Ganesh Ji Ki Kahani: भगवान श्री गणेश जी की कहानियां

Ganesh Ji Ki Kahani

देवताओ में सबसे पहले पूजे जाने वाले भगवान, भगवान श्री गणेश की कहानिया(ganesh ji ki kahani) में हम कुछ पौराणिक कथा को जानेगे, जो की भगवान गणेश के जन्म से सम्बन्धित हैं. इसके साथ एक कथा में हम यह भी जानेंगे कि भगवान श्री गणेश को एकदंत क्यों कहा जाता हैं. Ganesh Ji Ki Kahani.

भगवान् श्री गणेश का जन्म कैसे हुआ(ganesh ji ki katha)

यह कथा भगवान् श्री गणेश के जन्म की कथा हैं. एक बार की बात हैं, माता पार्वती अकेले बैठे बैठे मन में विचार कर रही थी, और नहाने का सोचा. लेकिन माता पार्वती के सभी अंगरक्षक शिवजी के साथ कैलाश पर दौरे के लिए गए हुए थे. इस विषय को लेकर माता पार्वती विचार में पड़ गई.


स्नान के वक्त द्वार पर निगरानी कौन रखेगा? इस बात पर माता पार्वती चिंतित हो गई. चिंतित माता पार्वती ने अपने हाथो को रगड़ कर मेल निकाल दिया और उसको एक छोटे से बालक का रूप दे दिया.


कुछ समय बाद जब माता पार्वती को अहसास हुआ कि उन्होंने अपने मेल को एक छोटे से बालक में ढाल दिया हैं. माता पार्वती उस छोटे खिलोने से मोहित हो गई और उसमे जीवन डालने का निश्चय किया. तब माता पार्वती ने अपनी दिव्य शक्ति से उस खिलोने को एक सुन्दर जीवित बच्चे में बदल दिया.


अब जैसे ही बच्चा चेतन हुआ सबसे पहले बोला माते कोटि कोटि प्रणाम! माता पार्वती ने उस बच्चे को आशीर्वाद दिया और दोनों ने खूब बातें की. कुछ समय बाद उस बच्चे को भूख लगी. माता पार्वती ने आँखे बंद की और मंत्र सिद्ध कर एक लड्डू उत्पन्न किया, और बच्चे को दे दिया.


अब माता पार्वती ने उस बालक(Ganesh Ji Ki Kahani) से कहा कि – उनको नहाना हैं और आपको द्वार पर निगरानी, और ध्यान रहे कोई भी अन्दर आ नहीं पाए. माता पार्वती ने आँखे बंद की और एक दिव्य दंड को जाग्रत किया और उस बालक को दे दिया.


अब वह बालक द्वार पर जाकर खड़ा हो गया, और द्वार की सुरक्षा करने लगा. कुछ समय पश्चात भगवान् शिव वहां आ पहुंचे और द्वार के अन्दर प्रवेश करने लगे. बालक ने अनजान व्यक्ति को देखकर सामने खड़े हो गए और अन्दर प्रवेश होने से मना कर दिया. शिवजी ने कहा तुम मेरे सदन में मुझे ही नहीं जाने दे रहे हो? लगता हैं तुम मुझे जानते नहीं हो. तुम जिस द्वार के सामने खड़े हो वह मेरा ही निवास हैं और अन्दर जो स्त्री हैं वह मेरी अर्धांगनी हैं.


तब वह बालक बोला – अच्छा! वह आपकी पत्नी हैं, तो हम भी उनके पुत्र हैं. हम आपको किसी भी स्थिति में अन्दर नहीं जाने देंगे. मैं वचनबद्ध हूँ.


भगवान् शिव को गुस्सा आ गया और त्रिशूल तानकर एक झटके में उस बच्चे के धड़ और शरीर को अलग कर दिया. और द्वार के अन्दर चले गए.


माता पार्वती गहने धारण कर रही थी. शिवजी को अन्दर देख माता पार्वती ने पुछा स्वामी आप अन्दर कैसे आये? क्या आपको उस बच्चे ने रोका नहीं.


