उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रुको यह कहना स्वामी विवेकानंद का सुंदर, तेजोदीप्त मुखमंडल, उन्नत ललाट, बड़ी-बड़ी चमकदार आंखें, सुगठित देवदार की तरह तना सीधा शरीर, गंभीर और मधुर वाणी. कुल मिलाकर कहे कि, बडे ही प्रभावशाली और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे स्वामी विवेकानंद. जिनका जीवन परिचय (swami vivekananda in hindi ) प्रस्तुत करते हैं. विवेकानंद का अर्थ विवेक= धैर्य, आनंद= अनुभूति अथार्त, धैर्य की अनुभूति होना.
स्वामी जी का मुख्य मंडल ऐसा था कि, हर कोई उन्हें देखकर सहज ही उनकी ओर खींचा आता. स्वामी विवेकानंद का नाम केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि, 19वीं सदी में संपूर्ण विश्व पर उनके विचारों और उनके कार्य की छाप रही है. वे भारतीय पुनर्जागरण के महानायक थे. इन्होने हिन्दू संस्कृति और सिदान्तो को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई.
स्वामी विवेकानन्द का जीवन परिचय(Swami Vivekananda in Hindi)
नाम- | स्वामी विवेकानन्द |
वास्तविक नाम- बचपन का नाम- | नरेन्द्र नाथ दत्त नरेन्द्र |
जन्म- जन्म स्थान- | 12 जनवरी 1863 कलकत्ता (वर्तमान- कोलकाता) |
पिता का नाम- माता का नाम- दादा का नाम- | विस्वेंद्र नाथ दत्त भुवनेश्वरी देवी दुर्गा नाथ दत्त |
अध्यात्मिक गुरु- | श्री रामकृष्ण परमहंस |
धर्म- राष्ट्रीयता- विवाह- | हिन्दू भारतीय विवाह नही किया (सन्यासी थे) |
कृतियाँ- | राजयोग, कर्मयोग, आधुनिक वेदान्त |
मिशन- | रामकृष्ण मिशन (शुरुआत- 1896) |
मृत्यु- | 4 जुलाई 1904 (आयु-39) |
Swami Vivekananda का जन्म और परिवार
स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 ई. को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुआ था. उनके बचपन का नाम नरेन्द्र था. जबकि नामकरण करते समय नरेन्द्रनाथ दत्त रखा गया. उनके पिताजी का नाम श्री विश्वनाथ एवं माता का नाम श्रीमती भुवनेश्वरी देवी था. श्री विश्वनाथ उस ज़माने में जाने-माने वकील थे. उनकी माता एक धार्मिक विचारो वाली महिला थी. वह नित्य प्रतिदिन शिव पूजा और गीता पाठ किया करती थी. नरेंद्र के दादा का नाम दुर्गानाथ तथा जो कि, संस्कृत और फारसी के विद्वान थे. उन्होंने 25 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया था.
परिवार में आध्यात्मिक वातवरण था. इसी कारण बालक नरेंद्र के मन में अध्यात्म का प्रभाव पड़ गया था. बचपन से ही उनके मन और मष्तिस्क में ईश्वर को जानने और प्राप्त करने की प्रबल इच्छा जागृत हुई. वे जब भी किसी साधु-सन्यासी से मिलते तो उनसे पूछते कि, क्या आपने ईश्वर को देखा है ? वे कैसे दिखते हैं?
स्वामी विवेकानन्द का बचपन (childhood of swami vivekananda in hindi)
नरेंद्र बचपन में निडर और उनकी बुद्धि कुशाग्र थी. उनके बचपन की ऐसी घटनाए जो उनके साहस का परिचय करवाती है. नरेंद्र के घर के पास एक घना पेड़ था. वह उसमें पाव की कैची डालकर उल्टा लटक जाता था. एक बार पड़ोसी ने देखा लिया और नरेंद्र से कहा कि, इस पेड़ पर आइंदा से कभी मत चढ़ना. क्योंकि इस पेड़ पर दो सिंग वाला राक्षस रहता है. जो तुम्हे खा जाएगा. लेकिन नरेंद्र तो वही लटका रहा. जब उसके दोस्त भागने लगे तो, उसने कहा कि देखो मैं लटका हुआ हूं. मुझे तो राक्षस नहीं खा सकता. नरेंद्र शाम होने के बाद पेड़ से उतरा और फिर घर गया. जीवन में इस साहस के बल पर कठिन से कठिन घड़ी में विजय प्राप्त की.
