तुलसीदासजी का जीवन परिचय(tulsidas ji ka jeevan parichay) तुलसी दास जी का जीवन का बखान कैसे करूँ, ये मेरी समझ से बाहर हैं. क्योंकि यदि मुझे कोई एक प्रमाण मिल जाये तो उस पर विश्वाश करके उसी को बता दू. इनको अनेक चरित्रों में वर्णीत किया गया हैं. भ्रगु वंशीय, शुद्र का पति, कोई निकृष्ट कर्म(साहसिक) करने वाला. इनके जन्म का काल निर्धारण भी थोडा विविधता-पूर्ण विषय हैं. लेकिन यदि स्कन्द पुराण को आधार मान कर चले तो स्कन्द पुराण के वैष्णव खंड, प्रभास खंड, नगर खंड में तुलसी दास जी की जीवन की कुछ कथाओ का वर्णन किया गया हैं. लेकिन इन खंडो में भी थोड़ी विविधता हैं.
इनका जीवन काल क्रम महाभारत से कुछ तीन सौ साल के आस पास का होना चाहिए – ऐसा वर्णित हैं.
चलिए हम इन भ्रांतियों से दूर होकर सबसे प्रचलित तुलसीदास जी के जीवन परिचय को जान लेते हैं.
तुलसीदासजी का जीवन परिचय
तुलसी दास जी का जन्म(tulsidas ka janm)
आधुनिक उतरप्रदेश के प्रयाग के पास चित्रकूट जिले में एक गाँव हैं जिसका नाम हैं – राजापुर. राजापुर के आत्माराम दुबे नाम के ब्राह्मण रहते थे. आत्माराम जी की पत्नी का नाम हुलसी था. 1554(*) की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन तुलसी दास जी का जन्म हुआ. तुलसीदास जी बारह मास अपनी माँ के गर्भ में रहे, और जब उनका जन्म हुआ तो उनका शरीर पञ्च साल के बालक के सामान था. उनके मुख में बतीस दन्त थे. तुलसी दास जी जन्म के समय सबसे पहले राम सब्द का उच्चारण किया फिर रोये.
इस प्रकार का अद्भुत बालक देखकर माता हुलसी और पिता आत्मारामजी भयभीत हो गए और कई कल्पनाये करने लगे.
माता हुलसी ने अपनी एक दासी जिसका नाम – चुनियाँ था, उसको सोप कर उसको कहीं दूर भेज दिया. दुसरे दिन ही माता हुलसी परलोक सिधार गयी. चुनियाँ दासी ने बड़े ही प्रेम से बालक का पोषण किया. तुलसी दास जी साढ़े पांच वर्ष के ही हुए ओंगे की दासी माता चुनियाँ का भी देहांत हो गया. अब तुलसी दस जी बिलकुल अनाथ हो गए और दर दर भटकने लगे.
ये सब देखकर जगत जननी माता पार्वतीजी को दया आ जाती हैं. इसलिए हमेशा माता एक ब्राह्मणी का वेश धारण कर तुलसी दासजी को भोजन कराया करती थी. वहीँ से तुलसी दासजी कशी चले गए और लोगो को कथा सुनाने लगे.
तुलसीदास जी और भगवान् श्री राम का मिलन
एक दिन सुबह तुलसी दास जी को प्रेत मिला. प्रेत ने तुलसी जी को हनुमान जी का पता बताया. तुलसी दास जी हनुमान जी से मिले और भगवान श्री राम से मिलने की प्रार्थना की.
हनुमान जी ने कहा की आपको चित्रकूट में भगवान श्री राम के दर्शन होंगे. इसलिए तुलसी दस जी वहीँ से चित्रकूट निकल पड़े.
मौनी अमावश्या की रात को भगवन श्री रन बालक बन कर प्रकट हुए, और तुलसी दासजी से चन्दन माँगा.
हनुमान जी ने सोचा की तुलसी दास जी कहीं धोखा नहीं खा जाये. इसलिए तुलसी दास जी एक तोता का रूप धारण करके एक दोहा सुनते हैं.
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर
तुलसीदासजी चन्दन घिसे तिलक देत रघुवीर ||
उसके कुछ समय बाद तुलसीदास जी ने रामायण यानि रामचरितमानस की रचना शुरू कर दी.
दो वर्ष, सात महीने और छबीस दिन में रामचरितमानस ग्रन्थ की रचना सम्पूरण हुई.
इस रामचरितमानस में तुलसी दासजी ने सात कांड या अध्यायों का वर्णन किया. इसके बाद तुलसी दास जी कशी चले गए. वहां जाकर सर्वप्रथम भगवान विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को रामचरितमानस सुनाया. कथा सम्पूरण होने के बाद ग्रन्थ को भगवान विश्वनाथ जी के मंदिर में रख दिया. सवेरे जब पट खोला गया तो उसके ऊपर – “सत्यम शिवम् सुदरम” लिखा पाया.
लेकिन दुसरे पंडितो को संतोष नहीं हुआ तो भगवान विश्वनाथजी के सामने सबसे ऊपर वेद, उसके नीचे शास्त्र, उसके नीचे पुराण, उसके नीचे रामचरितमानस को रखा गया. लेकिन जब सवेरे द्वार खोला गया तो सबसे ऊपर रामचरितमानस को पाया.
इस घटनाप्रांत सभी पंडितो ने तुलसी दास जी से क्षमा मांगी, और उनके चरणोंदक लिया.
इसके बाद तुलसी दास जी असिहाट पर रहने लगे वहां से उनको एक कलियुग मूर्तरूप आया और तुलसी दासजी को सताने लगा. तुलसी दासजी ने हनुमान जी का ध्यान किया. हनुमान जी के आदेश पर तुलसी दास जी ने विनय-पत्रिका लिखी.
असीघाट पर ही राम राम करते हुए तुलसी दास जी ने अपने प्राण त्याग दिए.
इस पौराणिक कथा में हमने रामचरितमानस के रचियता के जीवन परिचय अर्थात तुलसीदासजी के इतिहास के बारे में जाना. अगर आपको यह कथा सारगर्भित लगती हैं तो आप दूसरी पौराणिक और आध्यात्मिक कथाओं और कहानियों को पढ़ सकते हैं.