उस बच्चे ने रोका, लेकिन वह अपने प्राण से गया.
देवी पार्वती शिवजी के यह वचन सुनकर दोड़कर बाहर आई और उस बच्चे के पास आकर रोने लगी. जैसे ही माता पार्वती की आंखो से आंसू निकले तो तूफान का तहलका मच गया और सागर की लहरें आसमान को छूने लगी.


सभी देवता घबरा गए और भागकर शिवजी के पास आये, ब्रह्माजी भी वहां आ पहुंचे.
माता पार्वती को विलाप करते देख ब्रह्माजी ने पूछा – बेटी तुम इतना विलाप क्यों कर रही हो? हम अभी पुन: इस मरे हुए बालक में प्राण डाल देते हैं. तभी शिवजी कहते हैं कि ये असंभव हैं. हमारे त्रिशूल से मारा जीव आज तक जिन्दा नहीं हुआ हैं.


ब्रह्माजी ने शिवजी ने कहा – हे शिव! माता पार्वती इस संसार की पालन कर्ता हैं. अगर इनका मन व्यथित रहेगा तो धरती लोक में तहलका मच जायेगा, असुरों का प्रकोप बढ़ जायेगा. कृपया करके आप इसका समाधान बताये.


शिवजी ने अपने रक्षकों को बुलाया और कहा उतर दिशा की तरफ जाओ, सबसे पहले जिसका सर मिले, उसको लेकर आओ.
रक्षक कुछ दुरी पर गए और वे एक हाथी के बच्चे के सर को लेकर आ गए.


सभी देवताओ के आशीर्वाद से वह बच्चा पुन: जीवित हो गया. इतनी लम्बी सुंड देखकर माता पार्वती ने कहा – इस बच्चे के गज के रूप को देखकर ये दुनिया इस पर हँसेगी.


तब ब्रह्माजी और सभी देवताओ ने कहा – यह बालक गजराज के नाम से जाना जायेगा. यह बच्चा कठिनाइयों का वध करगे और समस्याओं का समाधान करेगा. इस बालक की पूजा हम सभी देवताओं से पहले होगी. दुनिया इनको “श्री गणेश” के नाम से जानेगी.
यह पौराणिक कथा भगवान श्री गणेश के जन्म की थी.

गणेशजी को एकदंत-धारी क्यों कहते हैं?(bhagwan Ganesh Ji Ki Kahani )

आप ये तो जानते होंगे कि भगवान् श्री गणेश लम्बोदर, गजानन, एकदंत धारी कहा जाता हैं. क्या आपको पता हैं कि भगवान गणेश को एक दन्त-धारी क्यों कहा जाता हैं? इसके पीछे तीन तीन लोकप्रिय कथाएं कथित(Ganesh Ji Ki Kahani) हैं.


पहली कथा(ganesh bhagwan ki kahani) यह हैं कि – इस कथा का प्रमाण भविष्य पुराण में मिलता हैं. बचपन में श्री गणेश की बाल हरकतों से परेशान होकर कुमार कार्तिकेय ने उनका एक दांत तोड़ दिया.


दूसरी कथा(ganesh ji story in hindi ) यह हैं कि – परशुराम ने अपने फरसे से भगवान् श्री गणेश का दांत खंडित कर दिया.
इन दोनों कथाओ के अलावा एक तीसरी कथा(ganesh ji ki kahani ) सबसे ज्यादा प्रचलित हैं. इस कथा का संबंध महाभारत से हैं. महाभारत की रचना वेदव्यासजी ने की. लेकिन इसका लेखन कार्य भगवान श्री गणेश ने किया.

दरअसल जब वेदव्यासजी ने महाभारत को रचने का निर्णय लिया तो वे अपने ग्रन्थ को इस प्रकार लिखना चाहते थे कि बीच में कहीं पर भी उनके विचारों की गति रुके नहीं.
इसी बीच वेदव्यासजी को बुद्धि के देवता श्री गणेश का ध्यान आया. जब भगवान् श्री गणेश और वेदव्यासजी का आमना सामना हुआ और लेखन की सहमती बनने लगी तो भगवान गणेश ने एक शर्त रख दी.


ganesh Ji ने कहा कि अगर लेखन के दौरान अगर आप एक क्षण के लिए भी न रुके, तो मैं आपके ग्रन्थ का लेखक बन सकता हूँ. वेदव्यासजी इस विचार से सहमत हो गए और कहा कि ‘पर आप भी ठीक वैसे नहीं लिखेंगे जैसा मैं बोलूँगा.’ और दोनों में सहमति हो गई.