नरेंद्र की स्मृति बहुत तेज थी. एक बार किसी पाठ को पढने पर पूरा याद कर लेते हैं. एक बार जब मेट्रोपॉलिटन स्कूल में पढ़ रहे थे. तो कक्षा में पढ़ा रहे अध्यापक ने देखा कि, उनके पढ़ाते वक्त पीछे बैठे छात्र गप्पे लगा रहे है. अध्यापक ने सभी को खड़ा किया और पूछा ‘मैंने अभी अभी क्या पढाया एक एक कर बताओ’. नरेंद्र ने तो जट से उत्तर दे दिया लेकिन बाकी नही दे पाए. इस कारण अध्यापक ने नरेंद्र को तो बैठा दिया और बाकि छात्रो को खड़ा रखा.
बचपन की एक रोचक घटना
यह देख नरेंद्र भी खड़ा हो गया. अध्यापक बोले ‘मैंने तुम्हे खड़ा होने को नही कहा, तुम बैठ सकते हो. नरेंद्र बोला ‘ नही श्रीमान, इसमें इनकी कोई गलती नही है. बाते तो मै कर रहा था. ये तो बस सुन रहे थे. नरेन्द्र की स्मृति और निष्ठा को देख अध्यापक भी हैरान रह गए. साथ ही उन्होंने सभी को बैठा दिया.
उनके बचपन की एक और घटना, स्कूल के एक अध्यापक रिटायर होने वाले थे. सभी छात्रों ने मिलकर उनका अभिवादन करने का विचार किया. अध्यापक के विदाई के समय अभिनंदन के स्वरूप जब कोई छात्र नहीं बोला तो, आखिर नरेंद्र में निश्चय किया कि, वह एवं मंच पर जाकर बोलेगा. तब नरेंद्र ने आधे घंटे तक भाषण दिया. उसके भाषण की लड़कों ने ही नहीं शिक्षकों ने भी प्रशंसा की.
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शिक्षा (swami vivekananda life story in hindi )
नरेंद्र की प्रारंभिक शिक्षा वहां के स्थानीय विद्यालय में हुई. बाद में 1871 में ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन संस्थान में प्रवेश किया. 1877 में वे अपने परिवार के साथ रायपुर आ गए. 1879 में वापस कलकत्ता आकर उन्होंने प्रेजिडेंसी कॉलेज (वर्तमान में स्कॉटिश चर्च) की प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन प्राप्त किया. ऐसा करने वाले वे एकमात्र छात्र थे. उन्हें इतिहास, कला एवं साहित्य, दर्शन शास्त्र, धर्म शास्त्र इत्यादि विषयों को पढ़ने में रुचि थी. इसके अलावा रामायण, भगवत गीता, महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथो का अध्यन करते थे. 1884 में बी.ए. स्नातक की परीक्षा पास की.
योग-व्यायाम, खेलकूद और संगीत में भी नरेंद्र की विशेष रूचि थी. मेधावी छात्र होने के कारण अल्प समय में ही अपना अध्यन कार्य पूरा कर लेते. फुरसत के समय में खेल-कूद, संगीत और दोस्तों के साथ गप-शप करते. उनकी गप-शप भी निर्थक या थोथी बकवास न हो कर बौद्धिक और सारगर्भित होती.
