रावण का जन्म, रावण का इतिहास दस सर की कथा

Published by Dinesh Choudhary on

ravan stand in angry mode


रावण का जन्म, रावण का इतिहास पौराणिक कथा


रामायण के सबसे बड़े किरदार भगवान श्री राम और रावण जिनके बिना शायद रामायण संभव नहीं थी. दोष काल में जन्म लेने के कारण प्रखंड विद्वान, तेजस्वी और एक ब्राह्मण का पुत्र होते हुए भी अनाचारी और अधर्मी बन गया. रावन का जन्म एक ब्राह्मण और एक दैत्य की पुत्री से हुआ. इस पोस्ट में हम आपको रावण का इतिहास, रावण का जन्म, और रावण से जुडी हुई पौराणिक कथाओ को बताने जा रहे हैं. सारी कथाएं वाल्मीकिकृत रामायण से संकलित हैं.
रावण का जन्म
रावण के जन्म की लम्बी पौराणिक कहानी हैं. रावण के जन्म का एक इतिहास हैं. रावण का जन्म क्यों हुआ? इसका उतर जानने के लिए पहले आपको यह पौराणिक कथा समझनी पड़ेगी.
तीन माल्यवान, सोमाली और माली दैत्य थे. तीनो दैत्य मृत्य्लोक पर राज करते थे. माल्यवान, सोमाली और माली इस मृत्युलोक को जीतने के साथ साथ देव लोक को भी जीतना चाहते थे. इसलिए तीनो दैत्यों ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की. दैत्य तीनो लोको को जीतने का वरदान मांगना चाहते थे. ब्रम्हाजी न चाहते हुए भी इन तीनो दैत्यों के सामने प्रकट हुए, और उनको वरदान दिया.
वरदान मिलते ही इन तीनो दैत्यों ने तीनो लोको में तहलका मचा दिया. देव लोक के सभी देवता घबरा गए. किसी ने इन दैत्यों से सामना करने की हिम्मत नहीं जुटाई. सभी देवता भागकर भगवान शंकर के पास गए, लेकिन भगवान शंकर ने भी अपने आपको असमर्थ बताया.
भगवान श्री शंकर की सलाह पर सभी देवता विष्णुजी के पास गए. सभी देवताओ ने दैत्यों से रक्षा की विनती की. भगवान विष्णु जी ने सभी को निश्चिंत रहने का आश्वाशन दिया.
भगवान विष्णु दैत्यों का सामना करने के लिए मृत्युलोक गये. वहां जाकर माल्यवान, सोमाली और माली को युद्ध के लिए ललकारा. भगवान विष्णु और तीनो दैत्यों में घमासान यूद्ध हुआ. युद्ध में माली मारा गया. माली की मौत से दोनो दैत्य माल्यवान, सोमाली डर गए, और पाताल लोक भाग गए. बहुत समय बाद सोमाली वापस मृत्युलोक आया लेकिन उसको अभी डर था की कही देव लोक से कोई उसको मारने नहीं आ जाये. इसलिए कोई ऐसा देव-दैत्य चाहिए, जो देवता से मुकाबला कर सके.
इस लिए रावण के नाना सोमाली और रावण की नानी केसुमती, दोनों ने मिलकर एक योजना बनाई. सोमाली ने लंका नरेश कुबेर के पिता ऋषि विश्र्वा से अपनी पुत्री कैकसी का विवाह करने की तरकीब बनाई.
चूँकि कैकसी एक धर्मपरायण कुमारी थी, इसलिए वह अपने पिता की बात को टाल नहीं सकती थी. सोमाली के कहने पर कैकसी अपने पिता की आज्ञा मानकर विश्र्वा के पास गयी.
दैत्यी कैकसी को पाताल लोक से धरती लोक आने में कुछ समय लगा. इसलिए शाम हो गई थी. बादल गरजने लगे, बारिश शुरू हो गई. दैत्यी कैकसी ने विश्र्वा को प्रणाम किया, और उनसे विवाह कर एक पुत्र की मांग की.


विश्र्वा ने कहा कुमारी हम तुम्हारी इच्छा को पूरी कर देंगे लेकिन तुम यहाँ पर अशुभ और राक्षस प्रवृति समय में यहाँ पर प्रवेश किया. अत जो भी संतान होगी, राक्षस बनेगी, और देवताओ का संहार करने वाला बनेगा. कैकसी ने विश्र्वा के पैर पकड़ लिए. मुझे तो आपके जैसा धर्मात्मा और ज्ञानी पुत्र चाहिए. अच्छा ठीक हैं, मैं तुमको एक और पुत्र दूंगा, जो मेरी तरह सदाचारी और विद्वान होगा.
कैकसी के मोह में आकर ऋषि विश्र्वा ने कुबेर को छोड़ दिया, और कैकसी के साथ रहने लगे. समय रहते कैकसी की चार संतान हुई. रावण, कुम्भकर्ण, शुपनका और विभीषण उनके नाम रखे गए.
रावण, कुम्भकर्ण, शुपनका एक प्रवृति के और विभीषण अलग प्रवृति का था.
इस तरह रावण एक ब्राहमण और दैत्यी की संतान था. रावण कट्टर शिव भक्त और वीणा वादक था. रावण में एक देवता के गुण होने के साथ साथ एक दैत्य के गुण भी थे. देवता के गुण रावण को महान बनाते हैं, जबकि दैत्य के गुण उसको अधर्मी, क्रोधी, मायावी बनाते हैं. चूँकि रावण की दैत्यी हरकतों से तंग आकर रावण को विश्र्वा ने उसको अपने नाना सोमाली के घर भेज दिया. इसलिए उसके ऊपर दैत्यों के गुण हावी थे.
तो यह पौराणिक कथा रावण के जन्म की थी, अगली कथा – रावण के सिर पर दस सर क्यों हैं?

रावण के सिर पर दस सर क्यों हैं

रावण ब्राह्मण विश्र्वा और दैत्यी कैकसी का पुत्र था. कैकसी के मोह के चक्कर में विश्र्वा ने अपने पुत्र कुबेर को छोड़ दिया. विश्र्वा एक बहुत ही तेजस्वी विद्वान थे. कई प्रकार की रासायनिक और भौतिक विषयों की जानकारी रखने वाले विश्र्वा उस ज़माने एक खोजकर्ता थे.
विश्र्वा ने भौतिकी के सिद्दांत पर आधारित एक एसी मणि बनाई थी, जो किसी के गले में डालने पर नौ बार परछाई को प्रतिलिपित करती थी. कैकसी के आग्रह पर विश्र्वा ने वह मणि उसको दे दी. समय रहते कैकसी ने वह मणि रावण को दे दी. जब कभी रावण उस मणि को पहनता तो उसके नौ सर आभास होते, पूरे मिलाकर दस सर हो जाते. रावण के नौ सर की एक विशेषता यह थी कि वो केवल आभास हो सकते थे. जबकि वास्तविकता यह हैं की कोई भी उनको काट नहीं सकता था. लेकिन इस मिथ्या से कई लोगो के सामने माया रचाई, और भ्रमित किया.
हमे आशा हैं कि आपको इस पोस्ट में उल्लेखित कुछ लघु पौराणिक कथाएं से रावण की जानकारी मिली होगी.

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