महाभारत महाग्रंथ को लिखने में लगभग तीन वर्ष का समय लगा. इस बीच कई घटनाएँ हुई. गणेशजी की लेखन की गति को देखकर वेदव्यासजी हैरान थे. इसलिए वेदव्यासजी बीच बीच में कुछ ऐसे श्लोक बोल देते जिनका अर्थ समझने में गणेश जी को थोडा वक्त लगता. इसी दौरान वेदव्यासजी अपने दुसरे काम निपटा लेते थे.


वेदव्यासजी ने महसूस किया की Ganesh Ji को अपनी लिखने की शैली पर घमंड हो रहा हैं, इसलिए वेदव्यासजी ने अपने बोल की गति को बढ़ा दी. गणेशजी ने भी अपनी कलम की गति को बढ़ा दी. लीन अचानक भगवान् गणेश के पेन की निब टूट गयी. Ganesh Ji वेदव्यास जी के वचनों से पीछे छुट गए थे.

पुन: उनका साथ करने के लिए भगवान् श्री गणेश ने अपना एक दांत तोड़ दिया और स्याही में डुबोकर अपनी गति को जारी रखा. तब वेदव्यासजी को अहसास हुआ की लेखन की कला में भगवान् श्री गणेश को कोई नहीं हरा सकता.


जब ग्रन्थ पूरा हुआ तो दोनों ने एक दुसरे को धन्यवाद दिया, और भगवान् श्री गणेश एक नए नाम “एकदंत” से पहचाने गए.
यह थी Ganesh Ji ki kahani कि उनका नाम “एकदंत” कैसे पड़ा.

गणेश जी और मूषक(ganesh ji ki kahani in hindi)

गणेश जी और मूषक की एक प्रचलित कथा यह हैं कि – एक बार इंद्र देव ने स्वर्ग में एक समारोह का आयोजन किया था. उस समरोह में एक आदि देव और आदि राक्षस ‘कृच’ को भी आमंत्रित किया.

जब कृच स्वर्ग में पहुंचा तो गलती से उसका पैर एक मुनि के पैर पर पड़ गया. मुनि ने वहीँ पर कृच को श्राप दे दिया, और मूषक बना दिया. कृच को उसकी अनजान से हुई गलती का अहसास हुआ, और उसने ऋषि से माफ़ी मांगी.

लेकिन उस श्राप को निरस्त करना अब संभव नहीं था. लेकिन उसको आश्वासन दिया कि आने वाले समय में तुम भगवान् श्री गणेश के शरण में उनकी सवारी बनोगे.
द्वापर युग का समय चल रहा था. कृच कोई आम चूहा नहीं थे. कृच पहाड़ो को कुतरते थे. एक बार कृच ऋषि परासर की कुटिया जा पहुंचे. उस मूषक ने ऋषि परासर के ग्रन्थ और कपड़ों को कुतर डाला.

लाख कोशिशों के बावजूद वह चूहा(मूषक) पकड़ में नहीं आया तो, ऋषि परासर भगवान् शिव के पास गए. और सारी व्यथा सुनाई, भगवान् शिव ने इस कार्य को गणेशजी को सौंपा.

श्री गणेश ने मूषक को पकड़ने के लिए एक पासे को फैंका. कृच भागते हुए पाताल लोक जा पहुंचा, लेकिन उस फंदे ने मूषक को पकड़ लिया और श्री गणेश के सामने लाकर खड़ा कर दिया.
परेशान चूहे को देखकर गणेश जी ने कहा तुम हमारी शरण में खड़े हो, तुमको जो चाहिए मांग लो लेकिन ऋषि परासर को तंग करना बंद करो. घमंडी मूषक ने श्री गणेश से कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए अगर आपको मुझसे कुछ चाहिए तो आप कुछ मांग सकते हैं. भगवान् श्री गणेश ने उस मूषक को अपनी सवारी बनने को कहा.


जब कभी गणेशजी मूषक की सवारी करते तो मूषक गणेशजी के वजन से दब जाता था. एक दिन मूषक ने गणेशजी से कह दिया कि स्वामी आपका भर मुझसे सहा नहीं जाता. गणेशजी ने मूषक की व्यथा को समझ कर अपने भार को कम कर दिया. इस प्रकार मूषक गणेश जी के लिए सदैव एक सवारी बन गया.


