छत्रपति शिवाजी का इतिहास – इस पोस्ट में आप भारत भूमि में जन्मे महान योद्धा एवं रणनीतिकार छत्रपति शिवाजी के इतिहास के बारे में जानने वाले हैं. शिवाजी महान योद्धा होने के साथ ही उनमें सैनिक कुशलता कूटनीतिज्ञ और महान व्यक्तित्व वाले राजा थे. इन्हें मराठा साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है. भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी का इतिहास बड़े ही सुन-हरे पन्नों में लिखा गया है. इन्हें भारत में ‘मराठा गौरव’ के नाम से भी जाना जाता है.
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छत्रपति शिवाजी का इतिहास
बात है, सन 1627 ई. की पूरे भारतवर्ष पर मुगल साम्राज्य का शासन था. भारत के उत्तर में मुगल बादशाह शाहजहां तो बीजापुर में सुल्तान मुहम्मद आदिलशाह गोलकुंडा में सुल्तान अब्दुल्ला कुतुब शाह का आधिपत्य था. चारों और विदेशी आक्रमणकारियों के होते हुए भी शिवाजी ने अपना साम्राज्य कैसे खड़ा किया? चलिए जानते हैं. छत्रपति शिवाजी की रोमांचित भरे जीवन और इतिहास के बारे में. आज आपको शिवाजी के बारे में ऐसे-ऐसे किस्से और घटनाएं पढ़ने को मिलेगी. जिससे आप शोर्य और रोमांच से लबरेज हो जाएंगे. आपको स्वयं पर मराठा होने या भारत का होने में गर्व महसूस होगा.
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म कब हुआ था?
दक्षिण के सुल्तान अपनी सेनाओं में केवल मुस्लिम नायकों को प्राथमिकता देते थे. लेकिन उत्तर में मुगलों का शासन होने के कारण, मुस्लिम नायकों को अफगान से लाना असंभव हो जाता था. इस कारण सुल्तान अपनी सेना में योग्य हिंदु शासकों को अधीन कर, उन्हें सेनानायक बना देते थे. उन्हीं में से एक थे शाहजी भोंसले. जो उस समय बीजापुर के शक्तिशाली सूबेदार थे. शिवाजी इन्हीं के पुत्र थे.
सन 19 फरवरी 1630 (कहीं-कहीं 1627 माना गया है) को माता जीजाबाई की कोख से शिवाजी का जन्म हुआ. उनका जन्म पुणे के समीप स्थित शिवनेरी दुर्ग में हुआ था. उनका नामकरण स्थानीय देवी ‘शिवाय माता’ के नाम पर रखा गया. जो आगे चलकर छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से विश्व-विख्यात हुए. छत्रपति शिवाजी का गोत्र, शिवाजी का पूरा नाम ‘शिवाजी भोसले’ था. शिवाजी मराठा हिंदू थे. उनके गोत्र ‘भोंसले’ थी.
पिता शाहजी भोंसले अक्सर सैनिक कार्यवाही यो में घर से दूर ही रहते थे. इस कारण शिवाजी का बचपन माता जीजाबाई, दादा कोण देव और समर्थ गुरु रामदास के मार्गदर्शन में हुआ. दादा कोणदेव ने उन्हें युद्ध कौशल और नीति शास्त्र का ज्ञान दिया. तो दूसरी तरफ उनकी माता ने उन्हें धार्मिक पुस्तको जैसे रामायण, महाभारत के आदर्शों का पाठ पढ़ाया. शिवाजी के व्यक्तित्व पर उनकी माता का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा था. इन्हीं आदर्शों से शिवाजी में स्त्रियों तथा विभिन्न धर्मों के प्रति सद्भावना पैदा हुई. और आगे चलकर सुशासित साम्राज्य की स्थापना की.
क्या शिवाजी मुस्लिमों से नफरत करते थे ?
छत्रपति शिवाजी इन मुस्लिमों को अपना दुश्मन नहीं मानते थे. परंतु वे क्रूर और निरंकुश मुस्लिम शासकों, विदेशी आक्रमणकारियों के घनघोर विरोधी थे. वे सभी धर्मों को समान रूप से मानते थे. यही नहीं उनकी सेना में कई मुस्लिम अंगरक्षक एवं मुस्लिम सेनापति भी थे. इसके अलावा, जब शिवाजी किसी दुश्मन क्षेत्र पर कब्जा करते थे. तो वहां की स्त्रियों एवं बच्चों को सम्मान सहित छोड़ देते थे. इससे पता चलता है कि शिवाजी महान व्यक्तित्व के धनी थे.
