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covid-19 का समाज, पर्यावरण पर प्रभाव
कोरोना का प्रभाव – कोरोना के बाद पूरे विश्व में लॉक-डाउन लगाये जाने के कारण लगभग पूरी आबादी को घरों ने गोद ले लिया हैं. सभी कमर्शियल इंडस्ट्री बंद हैं, ऑफिस बंद पड़े हैं, सड़के खाली हैं, सभी सामाजिक, आर्थिक, औधोगिक और शहरीकरण सभी ठप पड़ गयी हैं.इसका नतीजा यह हुआ कि न तो किसी फेक्ट्री से धुआं निकल रहा हैं, न किसी इंडस्ट्रियल एरिया से किसी जल स्रोत में गन्दा पानी जा रहा हैं, न सड़कों पर शोर शराबा हैं, न कहीं ड्रिलिंग करके पृथ्वी के गर्भ को खोदा जा रहा हैं. अत: कोरोना(covid-19) काल हमारी पृथ्वी के लिए विश्राम काल हैं.
हालाँकि कोरोना से लाखो लोगो को अपनी जान गंवानी पड़ी, करोड़ो लोगों की अर्थव्यवस्था डगमगा गई, लेकिन इन नुकसान के उपरांत सम्पूर्ण पर्यावरण को जो फायदा हुआ हैं, वह असराहनीय हैं.
विश्व के 22 शहर (जिसमे दिल्ली भी शामिल हैं), जो की air pollution में शीर्ष पर हैं, 13 से 15 प्रतिशत तक इनकी हवा की गुणवता में सुधार हुआ हैं. नदियों के पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ हैं. पर्यटन की कमी के कारण सागरों के तट भी साफ़ सुथरे हैं. बंद सड़कों और लोगो की कम भीड़ ने वातावरण को शांत कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप जानवर भी चैन की नींद सो पाते हैं.
कोरोना वायरस की कोई प्रभावी वैक्सीन नहीं हैं, लेकिन कोरोना स्वयं पृथ्वी के लिए वैक्सीन हैं. इस पोस्ट के माध्यम से आप ये जानेंगे कि कोरोना के कारण हमारे पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़े हैं. फिलहाल के लिए आप इतना जान लीजिये की कोरोना ने पृथ्वी के पर्यावरण को सकारात्मक प्रभाव दिए हैं. लेकिन जनहानि भी हुई हैं – यह एक अलग विषय हैं.
कोरोना का समाज पर प्रभाव(corona ka samaj par prabhav)
विकासशील देशो की आबादी का बड़ा हिस्सा अपनी आजीविका के लिए संघर्ष करता हैं, इसके दौरान मनुष्य स्वास्थ्य, सामाजिक और पर्यावरण जैसे मुद्दों से दूर चला गया हैं. जब से कोरोना चालू हुआ हैं, सभी अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग हो गए हैं. लगभग सभी ने संभव प्रयासों से अपनी इम्युनिटी को बढाने के लिए मेहनत की हैं. जो यह संकेत देता हैं कि सेहत के प्रति लोग पहले ज्यादा सजग हो गये हैं.
दूसरा लोग मांस खाने से बचने लगे. समुद्री इलाको से आने वाली मछलियाँ प्लास्टिक और इंडस्ट्रियल गंदे कचरे से प्रदूषित होती हैं. इनके शरीर के अन्दर तेल, आयन और प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए जाने की सम्भावना होती हैं. इसकी सप्लाई बंद होने से समाज के लोगो के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
कोरोना ने भारत को विश्वास दिलाया कि मुसीबत के समय कुछ भी असंभव नहीं हैं. भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश हैं. ज्यादा तकनीकीसुविधाएँ न होने के बावजूद वैक्सीन का अविष्कार कर देश में सप्लाई की और निर्यात भी किया. इसके अलावा डॉक्टरों के लिए किट, मेडिकल का जरूरी सामान देश ने ही पैदा कर नया इतिहास रच दिया हैं. यह भारत के आत्मनिर्भर होने का सन्देश देता हैं.
हालाँकि डिजिटल उपकरणों से मित्रता अच्छी नहीं हैं, लेकिन covid-19 से ऑनलाइन शिक्षा संभव हो सकी. लगभग सभी इंस्टीट्यूट ने सम्पूर्ण शिक्षा को ऑनलाइन लाकर रख दिया. यहाँ पर एक समस्या यह हैं कि ऑनलाइन शिक्षा के सभी डिजिटल माध्यम विदेशी हैं. इसलिए डाटा लीक होने का खतरा रहता हैं.