गुरु रामकृष्ण से स्वामी विवेकानन्द की प्रथम भेंट
स्वामी विवेकानन्द के गुरु श्री रामकृष्ण देव परमहंस थे. जो दक्षिणेश्वर में काली माता के पुजारी थे. यह नवम्बर 1880 की बात है. जब स्वामी जी की आयु 18 वर्ष थी. उनके घर के पास में सुरेन्द्रनाथ मित्र नाम के धनी और धर्मपरायण व्यक्ति रहते थे. वे श्री रामकृष्ण देव के अनुयायी थे. उन्ही घर पर स्वामी जी ने पहली बल रामकृष्ण देव के दर्शन किये. स्वामी जी के उन्हें देखने के बाद सोचा कि, इतना साधारण व्यक्ति और इसने भगवान के दर्शन किये है. असम्भव!
रामकृष्ण नरेंद्र को पहचान गए थे. उन्होंने नरेन्द्र का हाथ पकड़ कर कमरे में ले गए. और कहा ‘मै तुमे ही इतने सालो से ढूंड रहा हु, तुम्हारे लिए मेरी आत्मा कितनी तड़प रही थी, अब तुम्हे मेरे साथ दक्षिणेश्वर चलाना ही होगा’. नरेंद्र पहले तो उन्हें कोई पागल समझने लगे. लेकिन एक दिन वे अपने दोस्तों के साथ दक्षिणेश्वर गए. उन्हें देखते ही रामकृष्ण प्रफुल्लित हो उठे. उन्होंने नरेंद्र को अपने पास बिठाया.
तब नरेंद्र ने गुरु रामकृष्ण देव से पूछा,’ क्या आपने सच में भगवान के दर्शन किये है?’. ”हाँ”. उन्होंने जवाब दिया,” ठीक उसी तरह जैसे मै तुम्हे देख रहा हूँ पर इसके लिए मेहनत कौन करना चाहता है? इंसान स्त्री, सम्पति संतान के लिए रोता है, अगर सचे दिल से प्रार्थना करे तो प्रत्यक्ष रूप से भगवान के दर्शन किये जा सकते है”.
पिता की मृत्यु के बाद संघर्ष
उनके पिता की ह्रदय गति रुकने के कारण मृत्यु हो गई थी. परिवार में पिता के चले जाने से घर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. लाड-प्यार से अपने भाई-बहनों को दो वक्त की रोटी मयस्सर नहीं हो पाती थी. स्वामी जी ने इन दिनों भीषण गरीबी से गुजरना पड़ा. कहते हैं, मुसीबत अकेले नहीं आती. नरेंद्र के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उनके कुछ संबंधों ने उनके पैतृक घर पर कब्जा करने की सोची. कोर्ट में मुकदमा चला और फैसला नरेंद्र के पक्ष में हुआ. पैतृक मकान जाते-जाते रखा गया.
एक दिन नरेंद्र नौकरी की तलाश में गए. दिन भर भूखे रहने के बाद शाम को बारिश में भीगते हुए सड़क के किनारे एक घर के सामने गिर पड़े. भीषण ज्वर से उनका शरीर जल रहा था. संयोगवश उसी दिन गुरु रामकृष्ण देव कोलकाता आए. उन्होंने नरेंद्र से दक्षिणेश्वर चलने का अनुरोध किया. नरेंद्र ने पहले तो इंकार कर दिया. लेकर गुरुजी के बार-बार कहने पर आखिर उन्होंने उनके साथ चलने का मन बना लिया.