शिवाजी और आदिल शाह के बीच संघर्ष
शिवाजी महाराज और बीजापुर के सुल्तान आदिल साह के बीच कई सालों तक संघर्ष चलता है. शिवाजी को भली-भांति ज्ञात था कि किसी भी साम्राज्य को स्थापित करने के लिए दुर्गों को जीतना कितना जरूरी है. सर्वप्रथम उन्होंने मावली किसानों को जोड़कर अपनी छोटी-छोटी सेनाएं बनाई. और फिर उन्होंने छापामार युद्ध पद्धति (gorilla walefare) को अपनाया.
इसमें जंगलों में छुप छुप कर दुश्मन सेना पर आक्रमण किया जाता था. मात्र 15 वर्ष की आयु में शिवाजी ने आदिल शाह के कब्जे के तोरण दुर्ग,चाकण दुर्ग और कोंदन दूर को अपने कब्जे में ले लिया. इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक थाने दुर्ग, कल्याण दुर्ग और भिवंडी दुर्ग को भी जीत लिया.
इन सभी घटनाओं ने आदिल साहब को क्रोधित कर दिया. शिवाजी को रोकने के लिए उनके पिता शाहजी भोंसले को कैद कर दिया गया. यह जानकर शिवाजी ने 7 साल तक अपना अभियान रोक लिया. लेकिन इन 7 सालों में शिवाजी ने अपनी विशाल सेना का निर्माण किया.
सन 1657 ईसवी तक शिवाजी ने 40 से अधिक दुर्ग जीत लिए थे.
शिवाजी के बढ़ते साम्राज्य को देख सुल्तान आदिलशाह आग बबूला था. बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी पर आक्रमण करने के लिए अफजल खान को भेजा. जो उस समय का एक क्रूर और निर्दयी शासक माना जाता था. सर्वप्रथम उसने शिवाजी को उकसाने और खुला युद्ध करने के लक्ष्य से हिंदू मंदिरों को तोड़ा और कई मासूमों की जान ले ली.
परंतु शिवाजी ने अपनी चतुराई और रण कौशल का परिचय देते हुए. छापामार युद्ध पद्धति का प्रयोग किया. जब युद्ध में जीत की आस न दिखी तो, अफजल खान ने शिवाजी के साथ संधि करने का न्योता भेजा. यह उसकी एक साजिश थी. जिसे शिवाजी ने भाप लिया था. दोनों की मुलाकात प्रतापगढ़ दुर्ग में हुई.
अफजल खान ने शिवाजी को गले मिलने के बहाने अपनी बाहों में दबाकर मारने की कोशिश की. क्योंकि अफजल खा कद-काठी और शरीर से शिवाजी महाराज से दो गुना लंबा-चौड़ा था. लेकिन शिवाजी भी पूरी तैयारी के साथ गए थे. उन्होंने अपने हाथों में पहन रखी रखें बाघ नख से अफजल का पेट ही चीर डाला.
शिवाजी यहीं नहीं रुके. उन्होंने मुस्लिम सेना की कमर तोड़ दी. साथ ही प्रतापगढ़ दूर को भी जीत लिया. जब यह खबर आग की तरह फैली तो पूरे सल्तनत में हड़कंप मच गया. शिवाजी रातों-रात एक महान योद्धा के रूप में जाने जाने लगे. क्योंकि अफजल खान जैसे शासक को मारना आसान नहीं था.
इस बार आदिल शाह की ओर से रुस्तम जमान को भेजा गया. 28 दिसंबर सन 1659 में शिवाजी और रुस्तम जमान के बीच भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में शिवाजी की जीत हुई और रुस्तम जमान अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया. इस तरह शिवाजी ने अपनी रण कौशल और कूटनीतिज्ञ के दम पर अफगानी शासकों के नाक में दम कर रखा था.
