मृदा प्रदूषण – (Land & Soil Pollution In Hindi)

मृदा प्रदूषण – (land pollution in hindi)

चाहे कोई फल हो या सब्जी या कोई दूसरी खाद्य सामग्री, सभी का उत्पादन मिट्टी में ही होता हैं. प्रदूषण से ग्रसित मृदा(polluted soil & land) के उत्पाद एक तरह से शांत जहर(slow poison) हैं, जो धीरे धीरे मानव शरीर का क्षरण करता हैं.

अगर आपको याद हो तो मच्छर को मारने(खासतौर मलेरिया के निवारण के लिए) के लिए DDT (डिक्लोरो-डिफेनिल-ट्राइक्लोरोथेन) का उपयोग बहुतयात किया जाता था, लेकिन ddt का प्रयोग कृषि कार्य में भी किया जाता था. ddt एक सिंथेटिक कीटनाशक है जो अत्यंत जहरीला हैं, ddt का प्रभाव कीड़ो के न्युरोंस पर पड़ता हैं, साथ ही इसका अत्यंत हानिकारक प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता हैं. इसके हानिकारक प्रभाव को देखते हुए 2008 में खेती में ddt के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया था.

इस विशेष पोस्ट में मैं आपको मृदा प्रदूषण (soil pollution in hindi), कारण, प्रभाव, उपाय के साथ कुछ विशेष बिन्दुओं के बारे में जानेंगे, जो आपको पर्यावरण के प्रति जागरूक करने में मदद करेंगे. तो चलिए शुरुआत करते हैं मृदा प्रदूषण की परिभाषा के साथ(defination of soil pollution).

मृदा प्रदूषण परिभाषा(defination of soil pollution)

मिट्टी की सबसे उपरी परत को क्षितिज(Horizon) कहते हैं, जिसमे प्रचुर मात्रा में कार्बनिक पर्दाथ पाए जाते हैं जो कृषि के लिए आवश्यक हैं. जब मिट्टी की क्षितिज परत में कुछ ऐसे हानिकारक तत्व(प्रदूषक) प्रवेश कर जाते हैं जो मिट्टी के रासायनिक, भौतिक और जैविक संघटन में परिवर्तन कर देते हैं, तो मृदा का प्रदूषण हो जाता हैं, इसी को मृदा प्रदूषण कहते हैं.

ह्यूमस, मिट्टी में सूक्ष्म रूप से विभाजित कार्बनिक पदार्थ, पौधे और पशुओं के सूक्ष्मजीवी अपघटन से प्राप्त होता है। ह्यूमस, जो भूरे से काले रंग में होता है, में लगभग 60 प्रतिशत कार्बन, 6 प्रतिशत नाइट्रोजन और थोड़ी मात्रा में फास्फोरस और सल्फर होता है.

यह ह्यूमस पौधों, फासलो के निर्माण के लिए आवश्यक हैं. अम्लीय वर्षा, रासायनिक खाद, किटनाशक स्प्रे, मृदा अपरदन मिट्टी से उन सूक्ष्म ह्यूमस को नष्ट कर देते हैं, जिसके फलस्वरूप मिट्टी प्रदूषित या बंजर हो जाती हैं, और उत्पादन क्षमता प्रभावित होती हैं.
सामान्य तौर पर, मिट्टी में 40-45% अकार्बनिक पदार्थ(inorganic material), 5% कार्बनिक पदार्थ(organic material), 25% पानी और 25% वायु(nitrogen) होती है।

मृदा प्रदूषण के कारण(how soil getting polluted)

यहाँ पर मृदा प्रदुषण के प्रमुख कारण दिए गए हैं.

औद्योगिक कचरे का अनुचित निपटान

औद्योगिक गतिविधियों के दौरान उत्पन्न जहरीले कचरे के अनुचित प्रबंधन और निपटान के कारण उद्योगों को मृदा प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है।

कीटनाशकों और उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग

कृषि उद्योग फसलों की वृद्धि और रखरखाव के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का व्यापक उपयोग करता है। इन जहरीले रसायनों का अत्यधिक और अक्षम उपयोग मिट्टी को गंभीर रूप से दूषित कर सकता है। जिसका परिणाम सम्पूर्ण पर्यावरण को भुगतना पड़ता हैं.