गुरु के प्रति श्रद्धा
विवेकानंद अपने गुरु के प्रति अत्यधिक सेवा भाव रखते थे. उनके जीवन की एक घटना एक बार एक शिष्य गुरु की सेवा में मन लगाकर काम नहीं कर रहा था. नरेंद्र ने जब यह देखा तो बहुत गुस्सा हुए. और उन्होंने उसे सबक सिखाने की सोची. इस तरह विवेकानंद अपने गुरु की सेवा में पूरी तरह से समर्पित थे. रामकृष्ण देव विवेकानंद को अपना सुयोग्य शिष्य मानते थे.धीरे धीरे रामकृष्ण देव का स्वास्थ्य गिरता जा रहा था. उन्होंने नरेंद्र से कहा “मेरे जाने के बाद इन सभी शिष्यों को तुम्हारे जिम्मे छोड़ रहा हूं. इन सभी को आध्यात्मिक ज्ञान देना तुम्हारा काम है”. वे नरेंद्र को अपना योग्य उत्तराधिकारी मानते थे. 15 अगस्त 1886 गुरु रामकृष्ण देव ने अपने त्याग प्राण त्याग दिए. यह उनकी अंतिम समाधि थी.
स्वामी जी की यात्राएं ( swami vivekananda in hindi)
गुरु जी की मृत्यु के बाद, मानव मात्र की सेवा का लक्ष्य रख विवेकानंद सन्यासी हो गए. उस समय उनकी आयु मात्र 25 वर्ष थी. उन्होंने संपूर्ण भारत की यात्रा पैदल ही प्रारंभ की. इस दौरान उन्होंने के और भारतीयों के मां के पतन को साक्षात देखा और उनके कारणों का विश्लेषण किया. स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी. इसका उद्देश्य भारत में ही नहीं बल्कि, संपूर्ण विश्व में रामकृष्ण देव के उपदेशों को फैलाने के लिए था. उन्होंने खेतड़ी झुंझुनू की महाराजा, अलवर के महाराजा और दक्षिण के कई स्थानों पर बड़े-बड़े लोगों से भेंट की.
जगह-जगह संस्कृत भाषा, भारतीय दर्शन और साहित्य का व्यापक अध्ययन किया. और फिर श्री शंकर पांडुरंग की सलाह पर विश्व को संदेश देने की ठान ली. उन्होंने शिकागो में होने वाली धर्म सभा मैं जाने की इच्छा प्रकट की. शिकागो के रास्ते होते हुए जापान और हांगकांग के कई शहरो की यात्रा की. सन 1893 में शिकागों (अमेरिका) धर्म सम्मलेन में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व किया. स्वामी जी के कई यात्राओ और भाषणों के बाद, कई विदेशी नागरिक उनके भक्त बन गए. उन्होंने स्वामी जी को स्योक्लोनिक हिन्दू (तूफानी हिन्दू) उपाधि दी.
1893, शिकागो भाषण ( स्वामी विवेकानंद इन हिंदी)
सन 1893 को शिकागो, अमेरिका में विश्व धर्म सम्मेलन आयोजित हुआ. उसमे कई धर्मो के विद्वान् आए. स्वामी विवेकानन्द ने भारत की ओर से प्रतिनिधित्व किया था. स्वामी विवेकानंद जी ने केवल दो मिनट के लिए भाषण दिया था. इस भाषण से विवेकानन्द ने सभी का मन जीत लिया. उनके इस भाषण को इतिहास का सबसे चर्चित भाषण कहा गया. स्वामी विवेकानन्द ने अपने भासन की शुरुआत:- उनके भाषण के कुछ उक्त या निम्नलिखित है.
“मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों, आपने जीत सौहार्द और स्नेह के साथ हमारा स्वागत किया है उसके प्रति आभार प्रकट करने के लिए मेरा हृदय अवर्णनीय और सचिव पूर्ण हो रहा है संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परंपरा की ओर से मैं आपको धन्यवाद करता हूं साथ ही सभी धर्मों की माता की ओर से भी धन्यवाद देता हूं और सभी संप्रदायों एवं मतों को हिंदुओं की ओर से कोटि-कोटि प्रणाम”. मै एक ऐसे धर्म का अनुयायी हु, और होने पर गर्व करता हूँ, जिसने पूरी दुनिया में सहिष्णुता और सार्वभौम की शिक्षा दी. हम सभी धर्मो को स्वीकार करते है. सत्य एक है और उसको पाने तरीके अलग अलग है. जिस प्रकार नदिया भिन्न-भिन्न स्रोतों से निकलकर अंत में समुद्र में मिल जाती है. ठीक उसी प्रकार हमारे रास्ते अलग-अलग है लेकिन मंजिल एक ही है”.