शिवाजी का मुगलों से संघर्ष
उस समय दिल्ली की गद्दी पर बादशाह औरंगजेब का शासन था. औरंगजेब भी शिवाजी की बढ़ती शक्ति को देख कर आतंकित था. उसने तुरंत ही शिवाजी के खिलाफ, अपने मामा शाइस्ता खां को डेढ़ लाख की सेना के साथ कूच करने का आदेश दिया. शक्तिशाली सेना के दम पर मुगलों ने शिवाजी के निवास स्थान लाल महल पर कब्जा कर लिया. और शिवाजी को वहां से भागना पड़ा.
लेकिन शिवाजी और उसके 350 सैनिकों ने बारातियों के वेश धारण कर लाल महल में घुस गए. रात के समय में शिवाजी ने शाइस्ता खां पर जोरदार हमला कर दिया. इस हमले में शाइस्ता खान खिड़की से कूदकर बच निकला. लेकिन शिवाजी के वार से उसे अपनी चार उंगलियां गवानी पड़ी. उंगली तो गई और इज्जत भी. यहां शाइस्ता खां के पुत्र अबुल फतेह मारा गया.
सूरत को लूटा
शाइस्ता खां द्वारा शिवाजी के क्षेत्र में जो तबाही मचाई थी. उसकी भरपाई करने के लिए सूरत को लूटना प्रारंभ किया. उस समय सूरत पश्चिमी व्यापारियों का प्रमुख केंद्र था. और एक प्रमुख बंदरगाह की था. शिवाजी ने यहां के व्यापारियों को खूब लूटा. इन घटनाओं ने मुगलों को परेशानी में डाल दिया. और अब की बार औरंगजेब ने सेनापति दिलेरखान और सेनापति सवाई जय सिंह को शिवाजी के विरुद्ध भेजा. सवाई जयसिंह की सेना ने शिवाजी की सेना को बुरी तरह परास्त कर दिया. जीत की आस न देख शिवाजी ने संधि का प्रस्ताव रखा.
22 जून 1665 को सवाई जयसिंह और शिवाजी के मध्य एक संधि हुई. इसे इतिहास में पुरंदर की संधि के नाम से जाना जाता है. इस संधि के तहत शिवाजी को अपने 35 किलो में से 23 दुर्ग मुगलों के अधीन और शेष 12 दुर्ग शिवाजी के को दिए गए. इसके तहत शिवाजी के पुत्र संभाजी महाराज मुगल दरबार में अपनी सेवाएं देंगे, वे स्वयं नहीं. और बीजापुर के खिलाफ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे. यह सब इस संधि में तय हुआ था.
शिवाजी की आगरा यात्रा
मुगलों से संधि करने के बाद शिवाजी को आगरा आमंत्रित किया गया. मुगल दरबार में उचित सम्मान ना मिलने पर शिवाजी वहां से पीठ दिखा कर चले गए. औरंगजेब इससे क्रोधित होकर शिवाजी और उसके पुत्र को कैद करवा देते हैं. कुछ दिनों बाद शिवाजी बीमारी का बहाना बनाते है. और उनके स्वास्थ्य के जल्दी सुधरने के लिए गरीबों को फल एवं मिठाइयां देने का आग्रह औरंगजेब से करते हैं.
एक दिन शिवाजी और उसके पुत्र फलों की टोकरी में छूप कर वहां से बाहर निकल जाते हैं. इस तरह शिवाजी अपने बुद्धि कौशल से औरंगजेब के चंगुल से बचकर निकलने में कामयाब हो जाते हैं. यह सूचना जब औरंगजेब को लगती है तो, वह आग बबूला होता है. और शिवाजी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का ऐलान कर देता है. लेकिन सन 1667 में शिवाजी और औरंगजेब के मध्य एक शांति समझौता होता है. और इस बार औरंगजेब, शिवाजी को राजा मान लेते हैं.
उसके पश्चात सन 1670 में शिवाजी दूसरी बार सूरत को लूटने का अंजाम देते हैं. और इस तरह औरंगजेब और शिवाजी के बीच संघर्ष चलता रहता है. लेकिन औरंगजेब जीते जी शिवाजी को अपने अधीन नहीं कर पाते हैं.
छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक (इतिहास)
मुगलों और अफगानो से कई संघर्षों के बाद आखिरकार वह दिन आता है. जिसकी शिवाजी ने कल्पना की थी- पूर्ण हिंदुआ स्वराज. सन 1675 में रायगढ़ के दुर्ग में जोरदार उत्सव के साथ शिवाजी का राज्याभिषेक किया गया. मराठा सरदारों के द्वारा उन्हें छत्रपति यानी ‘प्रजा को छाया प्रदान करने वाला राजा’ की उपाधि दी गई. यहीं से मराठा साम्राज्य की मजबूत नींव रखी गई.