पेट्रोलियम या डीजल

ईंधन परिवहन पाइप में रिसाव से यह तेल रिस कर मिटटी और अन्य जल स्रोतों में पहुँच सकता हैं. इन ईंधनों में जहरीले हाइड्रोकार्बन होते हैं जो मिट्टी के दूषित होने का कारण बन सकते हैं।

शहरीकरण का बढ़ावा

जनसख्याँ बढ़ने के साथ रहने के लिए घर स्थान आदि की आवश्यकता के लिए जंगलो को काटा जा रहा हैं. इसके साथ बढती जनसँख्या के लिए भोजन की आपूर्ति के लिए गहन खेती की जाती हैं. जिसके परिणामस्वरूप मिटटी शीघ्र ही बंजर हो जाती हैं. बंजर भूमि पर खेती करने के लिए बहुत ज्यादा मात्रा में हानिकारक कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग किया जाता हैं.

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soil POLLLUTION IN HINDI

मृदा प्रदूषण के प्रभाव(effects of land pollution)

मृदा प्रदूषण(soil polllution) न्यूरोमस्कुलर(nerves and muscles) ब्लॉकेज के साथ-साथ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के अवसाद, सिरदर्द, मतली, थकान, आंखों में जलन और त्वचा पर लाल चकत्ते का कारण बन सकता है। मिट्टी की गुणवत्ता में बहुत कम बदलाव भी व्यापक नुकसानदायी हो सकती हैं. ह्यूमस रहित मृदा से उत्पादित धान के उपयोग से न केवल मानव जाति प्रभावित होती हैं बल्कि सम्पूर्ण पारिस्थिकी तंत्र प्रभावित होता हैं.

सजीव जगत पर प्रभाव

दूषित मृदा तीनों चरणों (ठोस, तरल और गैसीय) में मौजूद हो सकती हैं। इसलिए, ये संदूषक कई चैनलों के माध्यम से मानव शरीर में अपना रास्ता खोज सकते हैं जैसे कि त्वचा से सीधे संपर्क या दूषित मिट्टी की धूल के माध्यम से, या कीटनाशक युक्त चारा खाने वाले मवेशी के दूध से. प्रदूषित मृदा के कुछ हानिकारक घटक शीघ्र दुष्प्रभाव पहुंचाते हैं, जबकि कुछ घटक धीरे धीरे slow poison की तरह शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं.
कई सामान्य मृदा प्रदूषक(soil pollutants) कैंसरजन्य होते हैं, अगर मिट्टी में सीसा(Pb) की मात्रा बढ़ जाये तो फेफड़ों के कैंसर(lung cancer), तांबे(Cu) और आर्सेनिक(As) से समृद्ध क्षेत्रों से ब्रेन ट्यूमर और उच्च कैडमियम(Cd) स्तर वाले मूत्राशय के कैंसर की संभावना को बढ़ा देते हैं.
इसके अलावा बेंजीन के नियमित संपर्क से बच्चों और वयस्कों दोनों में ल्यूकेमिया होता है और पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल (PCB) के संपर्क में आने से लीवर कैंसर होता है।
जब किसी कम प्रदूषित मिट्टी में किसी फसल या की पौधे को उगाया जाता हैं तो वह पौधा लगातार उस प्रदूषित मिट्टी से हानिकारक अणुओं को ग्रहण करता रहेगा. धीरे धीरे वह पौधा अपने अन्दर इतने हानिकारक कणों को इक्कठा कर लेगा, जो किसी को भी कैंसर जैसा नुकसान पहुँचाने के लिए काफ़ी हैं.
जब कोई जानवर इस प्रकार के पौधों को खाता हैं तो उसका दुध भी प्रभावित होता हैं. इस प्रकार यह एक चक्र बन जाता हैं. जो व्यापक स्तर पर मानव जाति को नुकसान पहुंचाता हैं.
मिट्टी में जहरीली मात्रा में भारी धातुओं की मौजूदगी से बच्चों में अपरिवर्तनीय विकासात्मक क्षति हो सकती है। मिट्टी में सीसा(Pb) और पारा(Hg) भी मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। हालांकि सीसा और पारा मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं, लेकिन इनमें से किसी भी धातु की उच्च सांद्रता छोटे बच्चों के विकासशील मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकती है, जो तंत्रिका संबंधी समस्याएं पैदा कर सकती है।
मिट्टी में अत्यधिक पारा(Hg) के संपर्क में आने से किसी भी उम्र के व्यक्ति को गुर्दे या लीवर की क्षति कर सकता है।