स्वामी विवेकानंद के अंतिम दिन | swami vivekananda death in hindi
कई यात्राएं करने के बाद अपना स्वास्थ्य बिगड़ता देख स्वामी जी वापस कोलकाता आ गए सन 18 सो 99 में उन्होंने भागीरथी नदी के तट पर स्थाई मठ बनाने का विचार किया शिष्यों को भी यह विचार रुचि डर लगा कोलकाता के प्रयोग नामक गांव में मठ बनाने का निश्चय किया 1 साल के समय में बेलूर मठ बनकर तैयार हो गया बुधवार का दिन स्वामी जी ने व्रत रखा था उस दिन उन्होंने स्वयं अपने हाथों से सदस्यों को खाना परोसा उनके हाथ-पैर चकित थे.
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हो गई थी. उनके शिष्यों के अनुसार, वे ध्यान योग करने की मुद्रा में बैठे, व्याकरण का पाठ पढ़ाया और साधना की. सब कुछ सामान्य सर लग रहा था. साधना में लीन रहते हुए स्वामी जी की आत्मा उनके नश्वर शरीर को छोड़कर चली गई. यह उनकी अंतिम महासमाधि थी. उन्होंने बेलूर मठ में अपने प्राण त्याग दिए. उस समय उनकी आयु ज्यादा नहीं थी मात्र 39 वर्ष थी. हालाँकि स्वामी विवेकानंद आज हमारे बीच में नहीं रहे लेकिन, उनके विचार, आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरणा देंगे.
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स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा पर विचार ( swami vivekananda thoughts in hindi)
स्वामी विवेकानन्द का शिक्षा दर्शन – स्वामी जी ने मैकाले द्वारा प्रतिपादित शिक्षा का विरोधी थे. जो उस समय प्रचलित थी. वे ऐसी शिक्षा नही चाहते थे जो केवल परीक्षा में अच्छे मार्क्स और अच्छे भाषण देकर तय होती. जिससे केवल बाबुओ की संख्या बढती है. उन्होंने कहा कि, ऐसी शिक्षा न ही विद्यार्थी का चरित्र निर्माण कर सकती, न ही समाज सेवा का भाव ला सकती, न ही शेर जैसा साहस पैदा कर सकती. ऐसी शिक्षा का कोई लाभ नही है. उन्होंने कहा था कि, शिक्षा ऐसी हो जो विद्यार्थी का चरित्र निर्माण कर सके, व्यक्तित्व विकास कर सके, जो भविष्य निर्माण और जो आत्मनिर्भर बना सके. ऐसी शिक्षा की समाज में आज आवश्यकता है.
swami विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के सिद्धांत
- स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धांत इस प्रकार है.
- शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो, बालक का सर्वंगीण विकास कर सके.
- शिक्षा ऐसी हो जो, बालक को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास कर सके.
- लड़का हो या लड़की , दोनों को ही बराबर शिक्षा मिलनी चाहिए.
- बालको को अध्यात्मिक शिक्षा, किताबो से न देकर आचरण और संस्कारो द्वारा डी जानी चाहिए.
- एक शिक्षक और छात्र में घनिष्ट मित्र के समान संबंध होने चाहिए.
- व्यक्ति को जीवन संघर्ष से जूझने ने का साहस दे सके.
- व्यक्ति को आत्मनिर्भर और स्वयं के पैरो पर खड़ा होने लायक बना सके.
- जो बालक के भविष्य का निर्माण कर सके.
स्वामी विवेकानन्द के अनमोल विचार | swami vivekananda goldan qoutes in hindi
- स्वामी विवेकानंद ने हमारे देश के लिए लोगों को जो संदेश दिया है. वह करोडो युवाओ को प्रेरणा देता है. और आगे भी देते रहेंगे. –
- उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रुको.