राज्याभिषेक होने तक शिवाजी के अधिकार में 300 से अधिक दुर्ग और एक लाख से अधिक सेना थी. उन्होंने अपने दरबार में 8 बड़े मंत्रियों की परिषद बनाई. जिसे अष्टप्रधान परिषद कहा जाता है. इस अष्टप्रधान परिषद में पेशवा (प्रधानमंत्री) सबसे बड़ा पद माना जाता था. राज्याभिषेक के बाद शिवाजी ने फारसी के बजाय संस्कृत को अपनी राजभाषा बनाया.
शिवाजी की कितनी पत्नियां थी?
छत्रपति शिवाजी का विवाह 14 मई 1640 को सहबाई निंबालकर के साथ, अपने निवास स्थान लाल महल में हुआ. शिवाजी ने अपने जीवन में कुल आठ विवाह किए थे. यह उनकी साम्राज्य विस्तारवादी नीति थी. विवाह करके वे आसपास के क्षेत्रों को अपने अधीन कर लेते थे. शिवाजी के पुत्र का क्या नाम था? शिवाजी और उनकी पहली पत्नी सहबाई निंबालकर के यहां एक पुत्र हुआ. उनके पुत्र का नाम ‘संभाजी महाराज’ था. संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 में हुआ था. शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके जेष्ठ पुत्र संभाजी, उत्तराधिकारी बने थे.
शिवाजी का अंग्रेजों के साथ संघर्ष (छत्रपति शिवाजी का इतिहास)
शिवाजी को अफ़गानों, मुगलों के अलावा अंग्रेजों से भी संघर्ष करना पड़ा था. शिवाजी को भलीभांति साथ था कि, कोई भी विदेशी आक्रमणकारी समुद्र के रास्ते से ही भारत में प्रवेश कर सकता है. इस कारण उन्होंने नौसेना का निर्माण किया. उन्होंने गुजरात तट से लेकर कोकण तट और मालाबार तट तक नौसेना और युद्ध पोतो का निर्माण किया. भारत में सर्वप्रथम नौसेना बनाने का श्रेय शिवाजी महाराज को ही जाता है. वर्तमान में भारतीय नौसेना की अवधारणा भी यहीं से ली गई है.इसी कारण इन्हें ‘फादर ऑफ इंडियन नेवी’ भी कहा जाता है.
शिवाजी की मृत्यु कैसे हुई?
‘मराठा गौरव’ कहलाने वाले छत्रपति शिवाजी का सन 1680 में बीमारी के चलते स्वर्गवास हो गया. हालांकि कई इतिहासकारों का मत है कि, उन्हें जहर दिया गया था. शिवाजी की मृत्यु के बारे में कई इतिहासकारों में मतभेद है. मात्र 52 वर्ष की आयु में शिवाजी की मृत्यु हो गई थी. मराठा के लिए यह एक बहुत बड़ी हानि थी. लगभग 6 वर्षों तक इन्होंने स्वतंत्र रूप से सुव्यवस्थित शासन किया. शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र संभाजी महाराज, मराठा साम्राज्य के उत्तराधिकारी नियुक्त किए गए.
“शिवाजी जैसे व्यक्तित्व वाले इंसान कभी मरते नहीं, हमेशा लोगों के दिलों में अमर रहते हैं”
छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ी कुछ अन्य रोचक जानकारियां-
• हर साल 19 फरवरी को पूरे भारत में छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है खास तौर पर मुंबई में मनाई जाने वाली उनकी जयंती पूरे भारत में प्रसिद्ध है
• मुंबई का प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा इन्हीं के नाम पर छत्रपति शिवाजी इंटरनेशनल एयरपोर्ट रखा गया है
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आप मराठा साम्राज्य न होता तो भारत कैसा होता, ना होता तो राष्ट्र भाषा क्या होती, क्या भारत इस्लामिक देश होता,
क्या हम कन्वर्ट हो चुके होते इस विषय
पे विस्तार से एक आर्टिकल(लेख) लिखे ताकि आने वाली पीढ़ियां ज्यादा
से ज्यादा जान शके।