पौधों और जानवरों पर प्रभाव

चूंकि मृदा प्रदूषण अक्सर पोषक तत्वों की उपलब्धता में कमी के कारण होता है, इसलिए ऐसी मिट्टी में पौधों का जीवन पनपना बंद हो जाता है। अकार्बनिक एल्यूमीनियम से दूषित मिट्टी पौधों के लिए जहरीली साबित हो सकती है। साथ ही, इस प्रकार का प्रदूषण अक्सर मिट्टी की लवणता को बढ़ाता है, जिससे यह पौधों के जीवन के विकास के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।
मृदा प्रदूषण सूक्ष्मजीवों और आर्थ्रोपोड्स(कीट, मकड़ी, या क्रस्टेशियन) के चयापचय को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है, जो प्राथमिक खाद्य श्रृंखला के कुछ जीवों को नष्ट कर सकता है और शिकारी जानवरों(द्वितीय श्रंखला) की प्रजातियों पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है।
इसके अलावा, छोटे जीव मिट्टी से हानिकारक रसायनों का उपभोग(सेवन) कर सकते हैं जो बाद में बड़े जानवरों के लिए खाद्य श्रृंखला को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है और यहां तक कि पशु प्रजातियाँ विलुप्त भी हो सकती हैं.

पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव

चूंकि मिट्टी में वाष्पशील प्रदूषक हवा द्वारा वातावरण में ले जाया जा सकता है या भूमिगत जल भंडार में रिस सकते है, इस प्रकार वायु और जल प्रदूषण में मृदा प्रदूषण का सीधा योगदान हो सकता है।
मृदा प्रदूषण(soil pollution in hindi) वातावरण में वाष्पशील यौगिकों को छोड़ कर वायु प्रदूषण में योगदान देता है – इसलिए मिट्टी में जितने अधिक जहरीले यौगिक होते हैं, उतना ही अधिक वायु प्रदूषित होती है.
प्रदूषित मृदा से जहरीले रसायन भूजल में मिल जाते हैं तो जल प्रदूषण हो सकता है, दूषित अपवाह या सीवेज से होता हुआ यह प्रदूषित जल नदियों, झीलों या महासागरों तक पहुँचता हैं।
चूँकि भूमि में 25 प्रतिशत नाइट्रोजन होती हैं, मृदा में उपस्थित हानिकारक प्रदूषक नाइट्रोजन से क्रिया कर नाइट्रोजन को मुक्त कर देते हैं. जब वायुमंडल में नाइट्रोजन की अधिकता होती हैं तो अम्लीय वर्षा भी सकती हैं. अम्लीय वर्षा पुन: पौधों की प्रकाश संश्लेष्ण क्रिया को सही ढंग से नहीं होने देती हैं.
मिट्टी में बहुत सारे कार्बनिक कण और सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं, ये सूक्ष्म जीव कार्बनिक कणों का अपघटन करके मिट्टी की गुणवत्ता में सूधार करते हैं. लेकिन हानिकारक प्रदूषक मिट्टी के उन सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप नये ह्यूमस नहीं बन पाते हैं.
मृदा प्रदूषण मिट्टी की लवणता को बढ़ाता है जिससे यह वनस्पति के लिए अनुपयुक्त हो जाती है, जिससे यह जमीन बेकार और बंजर हो जाती है। यदि कुछ फसलें इन परिस्थितियों में उगने में सफल हो भी जाती हैं, तो वह फसल इतनी जहरीली होंगी कि उसका सेवन करने वाले लोगों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

मृदा प्रदूषण को कैसे रोके(how to stop land pollution in hindi)

भूमि प्रदूषण को कम करने के लिए बहुत विस्तृत पैमाने पर कदम उठाने की जरुरत हैं. ऊपर मैंने आपको मृदा प्रदूषण के विभिन्न कारकों के बारे में बताया. अगर आप इन कारकों(प्रदूषको) पर ध्यान देंगे तो आपको लगेगा की – ये सभी करक वायु, जल प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार हैं. हमें इन विषयों पर भी सोचना होगा. क्योंकि मृदा प्रदूषण जल और वायु प्रदूषण का ही परिणाम हैं.