निष्कर्ष – covid-19 से भारत आत्मनिर्भर बना हैं, लोगो ने स्वास्थ्य पर पहले से ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया हैं. ये सकारात्मक प्रभाव हैं. जबकि फ्री समय में लोग ऑनलाइन गेम्स और डिजिटल उपकरणों के आदि हो गए हैं. ये नकारात्मक प्रभाव हैं.
कोरोना का पर्यावरण पर प्रभाव(corona ka paryavaran par prabhav)
जब से कोरोना ने विश्व में दस्तख दी हैं तब से पूरे संसार में शांति सी छा गयी हैं. इस शांति से पर्यावरण और पृथ्वी को अनेक सैकड़ों सकारात्मक और हितेषी प्रभाव देखने को मिले हैं. कोरोना ने एक बार फिर हमको साफ़ आकाश और स्वच्छ वातावरण देखने को दिया हैं. यहाँ कुछ प्रभाव दिए गए हैं जो कोरोना के कारण उपजे हैं.
कोरोन का वायु प्रदुषण पर प्रभाव
कोरोना से वायु प्रदूषण कम हुआ हैं. 7 जनवरी को who ने covid-19 को महामारी घोषित करी दी थी. इसके कुछ समय बाद धीरे धीरे सभी देश लॉकडाउन करने लगे, जिसके फलस्वरूप वायु का प्रदूषण स्तर गिर गया. मुख्य रूप से SO2, NO2, CO2 का उत्सर्जन कम हो गया, क्योंकि प्रदूषण के स्रोत जैसे परिवहन,उद्योग, पॉवर स्टेशन सभी बंद हो गए हैं. 2019 के पहले प्रतिवर्ष कार्बन डाई ऑक्साइड में एक प्रतिशत की वृद्धि होती थी.
प्रदुषण के स्रोतों के कम होने पर अप्रैल 2020 को एक आंकड़ा नोट किया गया, जिसमे 11 से 25 प्रतिशत तक कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आई.
श्वास संबंधी विकार, उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, मानसिक बीमारियाँ वायु के प्रदूषित होने से फैलती हैं. WHO का एक आंकड़ा हैं की दुनिया में होने वाली कुल मौतों का 8 प्रतिशत केवल वायु प्रदूषण के कारण होता हैं.
निष्कर्ष – कोरोना के कारण वायु के प्रदूषण के स्तर में गिरावट आई हैं, लेकिन जब चाइना के वुहान शहर को लॉकडाउन से मुक्त किया गया तो मात्र दो दिनों में वायु प्रदूषण का स्तर पहले की भांति गया.
कोरोना का जल प्रदूषण पर प्रभाव
जल प्रदूषण के प्रमुख स्रोत वाहनों से होने वाला तेल रिसाव, इंडस्ट्रियल क्षेत्र से निकलने वाला दूषित पानी, खेतों में काम में लिया जाने वाले उर्वरक हैं. वाहनों से निकलने वाला तेल जल स्रोतों में घुलकर जल को प्रदूषित करता हैं.
आयात निर्यात करने के लिए बड़े बड़े वाहनों और जहाजों का इस्तेमाल किया जाता हैं, लेकिन कोरोना महामारी के चलते सभी परिवहन बंद पड़े हैं. इसलिए जल प्रदूषण में गिरावट आई हैं.
भारत की पवित्र नदिया यमुना और गंगा में धातु और आयनिक रसायन तैर रहे हैं, इसकी पुष्टि दुनिया भर के कई शोधकर्ताओं ने की हैं. इस नदियों में 80 प्रतिशत गन्दा पानी घरो और कस्बो से आता हैं जबकि 20 प्रतिशत औधोगिक क्षेत्रो से आता हैं. लेकिन घरो का कचरा कार्बनिक होता हैं जबकि औधोगिक इकाइयों का कचरा जीवाश्म होता हैं.
भारत में लॉकडाउन 1, लॉकडाउन 2 और लॉकडाउन 3 के बाद उद्योगों को बंद कर दिया गया था और इन नदियों में आने वाले अधिकांश औद्योगिक अपशिष्टों की मात्रा भी गिर गयी हैं. उद्योगों के बंद होने से भारत की सभी प्रमुख नदियों के जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है.
कोरोना का ध्वनि प्रदूषण पर प्रभाव
लॉक-डाउन के कारण सभी वाहन इत्यादि बंद पड़े हैं, सभी धार्मिक स्थल भी बंद हैं, सड़कों और मोहल्लो में होने वाली भीड़ भी शांत हैं. इसलिए शोर शराबा बिलकुल बंद हैं. अत: कोरोना से पृथ्वी पर शांति आई हैं. खदानों में होने वाली ड्रिलिंग भी इस वक्त बंद हैं, तो अनावश्यक होने वाला कम्पन्न भी शांत हैं.
