने प्रसिद्द बादशाह माने जाते थे. अकबर बड़े शौक़ीन और खुशमिजाजी किस्म के बादशाह थे. एक बार की बात हैं कि बादशाह अकबर का जन्म दिवस नजदीक आ रहा था. जन्म दिवस को मनाने के लिए विशाल दरबार सजाया गया था.
सभी दरबारी और बादशाह के रिश्तेदार आने लगे और बादशाह को उनके जन्मदिन की बधाई देने लगे. हर कोई बादशाह को खुश करने के लिए उनके लिए कुछ न कुछ तोहफा जरूर लाता. बादशाह सभी के तोहफों को अपने हाथ से स्वीकार कर अपने सेवक को दे देते.

बादशाह को अलग अलग किस्म के इत्र का बहुत मोह था.
बादशाह अपने मन ने आस दबाये थे की अभी तक कोई विशेष इत्र नही आया. तभी कोई मित्र बादशाह के लिए इत्र लेकर आया, बादशाह ने इत्र को देखकर अपना संयम खो दिया, और उस इत्र की सीसी को अपने दाँये हाथ में लेकर, बांये हाथ को पीछे किया और उस सीसी को थोड़ा टेड़ा करते हुए मुस्कराए और बोले, ह्म्म्म… हमारी नज़रे सारे तोहफों में इसी की तलाश में थी.

इतने में इत्र की एक बूँद नीचे गिर गयी. गिरती हुई बूँद ठीक बादशाह के सामने थी. अब बादशाह उस बूँद को किसी भी तरह व्यर्थ नहीं जाने देना चाहते. फट से बूँद को लपकना चाहा, परंतु बूँद सोफे पर गिर गयी. और रुई की गहराई में समां गई. बादशाह की इस हरकत को बीरबल ने देख लिया, और ऐसा करते हुए बादशाह ने भी बीरबल को देख लिया. बादशाह फटाक से अपने मूल चरित्र में आये…
बादशाह रात भर सोये नहीं… इस बात को लेकर की बीरबल उनके बारे में क्या सोचेगा. सारी रात बादशाह बाये हाथ को सर के निचे और दायें हाथ से दाढ़ी को सहलाते रहे…और सुबह इसका हल निकालने का निश्चय किया. ऐसा विचार कर बादशाह सो गए.


सुबह उठते ही बादशाह ने अपने पांच दस सेवकों को बुलाया. और हुक्म दिया की जाओ अपने महल में जितना भी इत्र हैं सारे इत्र को एक हौद में डाल दो.
हुक्म पाकर सारे नौकर झटाक से सारे महल को छानबीन कर फटाक से सारे इत्र को हौद में डाल दिया. फिर बादशाह ने सारे मंत्रीमंडल को दरबार में इक्कठा किया, ताकि सभी लोग अकबर की महानता को समझ सके. फिर बादशाह ने एक गुहार लगायी की – बादशाह अकबर के दरबार से जिस किसी को जितना चाहिए, उतना इत्र ले जाये.
ऐसा करके बादशाह ये दिखाना चाहते थे कि – वो इत्र की एक बूँद तो क्या, पूरे हौद की कुर्बानी देने को तैयार हैं.
बीरबल को ये सब समझ से आ गया. और भांप लिया कि हो न हो कल की घटना का ही नतीजा हैं… बीरबल से रहा नहीं गया और पूछ लिया जहापनाह ये सब किसलिए…?
अरे बीरबल! दान पुन्य करते रहना चाहिए…
अब बीरबल क्या कहे….बीरबल कहना चाहते थे… एक बूंद से खोयी प्रतिष्टा, हौद में कहा मिलेगी. लेकिन बीरबल चुप रहे… और मन में मुस्करा कर बादशाह के काम की तारीफ करने लगे.


इस अकबर बीरबल के किस्से(akbar birbal kahaniya) इत्र की एक बूँद से हमने क्या सिखा – अपने स्वाभाविक रूप को इस प्रकार ढाले कि, हमारी ओछी हरकते भी लोगो को प्रेरणा लगे. बादशाह की तरह नही कि एक बूँद की गलती के लिए पूरा हौद का हर्जाना भरना पड़े.

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