मृदा प्रदूषण और अपरदन को कम करें

बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिंग और कृषि उर्वरकों और कीटनाशकों के कारण कृषि योग्य भूमि रेगिस्तान में बदल रही है, यह इस बात की और संकेत कर रही हैं की आने वाले समय में हम अपनी भावी पीढ़ियों को एक स्वच्छ वातावरण नहीं दे पाएंगे. आंकड़े यह बताते हैं की आने वाले 40 वर्षों में कृषि भूमि को 40 फीसदी बढ़ाना होगा. इस को संभव कर पाना बहुत ही मुश्किल हैं. बहुत ही कम एसी भूमि हैं जिसको खेती के लिए बनाया जा सकता हैं. इसलिए हमारे पास अभी जो संसाधन हैं उन्ही को उपयोग में लाकर हमे इस पर्यावरण को वापस जीवित करना हैं.

उचित निपटान से

उत्खनन के बाद में प्रदूषित मिट्टी को दूरस्थ, निर्जन स्थानों पर ले जाना चाहिए, जिससे हानिकारक प्रदूषक कृषि योग्य मिट्टी के संपर्क में न आ सके.

थर्मल उपचार

थर्मल उपचार के माध्यम से प्रदूषकों का निष्कर्षण – वाष्प चरण में दूषित पदार्थों को मजबूर करने के लिए तापमान बढ़ाया जाता है, जिसके बाद उन्हें वाष्प निष्कर्षण के माध्यम से एकत्र किया जा सकता है।

बायोरेमेडिएशन प्रक्रिया से

बायोरेमेडिएशन एक एसी प्रक्रिया हैं जो मिट्टी, पानी और वातावरण से दूषित पदार्थों, प्रदूषकों और विषाक्त पदार्थों को हटाने में मदद करती हैं. इसके साथ रोगाणुओं और बैक्टीरिया की उत्पति पर नियंत्रण करती हैं. इसके अलावा तेल रिसाव या दूषित भूजल को साफ करने के लिए बायोरेमेडिएशन का उपयोग किया जाता है.

वन लगाकर

जब मिटटी की उपरी परत बह कर चली जाती हैं तो वह भूमि बंजर हो जाती हैं, इस प्रकार अपरदन को रोकने के लिए पेड़ों को लगाना होगा. पेड़ों की जड़े मिट्टी को एक जाल की तरह बांध कर रखती हैं.

सीढ़ीनुमा खेत बनाकर

सीधे ढाल पर पानी बहुत तेज गति से बह कर चला जाता हैं, पानी की इस तेज गति के साथ मिटटी भी चली जाती हैं. अगर इस प्रकार के ढालों पर सीढ़ी बना दी जाये तो, बहाव की गति कम हो जाती हैं और मिट्टी कम कटती हैं.

ठोस कचरा निस्तारण

अक्सर घरों से निकलने वाला कचरा एक डंपिंग के रूप में जमा हो जाता हैं, इस प्रकार के कचरे को पुन चक्रित करके पुन: उपयोग में लाया जा सकता हैं.

हरियाणा में सोनीपत में Ramesh Chandra Dagar ने किसान वेलफेयर क्लब की स्थापना की. जिसका उद्देश्य – किसी भी स्रोत से उत्पन्न होने वाले कचरे को निस्तारित करना हैं.
Ramesh Chandra Dagar ने zero waste management की नै आधुनिक तकनीक की खोज की है. इसके अन्दर रमेश जी ने मधुमक्खी पालन, डेयरी, कम्पोस्ट प्लांट, फसल के लिए खेती करनी शुरू कर दी. रमेश चद्र जी इस प्रक्रियां में किसी भी एक स्रोत से मिलने वाले अपशिस्ट को दुसरे स्रोत में उपयोग में लाया जाता हैं. मधुमक्खी खेती में पराग की तेजी बढ़ा देती हैं, डेयरी और पशुपालन से खाद मिल जाती हैं, खेती से मवेशियों को खाना मिल जाता हैं. पानी की पुर्ति के लिए एक छोटा तालाब बना दिया.
इस प्रकार जीरो वेस्ट मैनेजमेंट के जरिये पर्यावरण के अनुरूप खेती की जा सकती हैं.

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आपने क्या सीखा…

मृदा(भूमि) प्रदूषण (soil pollution information in hindi) से सम्बन्धित इस पोस्ट में मैंने आपको मृदा प्रदूषण की परिभाषा, कारण, इसके पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव, उपाय के बारे में बताया हैं. नीचे कमेंट बॉक्स में आप अपने सुझाव भी लिख सकते हैं.

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