हालाँकि यह शांति ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी लेकिन कोरोना के पहले वातावरण में जो अशांति व्याप्त थी, किसी को मानसिक विकार देने के लिए पर्याप्त थी.
अगर आपने अभी तक नहीं पढ़ा हैं की ध्वनि प्रदूषण क्या होता हैं? और इसके प्रभाव क्या हैं. तो यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते हैं.
ध्वनि प्रदूषण क्या हैं ये कैसे हमारे लिए नुकसान दायक हैं
कोरोना का ओजोन पर प्रभाव
पृथ्वी से 10 से 50 किलोमीटर तक समताप मंडल पाया जाता हैं, इसी के अन्दर पृथ्वी का कवच “ओजोन परत” पायी जाती हैं. ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों का अवशोषण करती हैं. ओजोन ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनी होता हैं.
जब समताप मंडल में क्लोरिन या ब्रोमीन गैसे पहुँच जाती हैं तो ओजोन का क्षय हो जाता हैं. क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFE), मिथाइल क्लोराइड एसी गैसे हैं जो ओजोन को आघात करती हैं, ये गैसे क्लोरिन और ब्रोमीन से बनी होती हैं.
कुछ तीस सालों पहले अन्तराष्ट्रीय सरकार ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये थे जिसमे यह लिखा गया था कि विश्व स्तर पर उन गैसों का उत्पादन कम किया जाये जो ओजोन के लिए क्षयकारी होती हैं. COVID-19 के दौरान लॉकडाउन के कारण सभी मानव निर्मित उत्सर्जन नियंत्रित हैं. इसलिए ओजोन क्षेत्र भी राहत में हैं.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) का कहना है कि COVID-19 के दौरान आर्थिक गतिविधियों को सीमित कर दिया गया है जिसके परिणामस्वरूप CO2 उत्सर्जन में गिरावट आई है. 2019 में, नासा और NOAA ने बताया कि अंटार्कटिका के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ऊपरी वायुमंडल में गर्म तापमान होता है, जिसके कारण एक छोटा ओजोन छिद्र हो गया हैं, यह पहली बार 1982 में देखा गया था.
23 अप्रैल 2020 को वायुमंडलीय निगरानी सेवाओं (CAMS) ने घोषणा की कि आर्कटिक के ऊपर ओजोन परत में अब तक का जो सबसे बड़ा छेद देखा गया था, अब वह पूर्ण रूप से वापस ठीक हो चूका हैं. यह लॉकडाउन का सकारात्मक प्रभाव हैं.
COVID-19 का वन्य जीवन पर प्रभाव
पारिस्थितिकी तंत्र में श्रंखलाए होती हैं, जो की एक दुसरे पर निर्भर होती हैं. जब श्रंखला के किसी एक स्तर पर कुछ असाधारण हलचल होती हैं तो इसका असर पूरी श्रंखला पर होता हैं. इसलिए पशु द्वारा जनित रोग पूरी प्रकृति के लिए विनाश का प्रकोप हैं.
जंगलों में पर्यटन, समुद्र में जहाज, वाहनों के शोर से जानवरों की दैनिक दिनचर्या बहुत बुरी तरह से प्रभावित होती हैं.
लॉकडाउन के दौरान मानव घरो में बंद हो गए हैं जिसके चलते सभी जानवरों को मुक्त वातावरण में चलने फिरने की आजादी मिल गयी हैं.
आपने क्या सीखा…
आज की स्थिति असाधारण हैं, मनुष्य हमेशा के लिए इस स्थिति में रहना नहीं चाहेगा. ओजोन परत, जल, औद्योगिक और ध्वनि प्रदूषण पर विभिन्न प्रकार के प्रदुषण के स्तर में कमी आई हैं, लेकिन कोरोना काल या लॉक डाउन एक अल्प अवधि हैं. इसका अंत शीघ्र ही होगा और फिर से सब कुछ साधारण हो जायेगा. सड़के पहले की तरह व्यस्त हो जाएगी. लोग घुमने के लिए जंगलो और समुद्रों के तट पर जायेंगे. फेक्ट्रियां वापस चालू होगी, नदियाँ फिर से अपना रंग बदलेगी. सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा.
हमें सीख क्या लेनी चाहिए… हमारा पर्यावरण बहुत ही सवेंदनशील हैं, बहुत ही कम बदलाव से भी यह प्रभावित हो जाता हैं. तो हमको सीख यह लेनी चाहिए कि हम खुद का जितना ख्याल रखते हैं, जितना हम खुद के बारें में सोचते हैं, थोडा पर्यावरण के बारें में भी सोच लेना चाहिए.
हालाँकि पर्यावरण में जीवन नहीं हैं, लेकिन हमारा जीवन पर्यावरण से ही संभव हैं.
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