- आज हमारी जाति या परस्पर एक दूसरे से नफरत कर रही है. एक दूसरे पर अत्याचार ढा रही है. इसी का परिणाम है कि 30 करोड़ के इंसान भारत की धरती पर केचुए की तरह रेंग रहे हैं.
- दुख का मुख्य कारण भय हैं. निडरता के बल से मनुष्य पृथ्वी पर ही स्वर्ग के समान सुख भोग सकता है. यदि तुम निडरता पूर्वक कार्य करोगे तो तुम्हें निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी यदि तुम डर गए तो तुम शक्तिहिन् हो जाओगे.
- समस्त कठिनाइयों को पूर्ण रूप से ना तो धन दूर कर सकता है न ही यश और न ही ज्ञान. चरित्र ही ऐसा है जो, कठिन रुपी पत्थर की दीवार पर छेद सकता है.
- उत्साह से अपना ह्रदय भर लो और सब जगह फैल जाओ. काम करो काम करो. भारत का भविष्य तुम पर निर्भर है. काम करते जाओ.
- उठो जागो और जब तक तुम अपने मंजिल तक नहीं पहुंच जाते. तब तक सक्रिय रहो और तब तक निश्चिंत ना हो.
- मेरे देश का जब तक एक कुत्ता भी भूखा है तब तक उसको भोजन खिलाना ही मेरा धर्म है.
swami vivekananda golden qoutes in hindi
- धनी और पैसे वालों का मुंह ताकना छोड़ दो. सदैव स्मरण रहे कि विश्व का बड़े से बड़ा कार्य छोटे आदमी द्वारा ही संपन्न होता है. इसलिए उठो और अपने कार्य में जी जान से जुड़ जाओ. निसंदेह धनी संसार को तुम्हारी ओर झुकना पड़ेगा.
- त्याग और दुसरो की सेवा ही भारतवर्ष के राष्ट्रीय आदर्श है. इन बातों को करने से ही भारतवर्ष की उन्नति की चोटी छू सकता है. केवल हिंदू आदर्शों का पालन करने से ही भारतवर्ष विश्व के सभी देशों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर सकता है.
- विश्व के कल्याण की संभावना बिना स्त्रियों की अवस्था में सुधार के संभव नहीं है. जिस प्रकार पक्षी का एक पंख से उड़ना संभव नहीं.
- हे! भारत के लोगों तुम स्वयं को साहस एवं निडर बनाओ. तुम भारत की संतान हो. प्रत्येक भारतवासी चाहे वह ब्राह्मण चांडाल दरिद्र या मूर्ख है. लेकिन तुम गर्व से कहो कि तुम मेरे भाई हो. तुम ही मेरे परमात्मा हो.
- भारत के देवी देवता मेरे लिए ईश्वर है. हे! भारतीय वीर कहो कि, भारत की भूमि मेरे लिए स्वर्ग से भी बेहतर है भारतीय समाज मेरा बचपन झूला है. जवानी की फुलवारी है और बुढ़ापे की काशी है.
मुख्य तिथियाँ
12 जनवरी 1863 | स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म |
सन 1897 | प्रेजिडेंसी कोलेज में प्रवेश |
नवम्बर 1881 | रामकृष्ण परमहंस से पहली भेंट |
सन 1884 | बी.ए. ग्रेजुएशन पास, पिता की मृत्यु |
16 अगस्त सन 1886 | रामकृष्ण परमहंस की महासमाधि |
जनवरी 1887 | सन्यास ग्रहण |
31 मई 1893 | अमेरिका रवाना |
27 सितम्बर 1893 | विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो में भाषण |
जनवरी 1897 | रामेश्वरम में स्वागत |
1 मई 1897 22 फरवरी 1900 मार्च 1902 4 जुलाई 1902 | रामकृष्ण मिशन की शुरुआत अमेरिका में वेदान्त सभा की स्थापना बेलूर मठ आए अंतिम महासमाधि |