तो यह थी ganeshji aur mushak ki kahani.

गणेश चतुर्थी की पौराणिक व्रत कथा(ganesh ji ki kahani)

एक बार की बात हैं भगवान् श्री गणेशजी और माता पार्वती जी दोनों नर्मदा नदी के किनारे बैठकर समय व्यतीत कर रहे थे. तभी माता पार्वती और शिवजी ने चौपड़ खेलने का मन बनाया.

दोनों खेल तो खेल लेंगे, लेकिन इसका निर्णय कौन करेगा की किसने खेल को जीता हैं और किसने खेल को हारा हैं. इसलिए शिवजी ने वहां से कुछ तिनके उठाकर एक पुतला बनाया और उस पुतले में जान फूंक कर एक बच्चे का रूप दे दिया.

शिवजी ने उस बालक से कहा कि हम इस चौपड़ को खेल रहे हैं, तुम इसका निर्णय करना की किसने इस खेल को जीता हैं. उस बालक ने इस बात पर हा भरकर दोनों के खेल पर ध्यान देना शुरू कर दिया.


भगवान् शिव और माता पार्वती ने तीन पारियां खेली औ तीनो बार माता पार्वती विजेता रही. जब चौपड़ का खेल खत्म हुआ तो माता पार्वती और शिवजी ने उस बालक से निर्णय करने को कहा. उस बालक ने शिवजी को विजेता घोषित कर दिया.


माता पार्वती गुस्सा हो गई और उन्होंने उस बालक को श्राप दे दिया और कहा तुम कभी अपने पैरो से चल नहीं पाओंगे, और कीचड़ में पड़े रहोंगे . फिर जब बालक को गलती का अहसास हुआ तो उसने क्षमा मांगी और कहा – माता इस निर्णय में मेरी कोई द्वेष भावना नहीं हैं, यह मुझसे गलती से हो गया.

माता पार्वती ने उस बालक से कहा कुछ दिनों बाद यहाँ पर गणेश की पूजा करने के लिए नाग कन्यायें आएँगी, तुम उनसे गणेश पूजा की विधि जानकर इस श्राफ से मुक्त हो सकते हो. इतना कहकर शिवजी और पार्वतीजी दोनों अन्तर्धान हो गए.


कुछ दिनों बाद वहां पर नाग कन्यायें गणेश पूजा के लिए आई. उस बालक ने उनसे गणेश पूजा की विधि जानकर 21 दिनों तक व्रत किया. जब व्रत सफल रहा तो गणेश जी प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा. उस बालक ने माँगा कि वह अपने पैरो से चलकर अपनी माता पिता से मिलने जाना चाहता हैं. गणेशजी उसको वरदान दे देते हैं.


जब वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुँचता हैं तो शिवजी अकेले बैठे रहते हैं. उस बालक ने शिवजी को प्रणाम किया और अपनी माता से मिलने इच्छा जाहिर की. लेकिन उस वक्त माता पार्वती शिवजी से रुष्ट थी.

इसलिए शिवजी ने उस बालक से पुछा की तुम ठीक कैसे हुए. जब बालक ने व्रत की विधि शिवजी को बताई तो शिवजी ने 21 दिनों का व्रत किया तो इसके उपरांत माता पार्वती स्वयं चलकर उनके पास आई.
माता पार्वती ने शिवजी से कारण पुछा तो शिवजी ने बताया की इसके लिए उन्होंने 21 दिन तक गणेश व्रत रखा हैं. माता पार्वती ने भी कार्तिकेय की मिलने की इच्छा जाहिर की और 21 दिनों तक श्री गणेश के लिए व्रत रखा.

21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं चलकर माता पार्वती के पास आये. और उनसे ऐसा होने का कारण पुछा. माता पार्वती ने कार्तिकेय को गणेश व्रत पूजन विधि बताई.


कार्तिकेय ने इस विधि को महर्षि विश्वामित्र को बताया, विश्वामित्र ने 21 दिन के व्रत के बदौलत ऋषि से ब्रह्म-ऋषि बन गए.

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